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15 May 2025

राष्ट्रपति मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से मांगी सलाह: विधेयकों को मंजूरी देने की समय-सीमा पर उठाए 14 सवाल

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत एक दुर्लभ संवैधानिक प्रावधान का उपयोग करते हुए सुप्रीम कोर्ट से सलाह मांगी है। उन्होंने यह कदम 14 महत्वपूर्ण प्रश्नों को लेकर उठाया है, जो राज्य सरकारों द्वारा अनुमोदन के लिए भेजे गए विधेयकों पर राष्ट्रपति और राज्यपालों द्वारा निर्णय लेने की समय-सीमा से संबंधित हैं, विशेष रूप से जब संविधान में ऐसी कोई समय-सीमा निर्दिष्ट नहीं है।

यह संदर्भ सुप्रीम कोर्ट के 8 अप्रैल के उस निर्णय के परिप्रेक्ष्य में आया है, जिसमें कोर्ट ने राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए विधेयकों पर कार्रवाई करने की समय-सीमा निर्धारित की थी। इस निर्णय में कहा गया था कि यदि राज्यपाल किसी विधेयक पर सहमति नहीं देते हैं या उसे राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रखते हैं, तो यह कार्य विधेयक प्रस्तुत होने के तीन महीने के भीतर किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त, यदि राज्य विधानमंडल एक समान विधेयक को पुनः पारित करता है, तो राज्यपाल को तत्काल या एक महीने के भीतर उस पर सहमति देनी चाहिए। राष्ट्रपति को भी, यदि राज्यपाल द्वारा कोई विधेयक उनके विचारार्थ भेजा जाता है, तो तीन महीने के भीतर निर्णय लेना चाहिए, और यदि इसमें देरी होती है, तो संबंधित राज्य को कारण बताना आवश्यक है।

इन परिस्थितियों में, राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से निम्नलिखित 14 प्रश्नों पर सलाह मांगी है:

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जब किसी विधेयक को संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है, तो उनके पास कौन-कौन से संवैधानिक विकल्प उपलब्ध हैं?

क्या राज्यपाल को अनुच्छेद 200 के तहत विधेयक पर निर्णय लेते समय मंत्रिपरिषद की सलाह का पालन करना अनिवार्य है?

क्या अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल द्वारा किए गए संवैधानिक विवेक का न्यायिक परीक्षण संभव है?

क्या संविधान का अनुच्छेद 361 राज्यपाल के कार्यों की न्यायिक समीक्षा पर पूर्ण प्रतिबंध लगाता है?

यदि संविधान में समय-सीमा निर्दिष्ट नहीं है, तो क्या न्यायालय द्वारा अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के कार्यों के लिए समय-सीमा निर्धारित की जा सकती है?

क्या अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा किए गए संवैधानिक विवेक का न्यायिक परीक्षण संभव है?

यदि संविधान में समय-सीमा निर्दिष्ट नहीं है, तो क्या न्यायालय द्वारा अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति के विवेकाधिकार के लिए समय-सीमा निर्धारित की जा सकती है?

क्या राष्ट्रपति को अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट से सलाह लेनी चाहिए जब राज्यपाल किसी विधेयक को उनके विचारार्थ भेजते हैं?

क्या अनुच्छेद 200 और 201 के तहत राज्यपाल और राष्ट्रपति के निर्णयों का न्यायिक परीक्षण उस चरण में किया जा सकता है जब विधेयक अभी कानून नहीं बना है?

क्या अनुच्छेद 142 के तहत राष्ट्रपति/राज्यपाल के संवैधानिक आदेशों को किसी भी रूप में प्रतिस्थापित किया जा सकता है?

क्या राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयक, राज्यपाल की सहमति के बिना, कानून के रूप में प्रभावी होता है?

क्या अनुच्छेद 145(3) के प्रावधानों के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट की किसी भी पीठ को यह निर्णय लेना अनिवार्य है कि क्या मामला संविधान की व्याख्या से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न उठाता है और इसे कम से कम पांच न्यायाधीशों की पीठ को भेजा जाना चाहिए?

क्या अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट की शक्तियाँ केवल प्रक्रियात्मक कानूनों तक सीमित हैं, या क्या यह मौजूदा संवैधानिक या वैधानिक प्रावधानों के विपरीत निर्देश या आदेश जारी कर सकता है?

क्या संविधान सुप्रीम कोर्ट को अनुच्छेद 131 के तहत संघ और राज्य सरकारों के बीच विवादों को सुलझाने के अलावा किसी अन्य क्षेत्राधिकार से वंचित करता है?

इन प्रश्नों के माध्यम से राष्ट्रपति मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से स्पष्टता और मार्गदर्शन की मांग की है ताकि राष्ट्रपति और राज्यपालों के विधायी प्रक्रिया में भूमिका और उनके विवेकाधिकारों की सीमाओं को स्पष्ट किया जा सके।

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TAGS: President Murmu, Supreme Court, Article 143, Bill approval, Governor powers, Constitutional discretion, Judicial review, Timeline dispute, Centre-state relations, Constitutional advice
OUTLOOK 15 May, 2025
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