दास्ताने दंगाः ‘अताली को, मुजफ्फरनगर नहीं बनने देंगे’
सब लुट गया, मदरसे और रिश्तेदारों के यहां शरण
तनाव देखते हुए इन मुसलमानों की यह ईद अताली में हो या, न हो लेकिन गांव लौटने का इनका जज्बा जिंदा है। हालांकि इनका सब कुछ आग के हवाले हो चुका है। बचा सामान लूट लिया गया है। सारी जिंदगी की गृहस्थी दोबारा जोड़ने में न जाने कितना वक्त लगे। इस समय अताली गांव में एक भी मुसलमान परिवार नहीं है। कई गांव से सटे कस्बे बल्लभगढ़ के मदरसे में तो कई उसके आसपास किराये का मकान लेकर या अपने रिश्तेदारों के यहां रह रहे हैं।
कुछ मिल जाए तो ठीक नहीं तो पानी से इफ्तारी
रमजान का पाक महीना चल रहा है। एक ओर वीआईपी इफ्तार पार्टियां चल रही हैं लेकिन अताली के अपने घर से उजड़े मुसलमान रोटी से बेजार हो गए हैं। आदिबा खातून कहती हैं ‘ पहले तो रमजान की भी खुशी होती थी आने वाली ईद की भी खुशी नहीं है। इफ्तार में कोई कुछ दे जाए तो ठीक है, नहीं तो पानी से इफ्तारी कर लेते हैं। ’
अताली में मुसलमानों का सामाजिक बहिष्कार
मुसलमानों की ओर से इस पूरे मसले का नेतृत्व कर रहे साबिर अली का कहना है, ‘लोगों के पास रोजगार नहीं है। अताली में पहला दंगा (25 मई ) होने के बाद जब हम लोग दोबारा गांव गए तो दबंगों ने फरमान दिया कि मुसलमानों को अगर कोई सौदा देगा, पंक्चर लगाएगा, इलाज करेगा, ऑटो में बिठाएगा, रिचार्ज करेगा तो उसपर 11,000 रुपये जुर्माना लगेगा। ’ साबिर के अनुसार गांव में एक-एक पल भारी पड़ रहा था। ऑटो वाला ऑटो में नहीं बिठाता था, राशन वाला राशन नहीं दे रहा था, कोई भी रोजमर्रा की जरूरतों का सामान नहीं दे रहा था। साबिर के अनुसार गांव के दबंगों का दबदबा पलवल और बल्लभगढ़ तक है। गांव छोड़ने के बाद भी रोजगार नहीं मिल रहा है। जैसे ही किसी को पता लगता है कि अताली से है, वह फौरन काम से हटा देता है। दिल्ली जैसे शहर में आकर बसना इनके लिए आसान नहीं है।
मुजफ्फरनगर के दंगों जैसे नारे और माहौल
हम अताली को मुजफ्फरनगर के हालात से इसलिए भी जोड़ सकते हैं कि पीड़ितों ने बताया कि उनके ऊपर हुए 25 मई (पहला हमला) और 4 जुलाई (दूसरा हमला) वाले हमले में दंगाइयों की भीड़ मुसलमानों के खिलाफ वैसे ही नारे लगा रही थी जैसे मुजफ्फरनगर के दंगों में लगे थे। उनके पास वैसे ही हथियार थे। वे मुसलमान बहु-बेटियों को बुरा-भला बोल रहे थे। हालांकि अताली वाले हमले में किसी मुसलमान महिला के साथ किसी भी प्रकार की बद्तमीजी का मामला सामने नहीं आया है।
दबंगों की महिलाओं ने उकसाया भीड़ को
साबिर अली ने बताया कि 4 जुलाई को हुआ दूसरा हमला ज्यादा खतरनाक था क्योंकि उसमें एक तो भीड़ ज्यादा थी दूसरा वह भीड़ गांव की नहीं थी। वह भीड़ गांव की औरतों के आह्वान पर इकट्ठी हुई थी। साबिर के अनुसार अताली के दबंग समुदाय की महिलाएं आसपास के दूसरे गांवों में ट्रैक्टरों में गईं और अपनी चूड़ियां वहां फेंककर कहकर आईं कि ‘वहां अताली में मस्जिद बन रही है और तुम लोग चूड़ियां पहनकर बैठे रहो।’ यही नहीं दंगों के बाद आरोपियों की गिरफ्तारी में भी महिलाओं ने अड़चन डाली।
अताली दंगे में भी वायरल हुआ एक वीडियो
शायद दो समुदायों में दंगे करवाने की साजिश और कोशिश एक सी होती है। निजी कारणों से शुरू करवाए गए विवाद दंगों का रूप ले रहे हैं। दो दिन पहले पलवल (हरियाणा) में शुरू हुआ सांप्रदायिक तनाव भी ऐसा ही है, जो सार्वजनिक नल पर नहाने को लेकर शुरू हुआ है। अताली में 4 जुलाई वाले दंगे में हुबहू ऐसा ही एसएमएस चलाया गया जैसा कि मुजफ्फरनगर के दंगों के वक्त कव्वाल गांव वाले मामले में चलाया गया था। अताली के मामले में किसी दूसरी जगह के मंदिर पर हो रहे पथराव को अताली के मंदिर में पथराव बताकर यह वीडियो व्हॉट्सएप पर खूब चलाया गया। फिलहाल कहा जा सकता है कि भरी गर्मी में बेघर हुए इन मुसलमानों के हालात बद से बदतर हैं।
बुजुर्ग राजीनामे को तैयार लेकिन दंबगों की युवा पीढ़ी संभाले नहीं संभल रही
बल्लभगढ़ मदरसे में मौजूद ऑल इंडिया तंजीम-ए इंसाफ के अमीक जामई का कहना है कि गांव में मुसलमानों के लगभग 150 परिवार हैं। सभी घर छोड़ चुके हैं। अमीक का यह भी कहना है कि कुछ बुजुर्ग जाट नेताओं से बात हुई है , वे तो राजीनामे को तैयार हैं लेकिन उन नेताओं का कहना है कि युवा लड़के संभाले नहीं संभल रहे। जामई कहते हैं, ‘ नई पीढ़ी के अंदर इतनी नफरत इन मुसलमानों की मुश्किलें कम नहीं होने दे रही लेकिन फिर भी कोशिश है कि आर्य समाज बहुल इस इलाके में शांति मार्च निकाले जाएं और ईद तक कोई रास्ता निकल सके। ’