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16 December 2024

पंजाब: अकाली संकट के ‘बादल’

पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और बेहद कद्दावर नेता रहे प्रकाश सिंह बादल से अकाल तख्त ने ‘फक्र-ए-कौम’ सम्मान वापस ले लिया है। यह अभूतपूर्व और अप्रत्याशित घटना है। बीते 2 दिसंबर को इसके साथ ही अकाली दल के अध्यक्ष रहे सुखबीर बादल को भी सजा सुनाई गई है। सजा के तौर पर सुखबीर बादल गले में प्रायश्चित की तख्ती डालकर अमृतसर के श्री हरमंदिर साहिब के लंगर घर में दो दिन तक जूठे बर्तन साफ करेंगे। इस घटना ने तकरीबन छह दशक से पंजाब की पंथक सियासत का पर्याय रही देश की सबसे पुरानी 1920 में स्थापित क्षेत्रीय पार्टी शिरोमणि अकाली दल के ऊपर संकट खड़ा कर दिया है। यह पंजाब और देश की राजनीति के लिए भी एक मायने में अहम है। यह घटना अकाल तख्त की राजनीतिक दिशा को नए सिरे से तय कर सकती है।

2015 में श्री गुरुग्रंथ साहिब की बेअदबी की घटनाओं और 2007 में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख राम रहीम द्वारा श्री गुरु गोबिंद सिंह जैसी वेशभूषा विवाद में तब की अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार ने सख्त कार्रवाई के बदले राम रहीम पर पुलिस के दर्ज मामले वापस लिए जाने के आरोप में सिखों के शीर्ष अकाल तख्त ने यह कार्रवाई की है। ताजा सुनाई गई सजा में सुखबीर बादल को प्रायश्चित के अलावा श्री केशगढ़ साहिब आनंदपुर, दमदमा साहिब, तलवंडी साबो, मुक्तसर साहिब और फतेहगढ़ साहिब के गुरुद्वारों में भी दो-दो दिन तक सेवादारों के वेश में हाथ में बरछा लिए सेवा करनी होगी।

2012 से 2017 के दौरान प्रकाश सिंह बादल की सरकार में उप-मुख्यमंत्री रहे सुखबीर को धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी के मामले में 30 अगस्त को श्री अकाल तख्त ने तनखैया घोषित किया था। इस मामले में तब के मंत्र‌िमंडल के सदस्यों को भी अकाल तख्त ने सजा के तौर पर श्री हरमंदिर साहिब के शौचालयों की सफाई का हुकुमनामा जारी किया था। तनखैया सुखबीर बादल को सजा सुनाए जाने की प्रतिक्रिया में पूर्व कैबिनेट मंत्री दलजीत चीमा ने कहा, “सजा को स्वीकार करते हैं। प्रकाश सिंह बादल दुनिया में नहीं रहे पर उनका फक्र-ए-कौम सम्मान वापस लिए जाने का श्री अकाल तख्त का फैसला भी शिरोमणि अकाली दल को मंजूर है। तख्त ने जो भी सजा सुनाई है वह सही होगी।”

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सुखबीर बादल के साथ बीबी जागीर कौर और अन्य

सुखबीर बादल के साथ बीबी जागीर कौर और अन्य

पहले ही अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे अकाली दल के नेताओं में श्री अकाल तख्त के इस फैसले को लेकर रार छिड़ी है। अकाली के ज्यादातर नेताओं ने जहां फैसले को स्वीकार किया है वहीं उसके कार्यकारी अध्यक्ष बलविंदर सिंह भूदंड़ ने गुनाह कबूलने से इनकार करते हुए कहा, “श्री अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी रघुबीर सिंह ने मुझ पर आरोप लगाया है कि मेरे घर में सिरसा के डेरा सच्चा सौदा के बाबा गुरमीत राम रहीम की बैठकें होती रही हैं। यह आरोप सरासर निराधार है।”  अकाली नेता प्रेम सिंह चंदुमाजरा के सुर भी श्री अकाल तख्त के फैसले के विरोध में हैं। इधर तब की अकाली-भाजपा सरकार में मंत्री रहे परमिंदर सिंह ढींढसा ने अपनी गलती मानते हुए कहा, “सरकार में रहते बेअदबी के मामले में ढील बरतने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई के बजाय उन्हें तरक्की दी गई, यह गुनाह मैंने भी किया है।”

धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी की घटनाओं पर श्री अकाल तख्त द्वारा तलब किए जाने पर मुख्यमंत्री रहते प्रकाश सिंह बादल ने भी 17 अक्टूबर 2015 को हरमंदिर साहिब में श्री अकाल तख्त के समक्ष पेश होकर तख्त के जत्थेदार को लिखे पत्र में अपनी गलती स्वीकार करते हुए लिखा था, “पंजाब का मुखिया होने के नाते मुझे ऐसी अप्रत्याशित घटनाओं की पूरी जानकारी है। मैंने अपने कर्तव्यों का पूरी लगन और मेहनत से पालन करने की कोश‌िश की है, लेकिन कभी-कभी कुछ अचानक घटित हो जाता है। इससे आपका मन गहरी पीड़ा से गुजरता है। इस मामले में हमारी पश्चात्ताप की भावना प्रबल है। ऐसी भावना के साथ मैं गुरु को नमन कर रहा हूं और प्रार्थना करता हूं कि गुरु साहिब शक्ति और दया प्रदान करें।”

धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी, डेरा सच्चा सौदा प्रमुख राम रहीम को माफीनामा जैसे पंथक मुद्दों से घिरे अकाली के हालिया चार विधानसभा सीटों पर उपचुनाव में पीछे हटने, पार्टी अध्यक्ष सुखबीर बादल को सिखों के शीर्ष अकाल तख्त साहिब द्वारा तनखैया (बहिष्कृत) करार देने के ढाई महीने बाद 16 नवंबर को अध्यक्ष पद से बादल के इस्तीफे के बाद पार्टी के कोषाध्यक्ष एनके शर्मा, तीन बार के विधायक रहे हरप्रीत संधू और कैबिनेट मंत्री रहे अनिल जोशी समेत एक दर्जन से अधिक नेताओं के पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफे से सियासी गलियारों में अकाली दल के भविष्य पर सवाल उठ रहे हैं। श्री अकाल तख्त ने 2 दिसंबर को सुनाए अपने फैसले में कहा है कि इस्तीफा देने वाले अकाली के सभी नेताओं के इस्तीफे मंजूर कर नया संगठन खड़ा किया जाए। इस बड़े फैसले ने कभी पंजाब की राजनीति का अजेय स्तंभ रहे अकाली दल के लिए एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है।

प्रकाश सिंह बादल के साथ हरसिमरत कौर

प्रकाश सिंह बादल के साथ हरसिमरत कौर

इस उथल-पुथल पर अकाली दल सुधार लहर के वरिष्ठ नेता सुखदेव सिंह ढींढसा, बीबी जगीर कौर, गुरप्रताप सिंह वडाला और चरणजीत सिंह बराड़ ने कहा, “श्री अकाल तख्त साहिब के सुखबीर बादल को तनखैया घोषित करने के फैसले के विरोध में अकाली से इस्तीफा देने वाले नेता तख्त साहिब के फैसले को चुनौती दे रहे हैं।” आउटलुक से बातचीत में अकाली के पूर्व प्रवक्ता रविंद्र सिंह का कहना है, “तनखैया करार दिए गए सुखबीर बादल और उनके समर्थक कई नेता श्री अकाल तख्त साहिब से सीधी टक्कर ले रहे हैं। शिरोमणि वर्किंग कमेटी के संस्थापक 124 अग्रणी नेताओं में से केवल 50 सदस्यों ने तनखैया घोषित सुखबीर बादल के इस्तीफे को स्वीकार न करने की बात करना श्री अकाल तख्त को चुनौती है।”

