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25 August 2017

उन 5 साहसी लोगों की कहानी जिन्होंने गुरमीत राम रहीम को जेल पहुंचा दिया

15 साल पुराने यौन शोषण मामले में डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को सीबीआई कोर्ट ने कुल 20 साल की सजा सुनाई है। लेकिन इस पूरे मामले में सबसे अहम वो लोग रहे जिन्होंने गुरमीत राम रहीम को सलाखों के पीछे पहुंचाने में अपना योगदान दिया। शुरुआत दो साध्वियों ने की जो 15 सालों तक इस लड़ाई को दबाव के बावजूद लड़ती रहीं। इनके अलावा एक स्थानीय पत्रकार रामचंद्र छत्रपति ने भी गुरमीत के खिलाफ मोर्चा खोला, जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा। ये लोग ना होते तो कभी ना पता चलता कि डेरा आश्रम के अंदर क्या चल रहा है। वहीं राम रहीम को जेल पहुंचाने में जज जगदीप सिंह और सीबीआई अफसर मुलिंजा नारायण को भी अहम भूमिका रही है। मुलिंजा नारायण पर भी केस बंद करने का काफी दबाव डाला गया था लेकिन वो अड़े रहे। आइए, इन लोगों के बारे में जानते हैं।

'दो वीरांगनाएं'

इस पूरे मामले में उन दो साध्वियों के साहस को सलाम हैं, जिन्होंने धमकी, दबाव के बावजूद अदालत का दरवाजा खटखटाया। दरअसल, इस पूरे मामले की शुरुआत एक गुमनाम खत से हुई थी, जिस पर आज राम रहीम फंसे हुए हैं। उन पर रेप का आरोप एक खत से लगा था। ये खत 13 मई 2002 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को लिखा गया था। इस खत में एक लड़की ने सिरसा डेरा सच्चा सौदा में गुरु राम रहीम के हाथों अपने यौन शोषण का किस्सा बताया था। दोहरियाणा हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की गई थी। अदालत के आदेश पर वर्ष 2001 में पूरे मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई। सीबीआई ने सारी रिपोर्ट सीबीआई की विशेष अदालत पंचकूला को सौंप दी थी। 

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इनमें से एक साध्वी के भाई रणजीत सिंह की हत्या कर दी गई थी। डेरा वालों को शक था कि इसने ही वह चिट्ठी फैलाई है, जिसमें गुरमीत सिंह पर यौन शोषण का आरोप लगाया गया। हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, गुरमीत सिंह पर फैसला आने के बाद साध्वी की 73 साल की मां ने कहा कि फैसले में समय बहुत लग गया। मेरा तो न्याय से भरोसा उठ गया था। हालांकि उन्हें खुशी थी कि फैसला उनके पक्ष में था।

असल में साध्वी का परिवार गुरमीत सिंह का बहुत बड़ा भक्त हुआ करता था। साध्वी के लिए ये बहुत मुश्किल था, जिसने परिवार के खिलाफ जाकर आवाज उठाई। हालांकि बाद में परिवार को समझ में आया और वे गुरमीत से अलग हो गए। साध्वी के भाई की पत्नी ने कहा कि हमारा न्याय पर भरोसा मजबूत हुआ है। काश ये देखने के लिए पापजी जिंदा होते। 

असल में साध्वी के पिता 35 सालों तक गांव के सरपंच थे। उनकी पिछले साल मौत हो गई। साध्वी के भाई की पत्नी बताती हैं कि उनके पति डेरा के बहुत बड़े भक्त थे। उन्होंने घर पर डेरा प्रमुख के लिए घर पर एक कमरा भी बनवाया था, जहां अक्सर डेरा प्रमुख आते थे। बाद में उनका (पति का) डेरा से मोहभंग हो गया।

इस बीच साध्वी डेरा से तमाम दबाव के बीच कोर्ट में गवाही देती रही, जबकि गुरमीत सिंह प्रेस कांफ्रेंसिग के जरिए कोर्ट से मुखातिब होता था।

