ममता पर आंच: लाला अकेला नहीं है कोयले का बादशाह, ऐसे चलता है झारखंड से बंगाल तक खेल
सीबीआइ और ईडी ने जब अनुप मांझी उर्फ लाला के ठिकानों पर छापा मारा और कोई बीस हजार करोड़ रुपये का साम्राज्य सामने आया तो लोगों की कोयले से कमाई को लेकर आंखें फटी रह गईं। कोयला खदानें झारखण्ड में हो या बंगाल में काम का लगभग तरीका एक ही है। सिंडिकेट कुछ उसी अंदाज में काम करता है। अवैध खनन, ज्यादा खनन, गुणवत्ता से समझौता और बिना वाजिब कागजात के ट्रकों को निकाल कर बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखण्ड या देश की दूसरी मंडियों तक सुरक्षित पहुंचाना। बदलता है तो साम्राज्य, जिसका सिक्का चला उसका राज। सिलसिला नया नहीं कोई सत्तर साल पुराना है। बर्चस्व या कहें कब्जे की लड़ाई में कोयलांचल की मिट्टी लाल होती रही है। अब तो कोयलांचल में माओवादियों से लेकर उग्रवादी संगठन के नाम पर आपराधिक संगठनों की गहरी पैठ हो गई है।
धनबाद में स्टेट ऑफ एशिया रेस्टोरेंट है। अपने समय में यह व्हाइट हाउस के नाम से मशहूर था। बंदूक और प्रभाव के बल पर कोयलांचल में समानांतर व्यवस्था चलाने वाले कोयलांचल के सबसे ताकतवर शख्स बीपी सिन्हा की कोठी थी। माना जाता है कि 1950 में ही कोयले से सुसंगठित तरीके से अवैध कमाई की बुनियाद इन्होंने ही खड़ी की थी। इनके प्रभाव ऐसा था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी उनकी बात नहीं काटती थीं। कोयल खदानों का राष्ट्रीय करण हुआ तो बीपी सिन्हा के प्रभाव के कारण तीस हजार लोगों को नौकरी मिली। मार्च 1978 को जब आवास में ही इनकी हत्या कर दी गई तो देश-दुनिया की बहुत बड़ी खबर बनी थी। उनके शरीर में एक सौ गोलियां उतार दी गई थीं। यह कोयला माफिया और राजनीति के गठजोड़ की ऐतिहासिक घटना है। उनके ही लोगों ने कब्जे को लेकर उन्हें किनारे कर दिया। आरोप सूरजदेव सिंह और सकलदेव सिंह पर लगा था। उसके बाद सूरजदेव सिंह का कोयलांचल पर राज कायम हो गया जो कई दशक तक चला। सूरजदेव सिंह के आवास को ही कोयलांचल का असली सेक्रेटेरियट माना जाता था। समय के साथ अलग-अलग बाहुबलियों का प्रभाव कायम रहा। बिहार और उत्तर प्रदेश के भी बड़े-बड़े शूटर, डॉन का यह कार्यक्षेत्र रहा। कोयला की काली कमाई और वर्चस्व को लेकर हिंसा-प्रतिहिंसा के खेल में बीते चार दशक में कोई चार सौ लोग मारे गये हैं। एक से एक बड़े-बड़े नाम हैं। इसी से जाहिर है कि कोयले की काली कमाई इतनी है कि दिलचस्पी हर बड़े डॉन की रही। कोयले की काली कमाई से रूट का कौन पुलिस अधिकारी, पत्रकार या राजनेता अछूता रहा कहना मुश्किल है।
यह है तरीका
अभी लाला के ट्रक पकड़े गये तो पता चला कि बिहार, बंगाल, उत्तर प्रदेश जहां भी कोयले की मंडियों में ट्रक पहुंचता था रूट पास लाला का चलता था। लाला का पैड और नोट का टोकन। और भी लाला इस धंधे में हैं जिनका लोडिंग, अनलोडिंग, माइनिंग, तस्करी में हिस्सा है। कोयले की लदाई, कोयले की गुणवत्ता में हेर-फेर, बिना रिकार्ड के कोयले का खदानों से निकलना अवैध कमाई का जरिया है। अपना-अपना क्षेत्र बटा है। इसी में वर्चस्व को लेकर श्रमिक संगठन या दूसरे नाम पर टकराव होता रहता है, गोलियों की बरसात होती रहती है। जानकार बताते हैं कि कोयलांचल में कोई चालीस वैध खदान हैं और इससे अधिक अवैध खदान। अवैध कमाई का बड़ा सिंडिकेट अवैध माइनिंग को लेकर भी है। चालू खदानों को भी कोयला कंपनियों के अधिकारियों से मिलकर उसे बंद कर दिया जाता है। और कोल माफिया का नेटवर्क ऐसा कि उन्हीं खदानों से ढुलाई चालू रहती है। उसके लिए पूरा सिस्टम और मजदूरों की फौज रहती है। व्यवस्था ऐसी कि सैकड़ों फीट नीचे जाकर भी खुदाई की जाती है। हाल ही सीबीआइ के रेड में भी ऐसा मामला सामने आया। कोयला खदानों से कमाई का दूसरा रास्ता भी रहा है। खदानों में आग का। आग लगेगा तो कोयला जलेगा। निकाले गये कोयले में लगाये गये श्रमिक की मजदूरी की राशि के साथ कोयला भी साफ। ओवर लोडिंग वाले ट्रकों की अनदेखी, ट्रकों की गणना कम होना, निम्न श्रेणी के कोयले के नाम पर बेहतरीन कोयले की सप्लाई तो है ही। इस काले हीरे की मोटी कमाई लंबी दूरी तय करती है, ऐसे में इसे रोके तो कौन।