बीते 30 अगस्त को अमृतसर स्थित श्री अकाल तख्त साहिब ने सुखबीर बादल को तनखैया घोषित करते हुए कहा था, “2007 से 2017 के दौरान प्रकाश सिंह बादल की अगुवाई वाली अकाली-भाजपा सरकार के कार्यकाल में हुई गलतियों और गुनाहों के लिए जब तक सुखबीर बादल अकाल तख्त साहिब पेश होकर सिख पंथ से सार्वजनिक तौर पर माफी नहीं मांगते तब तक वह तनखैया घोषित रहेंगे।”

तनखैया घोषित होने के अगले ही दिन 31 अगस्त को सुखबीर बादल ने अकाल तख्त साहिब के समक्ष पेश होकर सिख पंथ से सार्वजनिक तौर पर माफी मांगी पर बादल कब तक तनखैया रहेंगे, तख्त ने इसका फैसला दीवाली के बाद तक टाल दिया था। इस बीच 13 नवम्बर को चार विधानसभा सीटों पर उपचुनाव से अकाली ने दूरी बनाए रखने का फैसला किया क्योंकि तनखैया घोषित सुखबीर बादल के चुनाव लड़ने व प्रचार पर प्रतिबंध लगा पर सुखबीर को तनखैया घोषित करने के वक्त श्री अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह ने यह भी स्पष्ट किया था कि शिरोमणि अकाली दल के अन्य नेताओं के चुनाव लड़ने व पार्टी की सियासी गतिविधियों पर किसी तरह की कोई पाबंदी नहीं होगी।

13 नवंबर को पंजाब की चार विधानसभा सीटों डेरा बाबा नानक, चब्बेवाल, गिद्दड़बाहा और बरनाला पर हुए उपचुनाव में सुखबीर बादल के गिद्दड़बाहा से चुनाव लड़ने की पूरी तैयारी थी पर श्री अकाल तख्त से तनखैया मामले में माफीनामा अटकने से सुखबीर के बदले अकाली को अपनी इस पारंपरिक सीट पर चुनाव लड़ाने के लिए कोई दूसरा सशक्त उम्मीदवार नहीं मिला। एक समय अकाली दल की सियासत का गढ़ रहा श्री मुक्तसर साहिब जिले का विधानसभा क्षेत्र गिद्दड़बाहा ही इस उपचुनाव में अकाली  के समक्ष चुनौती बन गया। इस सीट से प्रकाश सिंह बादल 1969, 1972, 1977, 1980 और 1985 में विधायक बनकर मुख्यमंत्री बने। यही नहीं, इसके बाद बादल ने यह विधानसभा क्षेत्र अपने भतीजे मनप्रीत बादल को सौंपा और वे भी यहां से चार बार विधायक चुने गए। आज के दिन इस विधानसभा क्षेत्र से अकाली के बागी डिंपी ढिल्लों आम आदमी पार्टी के विधायक के तौर पर चुने गए हैं।

प्रकाश सिंह बादल

तख्ती के साथ प्रकाश सिंह बादल

1920 में गठित शिरोमणि अकाली दल ने खुद को पंजाब की सिख पंथक सियासत के केंद्र के रूप में स्थापित किया। 1980 के दशक में ऑपरेशन ब्लू स्टार और उसके बाद की राजनीतिक उथल-पुथल में अकाली दल की भूमिका महत्वपूर्ण रही। पंजाब में कांग्रेस के वर्चस्व को चुनौती देने वाली ताकत के रूप में उभरा अकाली 1997 से 2017 तक भाजपा के साथ गठबंधन में सत्ता में रहा लेकिन 2015 में शिरोमणि अकाली दल के सत्ता में रहते श्री गुरुग्रंथ साहिब की बेअदबी की घटनाओं की ढीली जांच की आंच 2017 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनाव में अकाली-भाजपा गठबंधन पर भारी पड़ी। दूसरी ओर पंथक मुद्दों से घिरे पार्टी संगठन में गहराते भ‌ितरघात से सुखदेव सिंह ढींढसा, रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा और बीबी जगीर कौर सरीखे टकसाली अकाली नेताओं ने पार्टी से किनारा कर लिया।