दूसरी साध्वी भी बहादुरी के साथ केस लड़ती रही।

बहादुर पत्रकार रामचंद्र छत्रपति

गुरमीत राम रहीम पर हत्या का भी आरोप है। साध्वी से दुष्कर्म के मामले को सिरसा के लोकल सांध्य दैनिक ‘पूरा सच’ के संपादक रामचंद्र छत्रपति ने प्रमुखता से छापा जिससे हड़कंप मच गया। इतना ही नहीं जब साध्वी के भाई रणजीत सिंह की हत्या हुई तो रामचंद्र ने अपने अखबार में डेरा सच्चा सौदा मुखिया गुरमीत पर हत्या कराने का आरोप लगाते हुए खबर छापी।

24 अक्टूबर 2002 को  छत्रपति पर गोली चली, जिसमें वो घायल हो गए। 21 नवंबर 2002 को सिरसा के पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की दिल्ली के अपोलो अस्पताल में मौत हो गई। इस पर दिसंबर 2002 को छत्रपति परिवार ने पुलिस जांच से असंतुष्ट होकर मुख्यमंत्री से मामले की जांच सीबीआई से करवाए जाने की मांग की। जनवरी 2003 में पत्रकार छत्रपति के बेटे अंशुल छत्रपति ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर छत्रपति प्रकरण की सीबीआई जांच करवाए जाने की मांग की। याचिका में डेरा प्रमुख गुरमीत सिंह पर हत्या किए जाने का आरोप लगाया गया। 

हाई कोर्ट ने पत्रकार छत्रपति और रणजीत की हत्या में डेरा सच्चा कनेक्शन होने पर एक साथ सुनवाई शुरू की। हाईकोर्ट ने 10 नवंबर 2003 को सीबीआई को एफआईआर दर्ज कर जांच के आदेश जारी किए। दिसंबर 2003 में सीबीआई ने छत्रपति व रणजीत हत्याकांड में जांच शुरू कर दी। दिसंबर 2003 में डेरा के लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर सीबीआई जांच पर रोक लगाने की मांग की। सुप्रीम कोर्ट ने उक्त याचिका को खारिज कर दिया। पिता रामचंद्र की लड़ाई आगे बढ़ाने के लिए उनके बेटे अंशुल छत्रपति भी बधाई के पात्र हैं। 

जज जगदीप सिंह 

रेप के आरोप में गुरमीत राम रहीम को दोषी करार देने वाले जज जगदीप सिंह की चर्चा सबसे ज्यादा हो रही है। इन्हीं की कलम ने ये ऐतिहासिक निर्णय दिया। अपनी ईमानदारी और सख़्त स्वभाव के लिए अपने साथियों में चर्चित जगदीप सिंह हरियाणा के रहने वाले हैं।

जगदीप सिंह ने साल 2012 में हरियाणा ज्यूडिशियल सर्विस ज्वॉइन की। उनकी पहली पोस्टिंग सोनीपत में रही और सीबीआई कोर्ट में उनकी दूसरी पोस्टिंग है। ज्यूडिशियल सर्विस में आने से पहले जगदीप सिंह पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट के वकील थे। अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश रह चुके जगदीप सिंह पिछले साल ही सीबीआई कोर्ट के जज नियुक्त किए गए। जगदीप सिंह ने साल 2000 में पंजाब यूनिवर्सिटी से वकालत की डिग्री ली। यूनिवर्सिटी के दिनों से जगदीप को जानने वाले कहते हैं कि वे कॉलेज के समय में बेहद प्रतिभाशाली छात्र रहे हैं। न्यायिक सेवा में आने से पहले जगदीप सिंह पंजाब और हरियाणा कोर्ट में वकालत करते थे। वह 2000 और 2012 में कई सिविल और क्रिमिनल केस लड़ चुके हैं।

