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17 May 2020

सूरत में फंसे बिहार के 3 लाख मजदूरों को घर जाने का अभी भी इंतजार, टिकट मिलने में हो रही परेशानी

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लॉकडाउन के तीसरे चरण की समाप्ति और करीब 15 दिनों से चलाए जा रहे श्रमिक स्पेशल ट्रेन के बावजूद भी गुजरात के सूरत में बिहार के करीब 3 लाख मजदूरों को अभी भी अपने घर लौटने का इंतजार है। मजदूरों के मुताबिक राज्य के लाख दावों के बाद भी इनलोगों को खाने से लेकर टिकट मिलने तक में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। श्रमिकों का आरोप है कि जिले में ट्रेन की टिकटों में धांधली हो रही है और ज्यादा पैसे वसूलकर टिकट उपलब्ध कराए जा रहे हैं।

मजदूरों का आरोप, टिकट की हो रही ब्लैकमेलिंग

24 साल के मनजीत कुमार सूरत की एक टेक्सटाइल कंपनी में साड़ी में छपाई का काम कर रहे थे। लॉकडाउन की वजह से पिछले दो महीने से काम-धंधा बंद है। बिहार के अरवल जिला से आने वाले मनजीत ने इस कंपनी में 18 दिन काम किया था जिसकी सैलरी मिल चुकी है। आधा मई बीत जाने के बाद अब इनके पास न पैसा है और न खाने को अन्न। इनका आरोप है कि जिले में 'श्रमिक स्पेशल' ट्रेन के टिकट के लिए बड़े पैमाने पर ब्लैकमेलिंग हो रही है। इस बाबत आउटलुक से बातचीत में सूरत के पुलिस कमिश्नर आर बी ब्रह्मभट्ट कहते हैं कि लाखों की तादात में श्रमिक फंसे हुए हैं। बिहार के करीब तीन लाख श्रमिक अभी भी यहां हैं। छोटे पैमाने पर ऐसा हो सकता है लेकिन यदि पुलिस के संज्ञान में मामला आता है तो जांच की जाएगी। 

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'सरकार न खाने को दे रही है और न घर भेजने का इंतजाम कर रही'

सूरत के गणेश नगर में रहने वाले यह कहानी अकेले मनजीत की नहीं है। मनजीत के साथ करीब 17 लोग अरवल जिला के और 20 लोग गया जिला के फंसे हुए हैं, जिनके हाथ में काम नहीं है। मजदूरों के मुताबिक पैसों की तंगी की वजह से जीवन यापन भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। आउटलुक को अपनी परेशानी बताते हुए मनजीत कहते हैं, “पिछले 15 दिनों से हमलोगों ने ठीक से खाना नहीं खाया है। नमक और रोटी खाकर रातें बितानी पड़ रही है। हर दिन इस आस में नींदें खुलती है कि आज हमलोग अपने घर चले जाएंगे। लेकिन टिकट नहीं मिल पाता है। इसमें भी पैरवी चल रही है। जिसकी पहुंच हैं उन्हें टिकट मिल जाता है। हमलोग करीब 13 दिनों से बिहार सरकार द्वारा जारी लिंक और फॉर्म को भर कर इंतजार में हैं, लेकिन कुछ नहीं हुआ।“

आगे टिकट के नाम पर उगाही का आरोप लगाते हुए कहते हैं, “एक आदमी ने सभी से 800 सौ रूपए लेते हुए आश्वासन दिया था कि एक से दो दिनों में टिकट मिल जाएगा। लेकिन, नहीं दिया। करीब दस दिन परेशान करने के बाद 14 मई को पैसा वापस किया है। बताईए हमलोग कहां जाए, क्या करें? सुबह कभी पांच बजे स्थानीय प्रशासन कहती है कि फॉर्म जमा करों तो कभी शाम को कहती है। चार घंटे लाइन में लगने के बाद कहती है कि आज जमा नहीं होगा, कल आना। अब तक सरकार की तरफ से किसी भी तरह की कोई सहायता नहीं की गई है। दाने-दाने को मोहताज हैं"

मनजीत के साथ रहने वाले गया जिला के 39 वर्षीय अशोक कुमार भी इसी फैक्ट्री में काम कर रहे थे। तीन बच्चे समेत 6 लोग गांव में हैं। वो बताते हैं, “सरकार न खाने को दे रही है और न घर भेजने का इंतजाम कर रही है। कभी-कभी ऐसा लगता है कि अपने परिवार को देखे बिना ही मर जाएंगे। पैसा तो नहीं है। मोबाइल बेचकर भी कोई यदि घर भेज दे तो चला जाउंगा।"

एक संगठन ने माना- टिकट में हो रही दलाली

सूरत में इन फंसे मजदूरों के मुताबिक कुछ स्थानीय लोग इसमें सक्रिय होकर 700 से 800 रूपए के टिकट को 1200 रूपए में उपलब्ध करा रहे हैं। इस बात की पुष्टि सूरत में ‘बिहार विकास परिषद’ के नाम के चल रहे संस्था के एक सदस्य रंजीत यादव भी करते हैं। वो बताते हैं, “जिला अधिकारी की तरफ से सौ से अधिक संगठनों को जिम्मेदारी दी गई है कि वो डेटा संग्रहित करें लेकिन अब इसमें उगाही हो रही है। दो हजार तक रूपए वसूले जा रहे हैं।“ हालांकि, इस बात की पुष्टि आउटलुक नहीं करता है। इससे इतर आउटलुक से बातचीत में डीएम धवन कुमार पटेल कहते हैं कि यदि एफआईआर या शिकायत की जाती है तो मामले को देखा जाएगा।

