बिहार: ड्राफ्ट वोटर लिस्ट पर सियासी दलों ने साधी चुप्पी, 14 दिन बाद भी किसी ने नहीं उठाई आपत्ति
भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) को बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के बाद मसौदा मतदाता सूची पर कुल 23,557 दावे और आपत्तियां प्राप्त हुईं, जिनमें से 741 शिकायतों का निपटारा कर दिया गया है, गुरुवार को एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया।
ईसीआई के प्रेस नोट के अनुसार, 14 दिनों के बाद किसी भी राजनीतिक दल द्वारा कोई दावा या आपत्ति प्रस्तुत नहीं की गई है। 18 वर्ष या उससे अधिक आयु के नये मतदाताओं से कुल 87,966 फॉर्म प्राप्त हुए हैं, जिनमें बीएलएएस से प्राप्त छह फॉर्म भी शामिल हैं।
नियमों के अनुसार, पात्रता दस्तावेजों के सत्यापन के सात दिन बाद संबंधित ईआरओ/एईआरओ द्वारा दावों और आपत्तियों का निपटान किया जाना है।
प्रेस नोट में कहा गया है कि एसआईआर के आदेशों के अनुसार, 1 अगस्त 2025 को प्रकाशित मसौदा सूची से किसी भी नाम को ईआरओ/एईआरओ द्वारा जांच करने और निष्पक्ष एवं उचित अवसर दिए जाने के बाद स्पष्ट आदेश पारित किए बिना नहीं हटाया जा सकता।
चुनाव आयोग ने चुनावी राज्य बिहार में एसआईआर प्रक्रिया के बाद 1 अगस्त को मतदाता सूची का मसौदा प्रकाशित किया था। अंतिम मतदाता सूची दावे और आपत्तियों के लिए दिए गए एक महीने के समय के बाद जारी की जाएगी।
इससे पहले बुधवार तक, चुनाव आयोग को मतदाताओं की 17,665 शिकायतें प्राप्त हुईं, जिनमें से 341 का निपटारा कर दिया गया। 18 वर्ष या उससे अधिक आयु के नए मतदाताओं से कुल 74,525 फॉर्म प्राप्त हुए, जिनमें बीएलएएस से प्राप्त छह फॉर्म भी शामिल हैं।
इस बीच, मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में मतदाता सूचियों की एसआईआर कराने के चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की और कहा कि चुनाव आयोग का यह कहना सही था कि आधार कार्ड नागरिकता का निर्णायक प्रमाण नहीं है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने यह भी टिप्पणी की कि मतदाता सूची में नागरिकों और गैर-नागरिकों को शामिल करना और बाहर करना भारत निर्वाचन आयोग के अधिकार क्षेत्र में आता है।
सुनवाई के दौरान राजद सांसद मनोज कुमार झा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पीठ से कहा कि लगभग 65 लाख मतदाताओं को मसौदा मतदाता सूची से बाहर करना, जबकि उनके नाम शामिल करने पर कोई आपत्ति नहीं है, अवैध है।
इस पर पीठ ने कहा कि नियमों के अनुसार, बाहर रखे गए व्यक्तियों को शामिल किए जाने के लिए आवेदन प्रस्तुत करना होगा और केवल इसी स्तर पर किसी की आपत्ति पर विचार किया जाएगा।
सर्वोच्च न्यायालय इस दलील से भी सहमत नहीं था कि बिहार के लोगों के पास एसआईआर के दौरान ईसीआई द्वारा सबूत के तौर पर मांगे गए अधिकांश दस्तावेज नहीं हैं।