राजस्थान BJP अध्यक्ष के दावेदार गजेंद्र सिंह शेखावत पर भूमि हड़पने का केस दर्ज
रामगोपाल जाट
दुनिया में अलग तरह से होने वाले निवेश के लिए प्रसिद्ध पश्चिमी राजस्थान का जोधपुर जिला करीब 6 साल बाद एक बार फिर सुर्खियों में है। कांग्रेस के शासनकाल में जहां तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सरकार के कैबिनेट मंत्री महिपाल मदेरणा द्वारा एक नर्स के साथ संबंध बनाने और उनकी हत्या के मामले में सुर्खियां बटोरने वाला जोधपुर इस बार कस्टोडियन प्रॉपर्टी के फर्जी पट्टे काटने के मामले में विवादों में आ गया है। इस बार भी एक मंत्री ही विवादों में है, फर्क इतना है कि तब राज्य के मंत्री विवाद के बीच थे तो इस बार पीएम मोदी कैबिनेट में एक मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत हैं।
जिस कंपनी द्वारा कस्टोडियन प्रॉपर्टी को खरीदा गया है, उसमें मोदी सरकार के कृषि राज्यमंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की हिस्सेदारी की बात सामने आ रही है। इस प्रकरण में मंत्री शेखावत ने कहा है कि उनका इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है। शेखावत ने कंपनी में कोई हिस्सेदारी होने से भी इनकार किया है। दूसरी तरफ जोधपुर नगर निगम मेयर घनश्याम ओझा ने इस अति गंभीर आरोप की जांच के आदेश दे दिए हैं।
पाकिस्तान चला गया परिवार
आपको बता दें कि जोधपुर जिले के कई इलाकों में आए दिन सरकारी जमीनों पर कब्जे करने के मामले सामने आते रहते हैं। यह बिलकुल वैसा ही मामला है। भारत-पाक बंटवारे के समय भारत छोड़कर पाकिस्तान में बस गए लोगों की जोधपुर जिले में स्थित जमीनों पर कब्जे हो गए। इतना ही नहीं, बल्कि कई भूमाफियाओं ने जोधपुर नगर निगम से फर्जी पट्टे भी जारी करवा लिए। जिस ताजा मामले में मंत्री शेखावत का नाम सामने आ रहा है, वह बेशकीमती जमीन जोधपुर शहर में शनिश्चरजी का थान के नीचे, सरदारपुरा की सड़क पर स्थित है।
बताया जाता है कि इस जमीन के मालिक खान बहादुर मिर्जा और कासिम बेग समेत कई दूसरे मालिक पाकिस्तान चले गए थे। इसका मतलब यह है कि जमीन कस्टोडियन, यानि निर्वासित हो चुके लोगों की प्रॉपर्टी अब सरकार की हो गई।
जयपुर में रहता है परिवार
अब इस तरह की जमीनों पर मालिकाना हक नगर निगम जोधपुर का है। सूत्रों का कहना है कि शहर के भीतर रहने वाला एक परिवार, जो कि अभी राजधानी जयपुर में न्यू सांगानेर रोड पर रहता है, उन्होंने ने ही जोधपुर नगर निगम के तत्कालीन अफसरों के साथ सांठगांठ कर जाली कागजात के जरिए फर्जी पट्टे बना लिए। इन पट्टों को बेच भी दिया, लेकिन कई बरसों बाद भी पुराने कब्जाधारियों से यह जमीन खाली नहीं करवा पाए।
करीब 6 साल पहले की बात है, जब जोधपुर की ही धनलक्ष्मी रियल मार्ट प्रा. लि. कंपनी ने यह जमीन करीब सवा करोड़ में खरीद ली। मज़ेदार बात यह कि जोधपुर नगर निगम ने इस जमीन के असल दस्तावेजों की जांच किए बगैर ही फर्जी पट्टा जारी कर दिया। अब अगर, तब जोधपुर निगम पूरे मामले की जांच करा कर मुकदमा दर्ज कराए तो 50 करोड़ से ज्यादा की सरकारी संपत्ति बचाई जा सकती है।
जांच के आदेश
मामले को लेकर मोदी सरकार के मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत का कहना है कि उनका इस प्रकरण से कोई लेना-देना नही है। शेखावत का कहना है कि उनका कम्पनी में भी कोई हिस्सेदारी है। इधर, जोधपुर नगर निगम के मेयर घनश्याम ओझा बताते हैं कि यह मामला काफी पुराना है, इसलिए पूरे प्रकरण की हम बहुत बारीकी से जांच कराएंगे। ओझा का कहना है कि दस्तावेज जांच कर सक्षम अधिकारी से कानूनी कार्रवाई करेंगे।
अब नहीं हैं निदेशक
