कोरोना संक्रमित होने पर बच्चों ने मां को छोड़ा बेसहारा, देवदूत बन नर्सों ने बचाई जान
लतिका ( काल्पनिक ) को नहीं मालूम कि उसके बच्चे अचानक इतने कठोर कैसे हो गये। बेटा, दामाद सब तो रांची में ही रहते हैं। थक चुकी उम्र में उसे भी कोरोना ने घेर लिया था। 29 अप्रैल की बात है, परिजनों ने सदर अस्पताल पहुंचा दिया। शायद उम्र के इस पड़ाव में मां के गुजरजाने की उम्मीद में फिर किसी ने अस्पताल में झांकना और खोज खबर लेना भी मुनासिब नहीं समझा।
उसी मां का जिसने बचपन में न जाने कितने नाज से बेटे को पाला होगा। पति रेलवे में थे, मौत के बाद अनुकंपा पर बेटे ने नौकरी पाई थी। वह खुद भी बेटे के साथ रेलवे कॉलनी में रहती थी। बच्चे देखने नहीं आये तो अस्पताल की नर्सों, कर्मियों को दया आई। उन्होंने ने ही देखभाल की। खाना खिलाने, कपड़े बदलने, बाल संवारने से लेकर शौच कराने तक।
मां की तरह देखभाल की तो लतिका की तबीयत ठीक हो गई। करीब बीस दिनों तक अस्पताल में रही। तेलुगू भाषा बोलती थी तो दूसरे उसकी बात समझ नहीं पाते थे। नतीजतन, घर, बच्चों, फोन के बारे में जानकारी तक नहीं ले पाये। कोई जानने भी नहीं आया। अंतत: रांची के डीसी, डीडीसी, अस्पताल प्रबंधन के लोगों उसे 19 मई को रांची में ही नगड़ी इलाके में वृद्धाश्रम पहुंचा दिया।
इस बीच बच्चों की बेरुखी की खबर और बुजुर्ग महिला की तस्वीर सोशल मीडिया में वायरल हो गई। तक किसी जानकार ने उनके बेटे और दामाद को और उनके बारे में जानकारी दी। फजीहत की तब परिजन गुरुवार को उसे वापस घर ले गये।