पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया पर लगा रहेगा बैन! सुप्रीम कोर्ट ने की याचिका खारिज
देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया को एक बड़ा झटका दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र द्वारा पीएफआई पर लगाए गए पांच साल के प्रतिबंध की पुष्टि करने वाले गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) न्यायाधिकरण के आदेश को चुनौती देने वाली पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) की याचिका खारिज कर दी।हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा है कि पीएफआई हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए स्वतंत्र है।
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया ने संगठन पर केंद्र के प्रतिबंध को चुनौती देने के लिए पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। पीएफआई ने यूएपीए ट्रिब्यूनल द्वारा पारित उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसे "गैरकानूनी संघ" घोषित करने के केंद्र के फैसले की पुष्टि की गई थी। पिछले साल सितंबर में, गृह मंत्रालय ने एक गजट अधिसूचना प्रकाशित की थी, जिसमें पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) और उसके विभिन्न सहयोगियों को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत 'गैरकानूनी संघ' घोषित किया गया था। इसमें आतंकवादी संगठनों के साथ संबंध और आतंकवादी कृत्यों में संलिप्तता का आरोप लगाया गया था। यह घटनाक्रम पीएफआई और उसके सदस्यों के खिलाफ दो बड़े राष्ट्रव्यापी खोज और गिरफ्तारी अभियानों के बाद हुआ।
यूएपीए की धारा 3(1) के तहत प्रतिबंध पांच साल की अवधि के लिए तुरंत प्रभावी होना था। सूचीबद्ध सहयोगियों में रिहैब इंडिया फाउंडेशन (आरआईएफ), कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई), ऑल इंडिया इमाम्स काउंसिल (एआईआईसी), नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाइजेशन (एनसीएचआरओ), नेशनल वुमेन फ्रंट, जूनियर फ्रंट, एम्पावर इंडिया फाउंडेशन शामिल थे। इस साल मार्च में, दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा के नेतृत्व में एक यूएपीए न्यायाधिकरण ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया और उससे जुड़ी संस्थाओं पर केंद्र सरकार के प्रतिबंध को बरकरार रखा।