कठुआ केस पर कोर्ट ने कहा कि आदर्श न्याय का हुआ पालन, विशाल को बरी करने पर उठे सवाल
कठुआ रेप और हत्या के मामले में विशाल जंगोत्रा बरी हो गया था। इस मामले में कोर्ट ने अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए कई सबूतों को नकारते हुए कहा, कि संभवत: उनसे कोई गलती हो रही है। अदालत ने चश्मदीद गवाह के मौखिक बयान को तरजीह नहीं दी और विशाल को बरी कर दिया है। अदालत का कहना है कि इस मामले में ‘आदर्श न्याय’ किया गया है।
मकान मालकिन के बयान को तरजीह
कठुआ दुष्कर्म और हत्याकांड में बरी एकमात्र आरोपी को निचली अदालत ने बरी कर दिया था क्योंकि उसने अभियोजन पक्ष के तीन चश्मदीद गवाहों के बयानों को नहीं माना था। विशाल को छोड़ने का यही आधार था। चश्मदीद गवाह का दावा किया था कि मुख्य दोषी सांजी राम का बेटा विशाल जंगोत्रा भी अपराध के वक्त उस इलाके में मौजूद था। लेकिन जिला और सत्र न्यायाधीश तेजविंदर सिंह ने विशाल की मकान मालकिन के बयान को तरजीह दी। मकान मालकिन ने बयान दिया था कि वह उत्तर प्रदेश के मेरठ में था। विशाल यहां , कॉलेज में पढ़ाई कर रहा है।
10 जून को आया है फैसला
इस मामले में हाल ही में 10 जून को फैसला आया है। 432 पन्नों के फैसले में अभियोजन पक्ष के वकील ने तीन चश्मदीदों के बयान पर भरोसा किया था, जिसमें उन्होंने विशाल को कठुआ में देखे जाने का दावा किया था। उन्होंने फरेंसिक विशेषज्ञ की इस राय को भी माना कि विशाल की लिखाई के नमूने उसके कॉलेज की उत्तर पुस्तिका से नहीं मिलते।
अभियोजन पक्ष ने पेश किए थे कई सबूत
विशाल ने सुबूत के तौर पर अपने कॉलेज की उपस्थिति रजिस्टर में किए गए दस्तखत अदालत में पेश किए थे। उसने साबित करने की कोशिश की थी वह मेरठ में था न कि जम्मू-कश्मीर में। हालांकि अभियोजन ने घटना के दिनों में विशाल की मोबाइल लोकेशन के भी सुबूत दिए थे। अभियोजन पक्ष के चश्मदीदों का विश्लेषण करते हुए अदालत ने कहा कि उसकी राय है कि ये गवाह पहचान को लेकर कोई गलती कर रहे हैं।
सात आरोपियों में से सिर्फ विशाल बरी
कठुआ में बंजारा समुदाय की आठ साल की लड़की की बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई थी। इसम मामले में प्रवेश और सांजी राम को सजा सुनाई गई है जबकि विशाल को सबूत के अभाव में बरी कर दिया गया है। हालांकि बंजारा समुदाय के चश्मदीदों ने अदालत में विशाल की पहचान की थी लेकिन जज ने उनके बयान को नहीं माना और कहा कि इन लोगों ने समाचार चैनल या उसके स्टाफ के खिलाफ किसी अधिकारी के समक्ष कोई शिकायत कभी दाखिल नहीं की और मौखिक गवाही को नहीं माना जा सकता। अदालत ने सात आरोपियों में से केवल विशाल को बरी किया था। तीन पुलिसकर्मियों को साक्ष्य नष्ट करने के मामले में पांच साल कैद की सजा सुनाई गई है।
अमानवीय और बर्बर
विशेष अदालत ने इस घटना को "सबसे शर्मनाक, अमानवीय और बर्बर तरीके" से किया गया "शैतानी और राक्षसी" अपराध करार दिया था। और कहा था कि इसके लिए ‘आदर्श न्याय’ की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर इस मामले की सुनवाई कर रही जिला और सत्र अदालत ने 10 जून को इस मामले में छह लोगों को दोषी ठहराया था।