Advertisement
12 September 2015

शुरुआत से समापन तक फीका रहा विश्व हिंदी सम्मेलन

गूगल

शुरूआत से पहले ही विवादों को लेकर चर्चा में रहा 10वां विश्व हिंदी सम्मेलन फीकेपन के साथ ही समाप्त हो गया। कई वर्षों बाद भारत में आयोजित हुआ विश्व हिंदी सम्मेलन महज एक मामूली सरकारी कार्यक्रम की तरह आयोजित होकर समाप्त हो गया। पूरे शोर सराबे के साथ उद्घाटन में आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपनी उपस्थिति से इस कार्यक्रम में कोई जान नहीं डाल पाए बल्कि उन्होंने इस विश्वस्तरीय सम्मेलन को और अधिक विवादों में ला खड़ा किया। समापन समारोह में अमिताभ बच्चन के पूर्व निर्धारित कार्यक्रम से जो थोड़ी बहुत आस आयोजकों ने लगा रखी थी वह भी महानायक के ऐन समय पर आने से इनकार कर देने से खत्म हो गई। कुल मिलाकर यह कार्यक्रम साहित्यिक न होकर राजनीतिक आयोजन बनकर रह गया।

सम्मेलन के विभिन्न सत्रों में पत्रकारों को जाने से रोकने एवं हिंदी के ख्यातिनाम लेखकों को आमंत्रित नहीं करने से यह आयोजन साहित्यिक कम, राजनीतिक ज्यादा नजर आया। कार्यक्रम का आयोजन भोपाल में होने के बावजूद इसमें भोपाल में ही रह रहे हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकारों को आमंत्रित नहीं कर उनकी उपेक्षा की गई। भोपाल में हिन्दी साहित्य के कई ऐसे शीर्षस्थ लेखक हैं, जिन्हें पद्मश्री और साहित्य अकादमी का अवार्ड मिला है और जिनकी रचनाओं के अनुवाद दुनिया की कई भाषाओं में हुए हैं। कुमार अंबुज कहते हैं कि भोपाल में पद्मश्री मंजूर एहतेशाम, पद्मश्री रमेशचंद्र शाह, पद्मश्री मेहरून्निसा परवेज, पद्मश्री ज्ञान चतुर्वेदी, साहित्य अकादमी से सम्मानित गोविन्द मिश्र, राजेश जोशी जैसे हिन्दी के शीर्षस्थ रचनाकारों सहित कई ऐसे साहित्यकार हैं, जिन्होंने हिन्दी को दुनिया में विस्तार दिया है, पर सरकार ने उन्हें आमंत्रित करना तक मुनासिब नहीं समझा। निश्चय ही इस आयोजन की मंशा हिन्दी भाषा को संरक्षित एवं विस्तार करने की नहीं थी, बल्कि कुछ और ही थी। साहित्यकारों ने सरकार से ऐसे आयोजनों पर श्वेत पत्र जारी करने की मांग की। साहित्य अकादमी से सम्मानित कवि राजेश जोशी कहते हैं का कहना है कि विश्व हिंदी सम्मेलन में हिंदी भाषा के साथ-साथ ज्ञान एवं विवेक के प्रवेश पर रोक लगा दी गई। यह कैसा सम्मेलन है, जिसमें हिंदी के वरिष्ठ भाषाविद एवं लेखकों को आमंत्रित नहीं किया गया। उन्होंने सवाल खड़े किए कि हिंदी भाषी प्रदेश में विश्व सम्मेलन करने से हिंदी का किस तरह से भला होगा? उन्होंने कहा कि इसमें अहिंदी भाषी लेखकों को भी बुलाया जाना चाहिए था।

इस सम्मेलन को आयोजन से पहले ही विवादों में लाने में आयोजकों और सरकार के मंत्रियों ने कोई कसर नहीं छोड़ी। सम्मेलन के एक दिन पूर्व केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री वी.के. सिंह ने कह दिया कि हिंदी के साहित्यकार पहले सम्मेलनों में जाकर आपस में लड़ते थे, खाते-पीते थे, दारू पीते थे, पर अब ऐसा नहीं है। उनके इस बयान की पूरे लेखक जगत में आलोचना हुई।

Advertisement

वहीं उद्घाटन सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भाषा के लुप्त होने पर ही उसकी महत्ता का पता चलता है। लुप्त होने से पहले चैतन्य हो जाए। उन्होंने चाय बेचते-बेचते हिंदी सीखी। हिन्दी के संवर्धन के आंदोलन गैर हिन्दी मातृभाषा वालों ने चलाए, यही बात प्रेरणा देती है। हिंदी को बढ़ाने में डिजिटल दुनिया की मुख्य भूमिका होगी। भविष्य में अंग्रेजी, चीनी और हिन्दी का दबदबा होगा। प्रधानमंत्री के भाषण पर वरिष्ठ लेखकों ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि प्रधानमंत्री ने हिंदी भाषा के विकास के लिए जिन बातों का जिक्र अपने भाषण में किया, वह सम्मेलन में कहीं दिखाई नहीं दिया।

विश्व हिंदी सम्मेलन के विभिन्न सत्रों में मीडिया के प्रवेश पर रोक ने इसे एक राजनीतिक आयोजन का शक्ल दे दिया। सम्मेलन में ‘गिरमिटिया देशों में हिंदी’, ‘विदेश नीति में हिंदी’, ‘प्रशासन में हिंदी’ एवं ‘विदेशों में हिंदी शिक्षण समस्याएं और समाधान’ विषयों पर समान्तर सत्रों का आयोजन किया गया। बताया गया कि इन सत्रों में सम्मेलन में शामिल विशेषज्ञों एवं वक्ताओं ने अपने-अपने विचारों को साझा कर हिंदी की समृद्धि पर जोर दिया। पर वहां पर क्या चर्चा हुई, इस बात की जानकारी सिर्फ प्रेस नोट से ही चल पाई। आयोजकों के इस व्यवहार पर वरिष्ठ पत्रकार लज्जाशंकर हरदेनिया कहते हैं, ‘ऐसा लगता है कि हिंदी को पत्रकारों एवं साहित्यकारों से खतरा है।’ वरिष्ठ पत्रकार शिवअनुराग पटैरया कहते हैं, ‘आयोजकों का यह निर्णय अनैतिक एवं अलोकतांत्रिक है। सरकार हिंदी भाषा का विकास नहीं चाहती। वह अंतर्विरोधों को बाहर नहीं आने देना चाहती। यह एक अनुष्ठान बनके रह गया है, जहां लंगर चल रहा है और हजारों लोग खाना खा रहे हैं।’ वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी ने भी कहा कि मीडिया से बचने की प्रवृत्ति क्यों थी, यह समझ से परे है।

 

 

 

 

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: 10वां विश्व हिंदी सम्मेलन, अमिताभ बच्चन, नरेंद्र मोदी, ज्ञान चतुर्वेदी, गोविन्द मिश्र, राजेश जोशी, भोपाल, 10th World Hindi Summit, Amitabh Bachchan, Narendra Modi, Gyan Chaturvedi, Govind Mishra, Rajesh Joshi, Bhopal
OUTLOOK 12 September, 2015
Advertisement