छत्तीसगढ़: बस्तर में मुठभेड़ में दो नक्सली ढेर, अब तक 953 ने किया आत्मसमर्पण
छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में नक्सल विरोधी अभियान को एक और बड़ी सफलता मिली है। कोंडागांव और नारायणपुर जिलों की सीमा पर मंगलवार को हुई मुठभेड़ में सुरक्षाबलों ने दो नक्सलियों को मार गिराया। घटनास्थल से एक एके-47 राइफल और दोनों नक्सलियों के शव बरामद किए गए हैं।
बस्तर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक (आईजी) सुंदरराज पी. ने बताया कि मुठभेड़ के बाद इलाके में सर्च ऑपरेशन अब भी जारी है। यह मुठभेड़ ऐसे समय पर हुई है जब राज्य सरकार की पुनर्वास नीति और 'लोन वर्राटु' (घर लौटो) अभियान के चलते बड़ी संख्या में नक्सली आत्मसमर्पण कर रहे हैं।
हाल ही में दंतेवाड़ा जिले में 26 माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया, जिनमें तीन पर इनाम भी घोषित था। आत्मसमर्पण जिला रिजर्व गार्ड (DRG) मुख्यालय में हुआ। इसे छत्तीसगढ़ पुलिस, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) और राज्य सरकार की संयुक्त पुनर्वास नीति के तहत अंजाम दिया गया।
आईजी सुंदरराज के अनुसार, अब तक 'लोन वर्राटु' अभियान के तहत कुल 953 नक्सली आत्मसमर्पण कर चुके हैं, जिनमें 224 इनामी नक्सली शामिल हैं। आत्मसमर्पण करने वालों को सरकार ₹50,000 की तात्कालिक सहायता, कौशल विकास प्रशिक्षण, कृषि भूमि, प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर और अन्य सुविधाएं दे रही है।
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने भी नक्सल उन्मूलन की दिशा में सरकार की पुनर्वास नीतियों की सराहना की। उन्होंने बताया कि अब तक कुल 1,314 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है। इनमें से कई को उनकी योग्यता के अनुसार तृतीय और चतुर्थ श्रेणी की सरकारी नौकरियों में भी नियुक्त किया गया है। राज्य सरकार ने आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों के लिए 15,000 आवास की व्यवस्था की है।
मुख्यमंत्री ने बताया कि सरकार बनने के बाद उन्होंने गृह मंत्री विजय शर्मा को अन्य राज्यों, विशेष रूप से असम, भेजा था ताकि वहां की पुनर्वास नीतियों का अध्ययन किया जा सके। “हमने नक्सलियों से कहा था कि वे बंदूकें छोड़कर विकास की मुख्यधारा में लौट आएं,” मुख्यमंत्री साय ने कहा।
उन्होंने दावा किया कि छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद अब अपने अंतिम चरण में है। बीते 18 महीनों में 359 इनामी नक्सली मारे गए हैं, जो इस बात का संकेत है कि राज्य तेजी से नक्सल हिंसा से उबर रहा है।
छत्तीसगढ़ की संवेदनशील पुनर्वास नीति और सुरक्षा बलों की सटीक रणनीति की बदौलत बस्तर अब धीरे-धीरे हिंसा के साए से बाहर निकलकर विकास की राह पर अग्रसर हो रहा है।