हरियाणा में पुरुषों का बोलबाला: 58 सालों में केवल 87 महिलाएं बनीं विधायक, अबतक कोई महिला सीएम नहीं
हरियाणा विधानसभा चुनाव में अभी भी पुरूषों का दबदबा है, यहां केवल 51 महिला उम्मीदवार हैं - जिनमें से अधिकतर या तो किसी राजनीतिक परिवार का समर्थन प्राप्त हैं या फिर अग्रणी राजनीतिक दलों द्वारा मैदान पर उतारी गई प्रत्याशी, किसी सेलिब्रिटी की हैसियत रखती हैं।
बता दें कि 1966 में पंजाब से अलग होकर बने हरियाणा राज्य में लिंगानुपात के मामले में सबसे खराब स्थिति है। यहां से अब तक सिर्फ 87 महिलाएं ही विधानसभा पहुंची हैं। हरियाणा में कभी भी कोई महिला मुख्यमंत्री नहीं रही।
उम्मीदवारों की सूची के विश्लेषण से पता चलता है कि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने 12 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, जो इन चुनावों में सभी दलों में सबसे अधिक है। गठबंधन के तहत चुनाव लड़ रही भारतीय राष्ट्रीय लोकदल (आईएनएलडी) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने संयुक्त रूप से 11 महिला उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं, जबकि सत्तारूढ़ भाजपा ने 10 महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया है।
जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) और आजाद समाज पार्टी (एएसपी) गठबंधन ने 85 सीटों पर चुनाव लड़ते हुए आठ महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया है, जबकि आप की 90 उम्मीदवारों की सूची में 10 महिलाएं हैं।
हरियाणा विधानसभा के रिकार्ड के अनुसार, वर्ष 2000 से शुरू हुए पांच विधानसभा चुनावों में कुल 47 महिलाएं विधायक बनी हैं। यह राज्य अपने विषम लिंगानुपात के लिए कुख्यात है - वर्ष 2023 में प्रति 1,000 पुरुषों पर 916 महिलाओं ने जन्म लिया।
2019 के चुनावों में, 104 महिला उम्मीदवार मैदान में थीं, जिनमें निर्दलीय उम्मीदवार भी शामिल थीं। 2014 के चुनावों में सबसे ज़्यादा 116 में से 13 महिला उम्मीदवार मैदान में थीं - जो अपनी सीटों से जीती थीं। हालांकि, 2019 के चुनावों में यह संख्या घटकर नौ रह गई।
90 सदस्यीय हरियाणा विधानसभा के लिए चुनाव 5 अक्टूबर को होंगे और नतीजे 8 अक्टूबर को घोषित किए जाएंगे। इस बार मैदान में केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह की बेटी आरती सिंह राव हैं, जो भाजपा के टिकट पर अटेली से अपना पहला चुनाव लड़ रही हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल की पोती श्रुति चौधरी, जो इस साल की शुरुआत में कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुईं, तोशाम से मैदान में हैं। चार बार की कांग्रेस विधायक और राज्य की पूर्व शिक्षा मंत्री गीता भुक्कल ने पीटीआई-भाषा को बताया कि कांग्रेस ने अन्य पार्टियों की तुलना में सबसे अधिक महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है।
उन्होंने कहा, "संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने वाला विधेयक पारित किया गया लेकिन इसे 2029 में लागू किया जाएगा जो महिलाओं के साथ मजाक है।"
भुक्कल झज्जर से चुनाव लड़ रही हैं। जींद जिले के जुलाना में कांग्रेस की तरफ से विनेश फोगट मैदान में हैं। वह कुश्ती की दुनिया की एक मशहूर हस्ती हैं, जो यौन उत्पीड़न के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का चेहरा बन गई थीं। पेरिस ओलंपिक 2024 में स्वर्ण पदक जीतने के अपने अभियान के अचानक खत्म होने के बाद उन्होंने कुश्ती से संन्यास ले लिया।