ओझा ने बताया कि इस संबंध में यूओ नोट जारी करने के अलावा मामले की जांच कराकर जो भी जरूरी होगी, वह कार्रवाई करेंगे, इसकी रिपोर्ट मांग ली गई है। दूसरी ओर कंपनी के एक डायरेक्टर मुकेश सिंघवी का कहना है कि सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत इस कंपनी में केंद्रीय मंत्री बनने से पहले तक जुड़े हुए थे। आज की तारीख में सिंघवी के अलावा केवलचंद डाकलिया और ऋषभ डागा निदेशक हैं। इस जमीन का पट्टा जोधपुर हिज हाईनेस की ओर से जारी किया गया है। शेखावत यहां के राजपरिवार से हैं।
ऐसे बनी थी कस्टोडियन की ज़मीन
आपको बता दें कि देश की आजादी से पहले जमीनों का काम विकास विभाग नामक एक अलग डिपार्टमेंट के पास होता था। डिपार्टमेंट के रजिस्ट्री, नकल, पट्टा इमारती, कोतवाली रिकॉर्ड में आज़ादी से पहले 15 अक्टूबर 1934 भूखंड संख्या 104 व 105 के तहत इसके मालिक खान बहादुर मिर्जा, कासिम बेग, वसीम बेग आदि के नाम से जारी हुआ था। चूंकि उक्त सभी लोग भारत-पाक बंटवारे के वक्त पाकिस्तान चले गए थे। ऐसे में यह जमीन द एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ इवेक्यूई प्रॉपर्टी एक्ट 1950 के तहत कस्टोडियन की संपत्ति हो गई। इस तरह की जमीनों का संरक्षक जोधपुर नगर निगम है। नगर निगम बताता है कि पाकिस्तान के वसीम बेग ने एक दावा भारत सरकार में लगाया था, किन्तु उसका अभी तक कोई फैसला नहीं हुआ है।
फर्जी पट्टे पर फर्जी पट्टा
नगर निगम से मिली जानकारी के मुताबिक, शहर के बागर चौक में रहने वाले एक व्यक्ति पुरुषोत्तम प्रसाद माथुर ने आजादी के करीब 7 साल बाद, 1955 में निगम से एक फर्जी पट्टा बनवाया। इसके लिए माथुर ने 1896 के कागजात पेश किए थे। सवाल यह उठता है कि जब पुरषोत्तम माथुर के पास इतना पुराना पट्टा था, तो उसने मिर्जा बेग काे पट्टे देने का कभी विरोध क्यों नहीं किया। पट्टा जारी करने से पहले जोधपुर नगर निगम को भी मूल पट्टों से मिलान व प्रमाणीकरण करना था, लेकिन नोटशीट पर मिलान व प्रमाणित करना कहीं भी वर्णन नहीं हैं। इसका असल कारण वह पट्टा ही फर्जी था। ऐसे में पट्टे की प्रति पर मिलान व सही पाए जाने का नोट अंकित ही नहीं किया गया है। भारत-पाक विभाजन के बाद यह कस्टोडियन प्रॉपर्टी लावारिस पड़ी थी, इसलिए वहां के दबंग लोगों ने कब्जे कर रखे थे।
दबंगों का कब्जा था
पुरुषोत्तम माथुर ने फर्जी पट्टा बनावाकर अपने ही परिवार के 16 जनों में बंटवारा भी कर दिया लेकिन कभी भी कब्जाधारी लोगों से कब्जा खाली नहीं करवा पाया। दबंगो के कब्जे में रहने के कारण बरसों तक यह बेशकीमती सम्पत्ति खाली ही पड़ी रही। इसके बाद पुरषोत्तम माथुर ने साल 2012 में मैसर्स धनलक्ष्मी रियल मार्ट प्रा. लि. को बेचान कर दी गई। इस बेचान पत्र में साफ लिखा हुआ है कि कब्जाधारियों को खाली कराने की जिम्मेदारी खरीददार कंपनी की ही होगी।
कम डीएलसी पर खरीदी जमीन
जोधपुर नगर निगम के ही सूत्रों के मुताबिक खरीदने वाली कंपनी के तीनों निदेशकों, ऋषभ डागा, केवलचन्द डाकलिया एवं मनोज सिंघवी ने कुल 1236 वर्ग गज जमीन, जिसकी कीमत 1 करोड़ 23 लाख रुपए में खरीदना बताया गया है। इधर, तभी इस जमीन की बाजार दरों पर कीमत 50 करोड़ से ज्यादा की थी। मज़ेदार बात यह है कि खरीद भी डीएलसी से काफी कम पर दिखाई गई है। यदि, उस वक्त की डीएलसी दर से खरीद होती, तो इस जमीन की वास्तविक कीमत 2 करोड़ 11 लाख रुपए की राशि भुगतान करनी पड़ती।
शेखावत भी निदेशक थे
विवाद तब हुआ, जब खरीददारों ने यहां से कब्जा हटाकर कॉम्पलेक्स बनाने का प्रयास किया। तब इस कंपनी के शेयर होल्डर्स में वर्तमान मोदी सरकार में कृषि राज्य मंत्री गजेंद्रसिंह शेखावत भी थे। गंभीर बात यह है कि जोधपुर कमिश्नर की मौका रिपोर्ट में बताया गया है कि उस दौरान मौके पर शेखावत भी मौजूद थे। इतना ही नहीं, बल्कि उन्होंने न्यायालय में भी बतौर कंपनी डायरेक्टर शपथ पत्र पेश किए थे। आज की तारीख में इस जमीन पर कोर्ट स्टे है।