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06 May 2016

आरक्षण पर ध्रुवीकृत होता गुजरात

गूगल

गुजरात की धरती पर आरक्षण का जिन्न एक बार फिर राजनीति को मोड़ देने में लगा हुआ है। अपने लिए अलग से आरक्षण की मांग को लेकर पाटीदारों का आंदोलन इतना उग्र हुआ कि इसका खामियाजा मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल  और भाजपा दोनों को उठाना पड़ रहा है। पटेलों के इस उग्र आंदोलन को शांत करने के लिए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के निर्देश पर आर्थिक रूप से पिछड़े तबके के लिए 10 फीसदी आरक्षण की घोषणा पहले भाजपा के गुजरात मुख्यालय से की गई और बाद में इसकी अधिसूचना गुजरात सरकार ने जारी की। इस आरक्षण की घोषणा सबसे पहले भाजपा मुख्यालय में विजय रुपानी ने की थी, जो पार्टी के राज्य अध्यक्ष हैं। इसे पटेलों ने खासतौर से हार्दिक पटेल के नेतृत्व वाली पाटीदार अनामत आंदोलन समिति ने ठुकरा दिया है। उनका कहना है कि यह उनके आंदोलन को कम करने के लिए लॉलीपॉप देने जैसा है। उनका आंदोलन अलग से पटेलों के लिए आरक्षण मांगने का है, न कि बाकी जातियों के साथ मिलकर 10 फीसदी में खींचतान करने का है। हालांकि बताया जाता है कि अभी यह अंतिम तौर पर नहीं तय हुआ है कि हार्दिक इस पर क्या फैसला लेंगे। आर्थिक रूप से पिछड़े तबके के लिए 10 फीसदी आरक्षण को नकारने के साथ ही हार्दिक पटेल ने जो कहा, वह गौरतलब है, 'हम लोग गांवों-शहरों में लोगों से पूछेंगे कि उन्हें ओबीसी (अन्य पिछड़ी जातियों) या ईबीसी (आर्थिक रूप से पिछड़े तबके) में जाना है।’

पाटीदारों के इस आंदोलन को नियंत्रित करने का जिम्मा इस समय सीधे अमित शाह के पास है। भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार अब कोशिश यह हो रही है कि हार्दिक पटेल के आंदोलन को काबू में करके डैमेज कंट्रोल किया जाए। इसके लिए ईबीसी आरक्षण का जो हल निकाला गया है, वह दूर की कौड़ी है। इसके जरिये तथाकथित ऊंची जातियों के आरक्षण विरोधी गुस्से को भी शांत करने की कोशिश की गई है कि दलितों और पिछड़ों को ही आरक्षण के सारे लाभ मिल रहे हैं। विजय रुपानी ने आउटलुक को बताया कि ईबीसी आरक्षण सारे पक्षों को ध्यान में रखकर लिया गया फैसला है। पाटीदार समिति के अहमदाबाद पश्चिम के संयोजक राहुल देसाई का कहना है, 'हम ओबीसी श्रेणी में ही आरक्षण मांग रहे हैं। यह करने के बजाय सामान्य श्रेणी का हिस्सा काटकर आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण कर दिया। हम ईबीसी कोटा तब लेंगे जब सारे कोटे को हटाकर इसे कर दिया जाए। हमारा मानना है कि जो भी गरीब है, चाहे वह किसी भी जाति का हो, उसे आरक्षण मिलना चाहिए।’

इस तरह अभी यह नहीं कहा जा सकता कि आरक्षण का जिन्न अभी किधर बढ़ेगा। भाजपा के इस दांव के साथ एक मुश्किल यह भी है कि ईबीसी आरक्षण का भविष्य अनिश्चित है। देश की सर्वोच्च न्यायालय में इसका ठहरना मुश्किल है क्योंकि वह स्पष्ट रूप से कह चुकी है कि आरक्षण की अधिकतम सीमा को पार नहीं होना चाहिए।

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इस उठा-पटक के बीच एक और युवा नेतृत्व अपनी मजबूत दावेदारी पेश करता दिखाई दे रहा है। इनका नाम है अल्पेश ठाकोर, उम्र 39 साल। यह अलग किस्म का ध्रुवीकरण कर रहे हैं। ओबीसी समुदाय के आने वाले अल्पेश इस समय आरक्षण पाने वाली जातियों को एकसाथ करने में लगे हुए हैं। इनमें ओबीसी, अनुसूचित जातियां, अनुसूचित जनजातियां। यह करीब गुजरात की 50 फीसदी आबादी बैठती हैं। अल्पेश ठाकोर ने पांच साल पहले ठाकोर सेना बनाई थी और हार्दिक के पाटीदार आंदोलन के विरोध में एक एकता मंच का निर्माण किया है ओएसएस(ओबीसी, एससी, एसटी) के अल्पेश ने आउटलुक से बातचीत में खुलकर कहा 'गुजरात का अगला मुख्यमंत्री उनका समुदाय ही तय करेगा। आरक्षण खत्म करने के लिए गुजरात को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक लैबोरेटरी की तरह इस्तेमाल कर रहा है। इसलिए यहां इसका कड़ा विरोध करने को तैयार हो रहे अल्पेश अब राष्ट्रीय स्तर पर इसे उठाने जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि वह मायावती, मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव, नीतीश सहित अनेक नेताओं को पत्र लिखने जा रहे हैं और उनसे आरक्षण को बचाने के लिए अपील करने जा रहे हैं। बरसों पहले देश में ओबीसी आरक्षण के खिलाफ की आग गुजरात से ही शुरू हुई थी, इस बार भी आरक्षण पर बहस का केंद्र गुजरात है। हार्दिक पटेल अगर आरक्षण समाप्ति के राष्ट्रीय स्वयंंसेवक संघ के पुराने मिशन को गुंजाता दिखता है तो अल्पेश इसकी विरोधी जमीन का ध्रुवीकरण करता है।

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TAGS: गुजरात, हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर, reservation
OUTLOOK 06 May, 2016
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