उनका मुकाबला आप की कविता दलाल से है, जो डब्ल्यूडब्ल्यूई में भाग लेने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान हैं। चुनाव लड़ने वाली सबसे प्रमुख महिला एशिया की सबसे अमीर महिला और ओपी जिंदल समूह की अध्यक्ष सावित्री जिंदल हैं।
हालांकि उन्हें भाजपा से टिकट मिलने की उम्मीद थी, लेकिन 74 वर्षीया ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव मैदान में प्रवेश किया और हरियाणा के मंत्री तथा हिसार के मौजूदा विधायक कमल गुप्ता के खिलाफ चुनाव लड़ रही हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के विश्वासपात्र निर्मल सिंह की बेटी चित्रा सरवारा कांग्रेस द्वारा टिकट न दिए जाने के बाद अंबाला छवनी सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरी हैं।
सरवारा ने 2019 का चुनाव भी निर्दलीय के तौर पर लड़ा था, जब कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया था और वे 44,000 से ज़्यादा वोटों के साथ दूसरे नंबर पर रही थीं। इस बार उनका मुकाबला बीजेपी के अनिल विज (छह बार विधायक और पूर्व गृह मंत्री) और कांग्रेस के परविंदर सिंह पारी से है।
आप की राबिया किदवई मुस्लिम बहुल नूह निर्वाचन क्षेत्र से पहली महिला उम्मीदवार हैं। किदवई का राजनीतिक इतिहास भी काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह हरियाणा के 13वें राज्यपाल अखलाक-उर-रहमान किदवई की पोती हैं।
हरियाणा की सबसे बड़ी विधानसभा बादशाहपुर में कुमुदनी राकेश दौलताबाद निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में हैं। उनके पति राकेश दौलताबाद 2019 में निर्दलीय के तौर पर चुनाव जीतकर इस सीट से विधायक थे। इस साल की शुरुआत में दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गई थी।
अशोका विश्वविद्यालय के त्रिवेणी सेंटर फॉर पॉलिटिकल डेटा (टीसीपीडी) के एक अध्ययन के अनुसार, हरियाणा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व हमेशा से चिंता का विषय रहा है, क्योंकि राज्य में महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रह और अपराध का इतिहास रहा है तथा लिंग-संबंधी मानदंडों पर राज्य का प्रदर्शन खराब रहा है।
रिपोर्ट में कहा गया है, "पिछले कुछ वर्षों में विधानसभा चुनावों में महिला उम्मीदवारों की बढ़ती संख्या और वर्ष 2000 से लेकर 2019 तक राज्य चुनावों में पुरुषों को आसानी से मात देने की उनकी क्षमता हरियाणा की राजनीति में महिलाओं के लिए एक सकारात्मक पहलू है। हालांकि, उक्त अवधि में निर्वाचित महिला विधायकों में से कई संपन्न राजनीतिक परिवारों से थीं, जिससे परिस्थितियां अपेक्षाकृत अपरिवर्तित रहीं।"
टीसीपीडी ने कहा, "हालांकि राजनीतिक वंशवाद की ऐसी प्रथाएं महिलाओं को चुनाव लड़ने, प्रतिनिधित्व करने और अपने मतदाताओं के हितों को आगे बढ़ाने का अवसर प्रदान करती हैं, लेकिन इससे पहले से ही संसाधन संपन्न राजनीतिक परिवारों के पास सत्ता का संकेन्द्रण हो जाता है।"
महेंद्रगढ़ स्थित हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के एक प्रोफेसर ने कहा कि राज्य की राजनीति अभी भी पितृसत्ता में निहित है।
उन्होंने कहा, "टिकट केवल बड़े राजनीतिक परिवारों से आने वाली महिलाओं को ही आवंटित किए जाते हैं। यह देखा जा सकता है कि स्वतंत्र रूप से या बिना मजबूत राजनीतिक समर्थन के चुनाव लड़ने पर महिलाओं के लिए जीत हासिल करना भी मुश्किल होता है।"
उन्होंने कहा, "इस बात को इस तथ्य से समझा जा सकता है कि 2000 से लेकर अब तक केवल एक महिला निर्दलीय उम्मीदवार शकुंतला भगवारिया ही हैं, जिन्होंने 2005 में स्वतंत्र रूप से चुनाव जीता था।"