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21 May 2021

महाराष्ट्र : नहीं मिलेगा मराठा वर्ग को कोटा, केंद्र और राज्य सुप्रीम कोर्ट को समझाने में रहे नाकाम

महाराष्ट्र में जुलाई 2014 में कांग्रेस और नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) की अगुवाई वाली सरकार ने अध्यादेश के जरिए मराठा समुदाय के लिए नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में 16 फीसदी आरक्षण लागू किया था। कई चरणों में इस पर लगी रोक के बाद आखिरकार 5 मई 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया। पांच जजों वाली संविधान पीठ ने पिछली देवेंद्र फडणवीस सरकार के समय नवंबर 2018 में विधानसभा से पारित सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग (एसईबीसी) आरक्षण अधिनियम 2018 को खारिज कर दिया। जस्टिस अशोक भूषण, एल. नागेश्वर राव, हेमंत गुप्ता, एस. अब्दुल नजीर और एस. रवींद्र भट की पीठ के अनुसार, “यह समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है। अब तक इसके तहत मिली नौकरियां और एडमिशन बरकरार रहेंगे, लेकिन आगे इसका लाभ नहीं मिलेगा।”

सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता कपिल सांखला कहते हैं, “न्यायालय ने स्पष्ट किया कि मराठा समाज को आरक्षण की जरूरत नहीं है। वह समाजिक और आर्थिक तौर पर पिछड़ा नहीं है।” 1992 के इंदिरा साहनी मामले पर दोबारा विचार की मांग को कोर्ट ने यह कह कर खारिज कर दिया कि पहले चार संविधान पीठ मामले को देख चुकी है और वह फैसला नजीर है। असाधारण परिस्थिति में ही 50 फीसदी से अधिक आरक्षण पर विचार किया जा सकता है। 1992 में सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की बेंच ने अधिवक्ता इंदिरा साहनी की याचिका पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए अधिकतम 50 फीसदी आरक्षण की सीमा तय की थी।

मराठा आरक्षण की आग दशकों से सुलग रही है। 2014 में विधानसभा चुनाव से पहले महाराष्ट्र सरकार ने अध्यादेश के जरिए इसे लागू किया था, लेकिन उसका फायदा कांग्रेस-एनसीपी को नहीं मिला। चुनाव बाद सत्ता में आई फडणवीस सरकार इस संबंध में कानून लेकर आई। लेकिन बॉम्बे हाइकोर्ट ने 7 अप्रैल 2015 को इसके तहत भर्तियों पर रोक लगा दी। तब फडणवीस ने पिछड़ा वर्ग आयोग गठित कर नवंबर 2018 में मराठा समाज को शिक्षा और नौकरियों में 16 फीसदी आरक्षण देने का कानून पारित किया। जून 2019 में हाइकोर्ट ने इसे कम करते हुए शिक्षा में 12 और नौकरियों में 13 फीसदी आरक्षण निर्धारित किया।

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नवंबर 2018 से सितंबर 2020 तक भर्ती हुए 3,000 सरकारी कर्मियों की स्थायी भर्ती पेंडिंग है, वे इससे वंचित हो सकते हैं

 

मराठा आरक्षण सुप्रीम कोर्ट में खारिज होने के बाद राजनीति भी शुरू हो गई है। उद्धव ठाकरे सरकार का कहना है कि इसके पीछे केंद्र और भाजपा है। वहीं, भाजपा का कहना है कि राज्य सरकार ने मामले को सही तरीके से कोर्ट में पेश नहीं किया। कैबिनेट मंत्री और एनसीपी नेता नवाब मलिक का कहना है कि फडणवीस मराठा आरक्षण के विरोध में रहे हैं। वे महाराष्ट्र को अस्थिर करना चाहते हैं।

पूर्व केंद्रीय मंत्री, शिवसेना प्रवक्ता और लोकसभा सांसद अरविंद सावंत कहते हैं, “मराठा में बड़ी संख्या में पिछड़े परिवार हैं। क्या सुप्रीम कोर्ट इस बात से अनजान है कि कई राज्य 50 फीसदी आरक्षण के दायरे को पार कर चुके हैं? हम इसके अवलोकन के लिए हाइकोर्ट के दो सेवानिवृत्त जजों की अगुवाई में कमेटी बना रहे हैं। मामले को फिर से कोर्ट में पेश किया जाएगा।” लेकिन सांखला के अनुसार रिव्यू मुश्किल है, क्योंकि अधिकांश फैसले पहले से तय हैं।

राज्य के पूर्व मंत्री और भाजपा महासचिव चंद्रशेखर बावनकुले महा विकास अघाड़ी सरकार पर आरोप लगाते हुए कहते हैं, “सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के बीच समन्वय की कमी से ये फैसला आया है। राज्य सरकार ने गायकवाड़ कमेटी की 1,600 पन्ने की मराठी में लिखी रिपोर्ट का अंग्रेजी अनुवाद सुप्रीम कोर्ट में नहीं रखा। आरक्षण के 50% के दायरे से बाहर जाने के लिए असाधारण परिस्थिति को दर्शाना होगा।”

मराठा आरक्षण रद्द होने से अब इस समुदाय को कोटा का लाभ नहीं मिलेगा। नवंबर 2018 से सितंबर 2020 तक भर्ती हुए 3,000 सरकारी कर्मियों की स्थायी भर्ती पेंडिंग है। वे इससे वंचित हो सकते हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री सावंत कहते हैं, “सभी कानूनी परिप्रेक्ष्य पर विचार कर रास्ता निकाला जाएगा।”

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OUTLOOK 21 May, 2021
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