बोडोलैंड शांति समझौते पर लगी मुहर, गांधी की पुण्यतिथि पर हथियारों सहित समर्पण करेंगे बोडो कैडर
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की मौजूदगी में आज प्रतिबंधित संगठन, ‘नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड’ (एनडीएफबी) के सभी गुटों के प्रतिनिधियों के साथ एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर हुए। बोडो शांति समझौते पर हस्ताक्षर होते वक्त गृहमंत्री अमित शाह के अलावा असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल और हेमंत बिस्व सरमा भी मौजूद थे। साथ में बोडो आंदोलन से जुड़े सभी बड़े नेता भी शामिल थे।
गांधी की पुण्यतिथि पर 1535 लोग अपनाएंगे शांति का रास्ता
शांति समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद अब 30 जनवरी को 1,535 बोडो कैडर हथियारों के साथ समर्पण करेंगे। इस मौके पर अमित शाह ने कहा, “मैं भरोसा दिलाना चाहता हूं कि सरकार बोडो समुदाय के विकास के लिए प्रतिबद्ध है। इस समझौते से असम विभाजन की आशंका खत्म हो गई है।” शाह ने कहा कि इस शांति समझौते से असम और बोडो समुदाय के लोगों का भविष्य सुनहरा होगा। उन्होंने कहा, “मैं सभी प्रतिनिधियों को आश्वासन देता हूं कि किए गए वादों को तय सीमा के अंदर पूरा किया जाएगा। यह समझौता, बोडो भाषा और संस्कृति की सुरक्षा करने सहित उनकी प्रमुख राजनीतिक और आर्थिक मांगों को पूरा करने के लिए है।”
समझौते में सभी गुट साथ
संधि पर हस्ताक्षर करने का नेतृत्व एनडीएफबी गुट का नेतृत्व रंजन दैमारी, गोविंदा बासुमतारी, धीरेन बोरो और बी सौरीगरा कर रहे हैं। 2015 में सौरीगरा ने एनडीएफबी के मुखिया आईके सोंगबीजित को हटा कर मुखिया बन गए थे। सौरीगरा पर आरोप है दिसंबर 2014 में उसने लगभग 70 आदिवासियों की हत्या का आदेश दिया था। असम में अलग बोडोलैंड की मांग को लेकर सालों तक संघर्ष चला है। इसमें कई सुरक्षाकर्मियों, आंदोलन से जुड़े लोगों के अलावा कई आम नागरिकों ने अपनी जान गंवाई है।
एनडीएफबी-सौरीगरा गुट एक पखवाड़े पहले ही अपने बेस म्यांमार से इस शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए भारत लौटा है। नेताओं ने सरकार से अपने सभी ऑपरेशन वापस लेने का समझौता किया है। इसी तरह एनडीएफबी (आर) के प्रमुख रंजन दैमारी को भी शांति समझौते में भाग लेने के लिए गुवाहाटी उच्च न्यायालय की विशेष गठित खंडपीठ ने चार सप्ताह की अंतरिम जमानत दी है। दैमारी पर 30 अक्टूबर, 2008 में सिलसिलेवार बम धमाकों का दोष सिद्ध हो चुका है और उसे इस मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है।
बोडो संस्कृति का रखा जाएगा खयाल
बोडो लोगों को विशेष राजनीतिक अधिकार प्रदान करने से पहले, एक आयोग गठित किए जाने की संभावना है, ताकि असम के हर वर्ग से बात की जा सके। एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है, “इस समझौते से बोडो लोगों के राजनीतिक अधिकारों का मार्ग प्रशस्त होगा। कुछ आर्थिक पैकेज की घोषणा भी हो सकती है।”
असम सरकार में कैबिनेट मंत्री हेमंत बिस्व सरमा ने समझौते के बारे में कहा कि इसमें बोडो समुदाय की सभ्यता और संस्कृति के संरक्षण का पूरा ख्याल रखा जाएगा। सरमा ने बताया कि जल्द ही उपेंद्र नाथ बोरोमा के नाम पर एक केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाया जाएगा। समझौते में शिक्षा, खेल और चिकित्सा से जुड़े कई संस्थान खोलने का जिक्र है।
समझौते का विरोध भी
इस बीच असम में इस समझौते का विरोध शुरू हो गया है। गैर बोडो इस शांति समझौते का विरोध कर रहे हैं और उन्होंने 12 घंटे के असम बंद का आह्वान किया है। इसके कारण बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद (बीटीसी) के तहत आने वाले चार जिलों में जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। अधिकारियों का कहना है कि कोकराझार, बक्सा, चिरांग और उदलगुरी जिलों में सामान्य जनजीवन प्रभावित हुआ है, लेकिन राज्य के अन्य क्षेत्रों में बंद का कोई असर नहीं हुआ।
असम विधानसभा में विपक्ष के नेता देबब्रत सैकिया ने मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल से रविवार को अपील की कि वे बोडो समूहों के साथ किसी भी शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने से पहले सभी पक्षकारों को विश्वास में लें।
गैर-बोडो संगठन यह मांग कर रहे हैं कि बोडोलैंड टेरिटोरियल एडमिनिस्ट्रेटिव डिस्ट्रिक्ट्स (बीटीएडी) में रहने वाले सभी गैर-बोडो हितधारकों और प्रतिबंधित कामतापुर लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन (केएलओ) के लोगों को भी शांति वार्ता में शामिल किया जाना चाहिए था।