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27 October 2025

हरियाणाः पुलिसिया व्यवस्था पर प्रश्न

सूबे का पुलिस महकमा इन दिनों किसी थ्रिलर, सस्पेंस से भरपूर वेबसीरीज की पटकथा की तरह हो गया है। हर बीता हुआ दिन दो वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की आत्महत्याओं में नए अध्याय जोड़ रहा है। हरियाणा काडर के आइपीएस अधिकारी, एडीजीपी (एडिशनल डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस) वाइ.एस. पूरन कुमार ने बीते 7 अक्टूबर को अपने चंडीगढ़ आवास में खुद को गोली मार ली थी। मूल रूप से आंध्र के रहने वाले कुमार इंजीनियरिंग स्नातक थे। कुमार ने अंबाला और कुरुक्षेत्र एसपी के रूप में काम किया था। उसके बाद उन्होंने अंबाला और रोहतक रेंज के आइजी का पद भी संभाला। प्रारंभिक जांच में पुलिस आत्महत्या मान कर इसकी जांच कर रही थी। हालांकि उन्होंने आठ पन्नों का एक सुसाइड नोट छोड़ा था, जिसमें उन्होंने 16 अधिकारियों का नाम लिया था। इनमें से 15 नामों पर उन्होंने प्रताड़ना, मानसिक उत्पीड़न और सार्वजनिक अपमान जैसे गंभीर आरोप लगाए हैं, जबकि एक अधिकारी (आइएएस राजेश खुल्लर) की सहायता और ईमानदारी की तारीफ की थी। नोट में उन्होंने मुख्य रूप से हरियाणा डीजीपी शत्रुजीत कपूर और रोहतक एसपी नरेंद्र बिजारनिया के नाम पर जोर दिया था। नोट में उन्होंने दोनों के खिलाफ “जाति भेदभाव, जानबूझकर मानसिक रूप से प्रताड़ित करने, सार्वजनिक अपमान और अत्याचार” का आरोप लगाया है।

यह मामला अभी जांच प्रक्रिया में ही था कि महकमे के एक और पुलिस अधिकारी एएसआइ संदीप लाठर की आत्महत्या ने राज्य की पुलिस व्यवस्था को हिला दिया। लाठर ने आत्महत्या से पहले लिखे गए सुसाइड नोट में कुमार के दावों के विपरीत बातें लिखीं, जिसकी वजह से जांच और उलझ गई। रोहतक जिले में तैनात एएसआइ संदीप लाठर ने फांसी लगाकर आत्महत्या करने से पहले अपने सुसाइड नोट और एक वीडियो में दावा किया कि डीजीपी शत्रुजीत कपूर ‘‘सच्चे अधिकारी’’ हैं और पूरन कुमार भ्रष्ट थे। उन्होंने लिखा कि “पूरन कुमार जैसे अफसरों ने पुलिस विभाग की छवि खराब की है।” रिपोर्टों के मुताबिक, लाठर उस टीम का हिस्सा थे, जो पूरन कुमार के खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच कर रही थी।

एडीजीपी पूरन कुमार

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एडीजीपी पूरन कुमार

लाठर के सुसाइड नोट के आधार पर रोहतक पुलिस ने पूरन की पत्नी अमनीत कुमार, उनके भाई, (जो विधायक बताए जाते हैं) और दो अन्य लोगों के खिलाफ एफआइआर दर्ज की हैं। इन लोगों पर आरोप है कि पूरन कुमार और उनके परिजन लाठर पर दबाव बना रहे थे और उन्हें मानसिक रूप से परेशान कर रहे थे।

