मेट्रो के बढ़े किराए की जांच पर केंद्र और दिल्ली सरकार में ठनी
शशिकांत वत्स
मेट्रो के बढ़े किराए को लेकर केंद्र और राज्य सरकार में ठन गई है। केंद्र ने दिल्ली सरकार को साफ कह दिया है कि किराए की जांच कराने का उसका अधिकार ही नहीं है तो दिल्ली सरकार जांच कराने पर आमादा है। उसका कहना है कि पचास फीसदी उसकी हिस्सेदारी है और घाटे का हिसाब मांगने का उसे पूरा अधिकार है। हिसाब न देना ही घोटाले की तरफ इशारा करता है।
शनिवार को एक प्रेस कांफ्रेस कर दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया ने केंद्र की ओर मुख्य सचिव को भेजे गए पत्र का हवाला देते हुए कहा कि केंद्र सरकार ने दिल्ली सरकार के अधिकारों को चुनौती दी है जिसमें कहा गया है कि उसे जांच कराने का अधिकार ही नहीं है। लेकिन जब दिल्ली सरकार 50 फीसदी की हिस्सेदार है तो फिर जांच क्यों नहीं कराई जा सकती। विधानसभा की समिति बढ़े किराए की जांच करेगी। केंद्र सरकार पिछली दिल्ली की कांग्रेस सरकार की तर्ज पर ही काम कर रही है जो बिजली में घाटे की बात कहकर हर बार दाम बढ़ा देती थी और जब हमारी सरकार आई तो कैग ने बिजली के दाम बढ़ाने में आठ हजार करोड़ रुपये का घोटाला बताया।
उप मुख्यमंत्री ने कहा कि मेट्रो के मामले में दिल्ली सरकार ने ढाई साल में कोई दखल नहीं दिया लेकिन जिस तरह लगातार दो बार किराए बढ़ा दिए गए है वह सीधे तौर पर जनता के साथ अन्याय है। मेट्रो कोई प्रॉफिट मेकिंग कंपनी नहीं है। जनता को बेहतर सार्वजनिक परिवहन सुविधा मिल सके, इसके लिए इसे चलाया जा रहा है। पता नहीं अब कैसे मेट्रो अफोर्डेबिल नहीं रही। दस अक्तूबर के बाद से मेट्रो की राइडरशिप का डेटा भी मुहैया नहीं कराया जा रहा और डीटीसी में भीड़ बढ़ रही है। अगर मेट्रो प्रीमियर लोगों को ही सुविधा देगी तो भी टैक्स का पैसा क्यों लगाया जा रहा है। सीएम ने सीएस को किराए बढ़ाने की जांच का आदेश दिया तो केंद्र की भाजपा सरकार ने जांच न कराने का आदेश देने की बात की। आखिर जांच से क्यों बचा जा रहा है। मेट्रो में किसी के पिताजी का पैसा नहीं लगा है। आखिर कुछ तो घोटाला और साजिश है।
आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय में ओएसडी मुकंद कुमार सिन्हा ने दिल्ली के मुख्य सचिव डा एम एम कुट्टी को पत्र लिखकर कहा है कि डीएमआरसी स्टेट पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग (एसपीएसयू) नहीं है। इसमें दिल्ली और सरकार और केंद्र सरकार की 50-50 फीसदी की भागीदारी है। इसे बोर्ड द्वारा गठित सरकारी कंपनी चला रही है जिसके चलते राज्य सरकार को डीएमआरसी के मामलों में किसी जांच का अधिकार नहीं है। साथ ही फेयर फिक्सेशन कमेटी की सिफारिेशें डीएमआरसी पर बाध्यकारी हैं। मालूम हो कि मुख्य सचिव ने भी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को साफ कह दिया था कि वह जांच नहीं कर सकते। इसे लिए भी अफसरों और सरकार के बीच एक बार फिर खींचतान बढ़ गई है।