पत्रकारों पर हमले के खिलाफ सड़क पर उतरे पत्रकार
दिल्ली की सड़कों पर आज बड़ी संख्या पत्रकार उतरे। उन्होंने कल, यानी 15 फरवरी को पटियाला अदालत में पत्रकारों पर हमलों में दिल्ली पुलिस के मूक दर्शक बने रहने का कड़ा विरोध किया। टीवी न्यूज चैनल की नामचीन हस्तियों के साथ-साथ प्रिंट और वेब माध्यम के पत्रकारों ने आज दिल्ली में लंबा जुलूस निकालकर एक इतिहास रचा।
केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद पत्रकारों के बीच इस तरह की गोलबंदी पहली बार हुई, जिसमें केंद्र सरकार होश में आओ, प्रेस की आजादी पर हमला बंद करो जैसे नारे लगे। जेएनयू में छिड़ी लड़ाई में पत्रकारों का यह जलूस एक और कड़ी बन गया है।
प्रेस क्लब के बाहर से शुरू हुआ यह जुलूस सुप्रीम कोर्ट के पास तक गया, जहां पुलिस ने भगवान दास रोड पर इसे रोक दिया। कई अखबारों के संपादक और वरिष्ठ पत्रकारों ने एक सुर में पटियाला हाउस में हुई घटना की कड़े शब्दों में निंदा की और दिल्ली पुलिस कमीश्नर बस्सी के खिलाफ नारे भी लगाए। प्रदर्शनकारी पत्रकारों ने प्रेस की आजादी पर हो रहे इस हमले पर सुप्रीम कोर्ट से भी दखल करने की अपील की। इसे सीधे-सीधे लोकतंत्र पर हमला बताया। इस मौके पर उन युवा पत्रकारों ने, जिन पर कल अदालत में कोर्ट रूम में हमला हुआ था, उन्होंने भी अपने अनुभव रखे। डीएनए में पत्रकार रितिका जैन ने बताया कि किस तरह से काले कपड़े पहने लोगों ने घेर लिया और जबरन मोबाइल छीनने की कोशिश की। सीधे-सीधे धमकी दी कि अगर वे लोग यहां से बाहर नहीं निकले तो इसके खतरनाक परिणाम होंगे। मेल डुटे अखबार की रिपोर्टर स्नेहा ने भी बताया कि बहुत ही डरावना माहौल था। स्नेहा ने बताया कि ये हाल उस कोर्ट रूम का था, जो सबसे ताकतवर मानी जाती है, अगर हम बाहर होते तो न जाने हमारा क्या हाल होता। इस तरह का अनुभव इन पत्रकारों का पहला था और उन्हें इस बात से सबसे ज्यादा परेशानी थी कि पुलिस वहीं खड़ी थी और वह उन्हें बचाने नहीं आई।
इस तरह का मार्च दिल्ली की सड़कों पर संभवतः सालों बाद निकला। पिछले एक दशक में इस तरह की गोलबंदी किसी को याद नहीं। आज के जुलूस की खासियत यह थी कि इसमें आम पत्रकारों के साथ संपादकों की संख्या भी खासी थी। सब इस बात पर सहमत थे कि केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस का रवैया इस पूरे मुद्दे पर सही नहीं है।