जयललिता को सुप्रीम कोर्ट से झटका
न्यायामूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने कहा कि विशेष सरकारी वकील की नियुक्ति कानूनन अनुचित है, वह अन्नाद्रमुक प्रमुख समेत अन्य दोषियों की अपीलों की नए सिरे से सुनवाई का समर्थन नहीं करती। पीठ ने कहा, तमिलनाडु को कोई अधिकार नहीं है कि वह प्रतिवादी संख्या चार (सिंह) को विशेष सरकारी वकील के रूप में नियुक्त करे।
न्यायमूर्ति आर.के. अग्रवाल और न्यायमूर्ति प्रफुल्ल सी पंत की पीठ ने यह भी कहा कि यह न्यायामूर्ति मदन बी लोकुर के उन निष्कर्षों का समर्थन नहीं करती कि उच्च न्यायालय के समक्ष अपील पर नए सिरे से सुनवाई होनी चाहिए। पीठ ने द्रमुक नेता के. अंबझागन और कर्नाटक को भी अनुमति दी कि वे कल तक उच्च न्यायालय के समक्ष अपने लिखित हलफनामा दाखिल कर सकते हैं। पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय इस मामले में अंबझागन और राज्य के निवेदनों पर गौर करने के बाद फैसला सुना सकता है।
विशेष सरकारी वकील की नियुक्ति के कानूनी प्रावधानों के बारे में पीठ ने कहा कि सिंह की नियुक्ति सिर्फ निचली अदालत में सुनवाई के लिए थी। शीर्ष अदालत ने विशेष सरकारी वकील के रूप में सिंह की नियुक्ति के मुद्दे पर अपना फैसला 22 अप्रैल को सुरक्षित रख लिया था और कहा था कि यह नियुक्ति प्रथम दृष्ट्या अनियमितताओं से घिरी लगती है लेकिन वह उच्च न्यायालय के समक्ष नए सिरे से सुनवाई की अनुमति नहीं देगी।
द्रमुक नेता ने इस मामले में विशेष सरकारी वकील के रूप में नियुक्त सिंह को हटाने की याचिका दायर की थी। पीठ ने द्रमुक नेता को भी यह अनुमति दी कि वह उच्च न्यायालय के समक्ष अपना निवेदन दायर करें, ताकि वह जयललिता और अन्य द्वारा दायर अपील पर फैसला सुनाने से पहले इस निवेदन पर गौर कर ले।
न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति आर भानुमति के खंडित निर्णय के बाद यह मामला 15 अप्रैल को वृहद पीठ के पास भेज दिया गया था। इससे पहले दो सदस्यीय पीठ की अध्यक्षता करते हुए न्यायमूर्ति लोकुर ने अंबझागन की याचिका स्वीकार करते हुए अपनी दोषसिद्धि के खिलाफ दायर अन्नाद्रमुक प्रमुख की याचिका पर ताजा सुनवाई के आदेश दे दिए थे। तब उन्होंने कहा था कि अब तक की अपील की कार्यवाही दूषित की गई है। न्यायमूर्ति आर भानुमति ने न्यायमूर्ति लोकुर से अलग विचार रखते हुए कहा था कि विशेष सरकारी वकील को कर्नाटक उच्च न्यायालय के समक्ष राज्य का प्रतिनिधित्व करने का पूरा अधिकार है।
18 साल पुराने भ्रष्टाचार के मामले में, आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति के संचय के लिए जयललिता, उनकी करीबी सहयोगी शशिकला और उनके दो संबंधियों को पिछले साल 27 सितंबर को चार साल जेल की सजा सुनाई गई थी। विशेष अदालत ने अन्नाद्रमुक प्रमुख पर 100 करोड़ रुपए का और तीन अन्य दोषियों पर 10-10 करोड़ रुपए का जुर्माना भी लगाया था।
शीर्ष अदालत ने 17 अक्तूबर, 2014 को जयललिता को सशर्त जमानत दे दी थी। शीर्ष अदालत ने 17 अप्रैल को जयललिता की जमानत अवधि को कर्नाटक उच्च न्यायालय में उनकी अपील का निपटान हो जाने तक के लिए बढ़ा दिया था। अन्यथा जमानत की अवधि 18 अप्रैल को समाप्त हो जानी थी। प्रधान न्यायाधीश एच एल दत्तू की पीठ ने भी अन्नाद्रमुक प्रमुख की अपील पर फैसला करने के लिए उच्च न्यायालय को 12 मई तक का समय दिया है।