कुमार की पत्नी अमनीत आइएस हैं और फिलहाल हरियाण सरकार में विदेश सहयोग विभाग में आयुक्त और सचिव के पद पर तैनात हैं। पूरन की मौत के वक्त वे मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के साथ आधिकारिक यात्रा पर जापान में थीं। भारत लौटने पर उन्होंने कुमार का पोस्टमार्टम कराने से इनकार कर दिया था। उनका कहना था कि जब तक सभी नामजद अधिकारियों के खिलाफ एफआइआर दर्ज नहीं की जाती, वे अंतिम संस्कार नहीं करेंगी। हार कर पूरन कुमार के पोस्टमॉर्टम के लिए चंडीगढ़ पुलिस ने चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट को याचिका लगाई। अदालत के हस्तक्षेप के बाद उनकी पत्नी पोस्टमॉर्टम के लिए राजी हुईं। आठ दिन के गतिरोध के बाद, वीडियो रिकॉर्डिंग, मजिस्ट्रेट और विजिलेंस अधिकारी की मौजूदगी में पोस्टमॉर्टम हुआ और चंडीगढ़ में नौवें दिन पोस्टमार्टम के बाद पूरन कुमार का अंतिम संस्कार हो सका। पूरन कुमार की दोनों बेटियों ने पिता की चिता को मुखाग्नि दी। पूरन के परिवार के साथ पूरे वक्त हरियाणा पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहे। परिवार का कहना है कि वे केवल ‘‘न्याय’’ चाहते हैं, किसी से बदला नहीं चाहते।  

राजकीय सम्मान के साथ पूरन कुमार की अंत्येष्टि

 पूरन कुमार की अंत्येष्टि

अपने पति के लिए न्याय की मांग करने वाली अमनीत खुद अभी मुसीबत में हैं। एफआइआर दर्ज होने के बाद विवादों में आईं, अमनीत ने आरोप लगाया है कि “लाठर की मौत का इस्तेमाल पूरन के खिलाफ चल रही जांच को कमजोर करने के लिए किया जा रहा है।” इन आरोपों के बीच पूरन कुमार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा कर फांसी लगाने वाले एएसआइ संदीप लाठर के परिवार से मिलने मुख्यमंत्री नायब सैनी और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा उनके पैतृक गांव लाढौत पहुंचे। मुख्यमंत्री ने परिवार को इंसाफ का भरोसा दिलाया।

हाइप्रोफाइल मामले में पुलिस को अतिरिक्त सावधानी से लाठर का शव कब्जे में लेना पड़ा था, क्योंकि आत्महत्या के बाद गांववालों ने पोस्टमार्टम के लिए शव देने से इनकार कर दिया था। गांव वालों की मांग थी कि पूरन कुमार की पत्नी की गिरफ्तारी के बाद ही वे गांव के बेटे का अंतिम संस्कार करेंगे। गांववालों की यह भी मांग थी कि संदीप को शहीद का दर्जा, उनकी पत्नी को सरकारी नौकरी और आर्थिक मदद का सरकार लिखित आश्वासन दे। इसके बाद ही वे संदीप के शव को पोस्टमार्टम के लिए ले जाने देंगे। संदीप लाठर ने अपने आखिरी वीडियो में कहा था कि ‘‘आज भगत सिंह जिंदा होते, तो उन्हें शर्म आती कि हम किन लोगों के लिए लड़े। मैं भगत सिंह फैन हूं। मैं सक्षम हूं, मैं जमींदार का बेटा हूं। ईमानदारी की लड़ाई में अपनी कुर्बानी देने जा रहा हूं।’’

दोनों आत्महत्याओं ने पुलिस और प्रशासनिक ढांचे में मौजूद विरोधाभासों को उजागर कर दिया है। एक तरफ वरिष्ठ अधिकारी का सुसाइड नोट है, जिसमें उत्पीड़न, जाति भेदभाव और सत्ता के दुरुपयोग की बातें हैं तो दूसरी तरफ उसी महकमे के एएसआइ का बयान है, जो आरोप लगाने वाले वरिष्ठ अफसर को भ्रष्ट बता रहा है। पुलिस की असमंजस है कि कौन सही है और कौन गलत? अधिकारियों के मुताबिक, दोनों सुसाइड नोट की फॉरेंसिक जांच कराई जाएगी और कॉल डिटेल्स, ईमेल, लैपटॉप व मोबाइल डेटा की स्कैनिंग होगी।

