झारखंड: दुष्कर्म मामले में 70 फीसदी आरोपी पीड़िता को जानने वाले, 40% नाबालिग बेटियां चढ़ी दरिंदों के हत्थे
दुष्कर्म एक शब्द भर नहीं हैं और आंकड़े सिर्फ गणितीय हिसाब नहीं। दुष्कर्म की जब एक घटना घटती है तो किसी मासूम, किसी महिला को उम्र भर अपनी ही नजरों में तार-तार करती रहती है। अपने ही घर वालों से रिश्तेदारों से ताने भी सुनती है। अपने ही जाने हुए लोगों की नजरों से नजर छुपाकर जीती है। जबकि इसमें गुनहगार भी सबसे ज्यादा अपने ही जाने पहचाने लोग हैं। करीब 70 प्रतिशत। और जिनके साये में मां-बेटियां खुद को महफूज समझती हैं वैसे ही कोई सात प्रतिशत लोगों ने विश्वासघात किया। जब घर ही असुरक्षित हो तो कोई कहां जाये। 45 प्रतिशत घटनाएं घर में ही हुई हैं। और 40 प्रतिशत नाबालिग यानी 18 साल से कम उम्र की बेटियां शिकार हुईं। सरकार के आंकड़े यही गवाही दे रहे हैं।
यह झारखंड की कहानी है। हेमंत सरकार के कार्यकाल में इसी साल जनवरी से नवंबर तक 1556 मां-बेटियों के साथ दुष्कर्म की घटनाएं हुईं। यानी रोज करीब पांच। ये सिर्फ पुलिस फाइल में दर्ज आंकड़े हैं। अज्ञानता या इज्जत के ख्याल से तो अनेक मामले पुलिस तक पहुंचते ही नहीं। दुष्कर्म की 1556 घटनाओं में 1041 घटनाओं को अंजाम दिया पहचाने हुए लोगों ने ही। और 102 घटनाओं को तो परिवार वालों ने ही अंजाम दिया। चिंता की बात है कि 11 माह में दुष्कर्म की सर्वाधिक घटनाएं राजधानी रांची में 187 तो साइबर फ्रॉड के लिए चर्चित जामताड़ा में सबसे कम 19 घटनाएं दर्ज की गई हैं।
बचे हुए हैं पैसे वाले, कम दोषी हैं अपरिचित
दुष्कर्म की बढ़ी घटनाओं को लेकर पुलिस मुख्यालय ने इसका ब्योरा जुटाया। अंजाम देने वाले कौन हैं, शिकार और आरोपी की साक्षरता, समृद्धि, उम्र विभिन्न तरह के आंकड़े जुटाये गये ताकि मंथन कर शायद कोई रास्ता निकले। आंकड़े आ गये तो पुलिस महकमा अब चिंतन में जुट गया है। आंकड़े बताते हैं कि सिर्फ चार प्रतिशत अपरिचित थे जिन्होंने दुष्कर्म को अंजाम दिया। साथ ही करीब तीन प्रतिशत अमीर लोग इसके शिकार हुए। 30 प्रतिशत गरीब और 67 प्रतिशत मध्यमवर्गीय शिकार हुए। 23 प्रतिशत निरक्षर और 46 प्रतिशत अंडर मैट्रिक शिकार हुए। सिर्फ चार प्रतिशत स्नातक को दुष्कर्म का शिकार होना पड़ा।
अनुसूचित जाति से ज्यादा जनजाति के लोग दुष्कर्म के शिकार
26 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति और 17 प्रतिशत जनजाति की मां, बेटियां शिकार हुईं। वहीं कुल 40 प्रतिशत नाबालिग यानी 18 साल से कम उम्र की बच्चियां दरिदों की भेंट चढ़ीं। कुल घटनाओं में एक हजार लोग गिरफ्तार हुए हैं। अनेक मामलों में तो मां, बेटियों को सामूहिक दुष्कर्म का शिकार होना पड़ा, हाल की एक घटना को तो 17 लोगों ने मिलकर अंजाम दिया था। उन्हें फांसी पर भी चढ़ा दिया जाये तो लूट और चोरी की घटनाओं की तरह समय के साथ उनके जख्म आसानी से भर जायेंगे ऐसा लगता नहीं है।
बढ़ रही हैं घटनाएं
प्रगति के साथा दुष्कर्म की घटनाओं में सल दर सल वृद्धि चिंताजनक है। 2016 में 1146, 2017 में 1357, 2018 में 1478, 2019 में 1893 और इस साल नवंबर तक 1556 दुष्कर्म की घटनाएं हुई हैं।
कम पढ़े लोग दे रहे घटनाओं को अंजाम
घटनाओं का साक्षरता से भी जुड़ाव है। दुष्कर्म को अंजाम देने वालों में भी 54 प्रतिशत लोग अंडर मैट्रिक थे। या कहें 13 प्रतिशत अंडर मैट्रिक और 41 प्रतिशत अनपढ़। 51 प्रतिशत गरीबों ने ही ऐसी घटनाओं को अंजाम दिया। अंजाम देने वालों में 33 प्रतिशत जनजाति समाज से आने वाले और 21 प्रतिशत अनुसूचित जाति के लोग हैं।