Advertisement
10 May 2024

नरेंद्र दाभोलकर हत्याकांड: दो शूटर्स को उम्रकैद, 3 आरोपियों को कोर्ट ने किया बरी

महाराष्ट के पुणे के एक विशेष यूएपीए अदालत ने कथित तौर अंधविश्वास के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले कार्यकर्ता डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की हत्या से जुड़े मामले में फैसला सुना दिया है। 11 साल बाद सुनाए गए इस फैसले में अदालत ने साजिश के मामले में आरोपी वीरेंद्र सिंह, संजीव पुनालेकर और विक्रम भावे को सबूतों का अभाव होने की वजह से बरी कर दिया। वहीं, अदालत ने दाभोलकर को गोली मारने वाले शरद कालस्कर और सचिन एंडुरे को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। साथ ही दोनों आरोपियों पर 5 लाख का जुर्माना भी लगाया है।

आपको बता दें कि दाभोलकर, महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के संस्थापक थे। 20 अगस्त, 2013 को पुणे में दाभोलकर मॉर्निंग वाक पर गए थे जहां दो बाइक सवार हमलावरों ने गोली मारकर उनकी हत्या की दी। दाभोलकर कई सालों से समिति में सक्रिय थे, उन्होंने अंधविश्वास उन्मूलन से संबंधित कई पुस्तकें भी प्रकाशित की थी। 

शुरुआत में इस मामले की जांच पुणे पुलिस कर रही थी, लेकिन बंबई उच्च न्यायालय के आदेश के बाद 2014 में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने मामले को अपने हाथ में ले लिया और जून 2016 में हिंदू दक्षिणपंथी संगठन सनातन संस्था से जुड़े डॉ। वीरेंद्र सिंह तावड़े को गिरफ्तार कर लिया।

Advertisement

अभियोजन पक्ष के अनुसार, तावड़े हत्या के मुख्य साजिशकर्ताओं में से एक था। उसने दावा किया कि सनातन संस्था दाभोलकर की संस्था महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति द्वारा किए गए कार्यों का विरोध करती थी। इसी संस्थान से तावड़े और कुछ अन्य आरोपी जुड़े हुए थे।

सीबीआई ने अपने आरोपपत्र में शुरुआत में भगोड़े सारंग अकोलकर और विनय पवार को शूटर बताया था लेकिन बाद में सचिन अंदुरे और शरद कालस्कर को गिरफ्तार किया और एक पूरक आरोपपत्र में दावा किया कि उन्होंने दाभोलकर को गोली मारी थी।इसके बाद, केंद्रीय एजेंसी ने अधिवक्ता संजीव पुनालेकर और विक्रम भावे को कथित सह-साजिशकर्ता के तौर पर गिरफ्तार किया।आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता की धाराओं 120 बी (साजिश), 302 (हत्या), शस्त्र अधिनियम की संबंधित धाराओं और यूएपीए की धारा 16 (आतंकवादी कृत्य के लिए सजा) के तहत मामला दर्ज किया गया।

तावड़े, अंदुरे और कालस्कर जेल में बंद हैं जबकि पुनालेकर और भावे जमानत पर बाहर हैं। दाभोलकर की हत्या के बाद अगले चार साल में तीन अन्य ऐसे ही कार्यकर्ताओं की हत्याएं हुईं, जिनमें कम्युनिस्ट नेता गोविंद पानसरे (कोल्हापुर, फरवरी 2015), कन्नड़ विद्वान एवं लेखक एम।एम। कलबुर्गी (धारवाड़, अगस्त 2015) और पत्रकार गौरी लंकेश (बेंगलुरु, सितंबर 2017) की हत्याएं शामिल हैं। ऐसा अंदेशा है कि इन चारों मामलों के अपराधी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: Narendra Dabholkar murder, Court on Narendra Dabholkar case, Court judgement on Narendra Dabholkar murder, Narendra Dabholkar
OUTLOOK 10 May, 2024
Advertisement