एएसआइ संदीप लाठर

एएसआइ संदीप लाठर

चंडीगढ़ पुलिस ने पूरन कुमार मामले में दर्ज एफआइआर में, “आत्महत्या के लिए उकसाने” के साथ एससी/एसटी अत्याचार अधिनियम की कठोर धाराओं (धारा 3(2)(वी)) को भी शामिल किया है। राज्य सरकार ने जांच के लिए विशेष जांच टीम गठित की है, जिसका नेतृत्व चंडीगढ़ आइजी कर रहे हैं। इस बीच डीजीपी शत्रुजीत कपूर को छुट्टी पर भेज दिया गया है और रोहतक एसपी बिजारनिया का ट्रांसफर।

मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी का कहना है कि “कोई भी दोषी, कितना भी प्रभावशाली हो, बख्शा नहीं जाएगा।” इस पूरे घटनाक्रम ने प्रशासनिक, राजनैतिक और सामाजिक विमर्श पर नए सिरे से बहस छेड़ दी है। बहस का पूरा मुद्दा दलित अधिकारियों पर दबाव, जातीय प्रताड़ना और सत्ता संरचनाओं की जवाबदेही के इर्द-गिर्द सिमट गया है। विपक्षी दल जांच की निष्पक्षता पर सवाल उठा रहे हैं। दलित संगठनों की मांग है कि जांच सीबीआइ को सौंपी जाए। फिलहाल दोनों एफआइआर की जांच अलग-अलग एजेंसियों कर रही हैं। पूरन कुमार की आत्महत्या की जांच चंडीगढ़ पुलिस और एसआइटी कर रही है। लाठर की आत्महत्या की जांच रोहतक पुलिस के अधीन है।

कांग्रेस और आम आदमी पार्टी राज्य सरकार पर अपने अधिकारियों को बचाने का आरोप लग रही है। उनका कहना है कि इसकी स्वतंत्र एजेंसी से जांच होनी चाहिए। इस बीच लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी चंडीगढ़ पहुंचे और पूरन कुमार के परिवार से मिले। उन्होंने हरियाणा सरकार से ‘आरोपी अधिकारियों’ के खिलाफ फौरन कार्रवाई करने और परिवार को इंसाफ दिलाने की मांग की। राहुल गांधी लगभग पचास मिनट वहां रहे। राहुल ने कहा कि यह किसी एक परिवार का मामला नहीं है, सभी दलितों से जुड़ा मामला है। इससे बहस का रुख भ्रष्टाचार से दलित अत्याचार की ओर मुड़ गया है।

पूरन कुमार की मौत ने देशभर में चर्चा छेड़ दी है कि क्या पुलिस और प्रशासनिक ढांचे में जातीय पूर्वाग्रह अब भी मौजूद है? यह मामला सिर्फ दो आत्महत्याओं का नहीं,  बल्कि अफसरशाही, जातीय संघर्ष, पुलिस-प्रशासनिक संरचना और संस्थागत जवाबदेही का है। पूरन के नोट ने आरोप लगाया कि व्यवस्था ही उन्हें तबाह कर रही थी, लाठर ने इसे पलट दिया। दोनों आत्महत्याओं ने कहानी को उलझा दिया है। अब कानूनी प्रणाली, निष्पक्ष जांच एजेंसियों के सामने सच्चाई सामने लाने की बड़ी चुनौती होगी। दोनों परिवार उम्मीद कर रहे हैं कि सच सामने आए और उन्हें न्याय मिले।

 

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TAGS: suicide of two policemen, haryana, complicates the matter
OUTLOOK 27 October, 2025
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