जगदीप सिंह के जानने वाले उनको जज के अलावा एक रियल लाइफ के हीरो के रुप भी में जानते हैं। दरअसल, जगदीप सिंह सितंबर 2016 में पहली बार सुर्खियों में तब आए, जब उन्होंने एक सड़क हादसे में घायल हुए चार लोगों की जिंदगी बचाई। जिस वक्त ये हादसा हुआ था उस वक्त जगदीप हिसार से पंचकुला जा रहे थे। उन्होंने तुरंत अपनी गाड़ी रुकवाई और घायलों को गाड़ी से बाहर निकाला। उन्होंने एम्बुलेंस को कॉल किया, लेकिन एम्बुलेंस नहीं आई। इसलिए उन्होंने एक गाड़ी रुकवाई और चारों घायलों को अस्पताल पहुंचाया।

सीबीआई अफसर मुलिंजा नारायणन

जज जगदीप सिंह के अलावा सीबीआई के एक अधिकारी का भी राम रहीम को सलाखों के पीछ पहुंचाने में अहम योगदान है। इस अधिकारी के हौंसले को न तो नेताओं का दवाब डिगा सका और न हीं अपने वरिष्ठ अधिकारीयों का। ये अधिकारी थे सीबीआई के तत्कालीन डीआईजी मुलिंजा नारायणन। इन दोनों के हौसले को सलाम जिनकी वजह रेपिस्ट बाबा गुरमीत राम रहीम सलाखों के पीछे पहुंच पाया।

साल 2007 में सीबीआई के तत्कालीन डीआईजी मुलिंजा नारायणन को राम रहीम का केस बंद करने के लिए सौंपा गया था। मुलिंजा ने बताया कि जिस दिन उन्हें केस सौंपा गया था, उसी दिन उनके वरिष्ठ अधिकारी उनके कमरे में आए और साफ कहा कि यह केस तुम्हें जांच करने के लिए नहीं, बंद करने के लिए सौंपा गया है। मुलिंजा नारायणन पर केस को बंद करने के लिए काफी दबाव था, लेकिन उन्होंने बिना किसी डर के मामले की जांच की और इस केस को आखिरी अंजाम तक पहुंचाया।

मुलिंजा ने बताया कि उन्हें यह केस अदालत ने सौंपा था इसलिए झुकने का कोई सवाल ही था। सीबीआई ने इस मामले में 2002 में एफआईआर दर्ज की थी। नारायणन ने बताया कि जैसे-जैसे ये मामला आगे बढ़ा वैसे-वैसे दबाव भी बढ़ता गया। मुलिंजा ने कहा, "5 साल तक मामले में कुछ नहीं हुआ तो कोर्ट ने केस ऐसे अधिकारी को सौंपने को कहा, जो किसी अफसर या नेता के दबाव में न आए। जब केस मेरे पास आया, तो मैंने अपने अधिकारियों से कह दिया कि मैं उनकी बात नहीं मानूंगा और केस की तह तक जाऊंगा। बड़े नेताओं और हरियाणा के सांसदों तक ने मुझे फोन कर केस बंद करने के लिए कहा। लेकिन मैं नहीं झुका।"

मुलिंजा नारायणन ने बताया, "मुझे पीड़िता के परिवार के लोगों को मैजिस्ट्रेट के सामने बयान देने के लिए समझाना पड़ा, क्योंकि पीड़िता और उसके परिवार के लोगों को डेरा की ओर से धमकी मिल रही थी।" नारायणन ने बताया कि जैसे-जैसे ये मामला आगे बढ़ा वैसे-वैसे दबाव भी बढ़ता गया। बता दें कि सीबीआई के पूर्व ज्वाइंट डायरेक्टर मुलिंजा नारायणन 38 साल की सेवा के बाद 2009 में रिटायर हुए। वह सीबीआई के ऐसे अधिकारी हैं जिन्होंने सब-इंस्पेक्टर से शुरुआत करने बाद ज्वाइंट डायरेक्टर के पद तक पहुंचे।

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OUTLOOK 25 August, 2017
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