2020 में केंद्र के तीन कृषि कानूनों के विरोध में पंजाब से उठे किसान आंदोलन के समर्थन में सुखबीर बादल की पत्नी हरसिमरत कौर के एनडीए सरकार की मंत्री से इस्तीफे के बाद अकाली के एनडीए से टूटे तीन दशक के गठबंधन के बाद पार्टी की स्थिति कमजोर होती गई। भाजपा से गठबंधन टूटने के बाद 2022 के विधानसभा चुनावों में अकेले मैदान में उतरा अकाली दल विधानसभा की 113 सीटों में से केवल तीन पर सिमट कर रह गया। अकाली से खाली हुई जगह में उभरी आम आदमी पार्टी ने 42 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 92 सीटों पर ऐतिहासिक जीत दर्ज की। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा से गठबंधन में लोकसभा की 13 में से चार सीटों पर जीत दर्ज करने वाले अकाली का वोट शेयर 27.8 प्रतिशत से घटकर 2024 के लोकसभा चुनाव में मात्र 4.5 प्रतिशत रह गया। मात्र एक लोकसभा सीट बठिंडा पर सिमटे अकाली दल का चुनाव नतीजों में लगातार खराब प्रदर्शन इसके तेजी से घटते जनाधार का संकेत है, इसीलिए उसने विधानसभा की चार सीटों पर हालिया उपचुनाव में पीछे हटने का फैसला लिया।

पंजाब की सियासत पर बीते पांच दशक से नजर रखने वाले पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ के राजनीतिशास्त्र विभाग के अध्यक्ष रहे रोनकी राम की मानें तो, “आंदोलनकारी किसानों के विरोध की वजह से पारंपरिक ग्रामीण सिख मतदाताओं के बीच कमजोर होती पकड़ से अकाली की सियासी जमीन तेजी से खिसक रही है। सुखबीर बादल की अपने पिता की तरह स्वीकार्यता नहीं है कि वे पार्टी के तमाम नेताओं को एकजुट रख सकें। इसलिए पार्टी भीतर-बाहर दोनों तरफ से कमजोर हुई है। पार्टी की भविष्य की सियासत के लिए यह खतरे की घंटी है।”

सोलह वर्षों तक पार्टी की कमान संभालने वाले सुखबीर बादल के इस्तीफे ने अकाली दल को एक ऐसे मोड़ पर ला खड़ा किया है जब पार्टी पहले से ही कई चुनौतियों से घिरी है। पंजाब के सियासी विश्लेषकों का मानना है कि सुखबीर का प्रधान पद से इस्तीफा एक युग के अंत व नई चुनौतियों का संकेत है। पार्टी के पास अब मौका है कि वह नए युवा नेतृत्व को आगे लाकर अपनी पारंपरिक जड़ों यानी किसानों व ग्रामीण मतदाताओं में विश्वास बहाली के अलावा पंथक सियासत के साथ अन्य समुदायों को भी जोड़ने की ऐसी रणनीति बनाए जो मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य के साथ मेल खा सके। क्या केवल नेतृत्व परिवर्तन से अकाली दल पंजाब में खोई अपनी सियासी जमीन फिर से हासिल कर सकेगा? जनता की विश्वास बहाली के बगैर यह ऐतिहासिक दल केवल इतिहास बनकर न सिमट जाए, यह खतरा आसन्न है।

 

 

 

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TAGS: Questions, sectarian Politics, decision of sri akal takht sahib
OUTLOOK 16 December, 2024
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