400 रूपए ज्यादा लेकर टिकट देने का आरोप

इन मजदूरों के मुताबिक इलाके में मुकेश कुमार वर्मा नाम का शख्स इस वसूली में संलिप्त है। आउटलुक से बातचीत में मुकेश के माध्यम से मिले टिकट से बिहार के गया जिला पहुंचे सुजीत कुमार बताते हैं, “क्या करें, उन्होंने बोला की इतना पैसा देना होगा तब जाओगे। अब 400 रूपए ज्यादा देकर आना पड़ा। ये टिकट भी बड़ी मुश्किल से हम पांच लोगों को मिली थी। कुछ दिन मुकेश ने धमकी भी दी थी कि टिकट नहीं दूंगा तो क्या करोगे? आपलोगों के पास कोई सबूत नहीं है।“ लेकिन, आउटलुक से बातचीत में मुकेश इन आरोपों से इनकार करते हैं। वो कहते हैं कि टिकट से 50 से 100 रूपए ही ज्यादा लिए जा रहे हैं। 

मनजीत बताते हैं कि अगर कुछ बंदोबस्त नहीं हुआ तो हमलोग 1600 किमी. दूर अपने घरों के लिए पैदल निकल जाएंगे। यहां मरने से अच्छा है घर पर मरे।

पुलिस कमिश्नर ने आरोपों का किया खंडन

टिकट के नाम पर पैसों की उगाली और मजदूरों की समस्या पर आउटलुक से बातचीत में पुलिस कमिश्नर आर. बी ब्रह्मभट्ट बताते हैं, “देखिए, इस बात को मैं मानता हूं कि दिक्कत हैं। प्रशासन की तरफ से खाने की व्यवस्था की जा रही है। कई स्थानीय गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) भी काम कर रहे हैं। अनेक राज्यों के 14 लाख प्रवासी श्रमिक जिला में हैं। तीन सौ ट्रेने हमारे पास रिजर्व हैं लेकिन राज्यों की डिमांड नहीं है। यदि हमारी तरफ से 10 ट्रेनों की बात कही जाती है तो बिहार जैसे राज्य पांच ट्रेने ही देती है। अब हमलोग क्या कर सकते हैं। टिकट का कार्य स्थानीय एनजीओ और उनके समुदाय से आने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं के जिम्मे सौंपा गया है। ताकि उनकी भाषा में ही उन्हें मदद की जाए। टिकट के नाम पर इतनी बड़ी राशि लेना मेरे संज्ञान में नहीं है लेकिन एक बात मानना पड़ेगा कि कई एक्ट्रा खर्च आ रहे हैं जिसकी वजह से 50 से 100 रूपए लिए जा सकते हैं।“

'इसमें बिहार सरकार क्या करे'

वहीं, बिहार में पिछले करीब 15 सालों से सरकार चला रही जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) पार्टी के प्रवक्ता डॉ. अजय आलोक बताते हैं, “पुलिस कमिश्नर द्वारा कही गई बात गलत हैं। हमलोग लगातार ट्रेनें चलवा रहे हैं। अब तक 48 ट्रेने चलाई जा चुकी है। राज्य सरकार ने 3 मई को ही एनओसी भर कर दे दिया था ताकि गुजरात जरूरत के मुताबिक ट्रेन भेजे। हमें यह मानना होगा कि दस फीसदी मजदूर ही राज्य आना चाहते हैं जो ज्यादा-से-ज्यादा 6 महीने पहले गए थे। अब तक अलग-अलग राज्यों से 250 ट्रेने चलाई जा चुकी है। एक सप्ताह में और ट्रेने चलाई जाएगी। खाने की व्यवस्था उपलब्ध करवाना स्थानीय प्रशासन की जिम्मेदारी है।“ पैसे की वसूली पर अजय आलोक कहते हैं कि इसमें बिहार सरकार क्या कर सकती है? नीतीश सरकार द्वारा क्वारेंटाइन बाद इसीलिए हजार-हजार रूपए देने की योजना बनाई गई है ताकि प्रवासियों को दिक्कत नहीं हो।

अजय आलोक की बातों का सूरत के पुलिस कमिश्नर खंडन करते हैं। वो कहते हैं, “किसे शौक है कि ट्रेन की अनुमति मिली हो और राज्य से मजदूरों को न भेजा जाए। जहां तक सवाल खाने का है तो सूरत में एक भी व्यक्ति भूखा नहीं रह रहा है।“

'टोल फ्री नंबर और वेबसाइट किसी काम का नहीं'

इसके अलावा भी कई श्रमिकों की शिकायत है कि बिहार सरकार द्वारा जारी किए गए नंबर और वेबसाइट काम नहीं कर रही है। इस सवाल पर 15 मई को अजय आलोक कहते हैं कि मैं इसे तुरंत संज्ञान में लेता हूं लेकिन यह वेबसाइट रविवार तक भी नहीं ठीक हो पाई है। श्रमिकों के मुताबिक यह स्थिति पिछले 15 दिनों से बनी हुई है।

 

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TAGS: 3 lakh laborers of Bihar, trapped in Surat, waiting to go home, trouble getting tickets, Neeraj Jha
OUTLOOK 17 May, 2020
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