हेमंत सोरेन का पीएम को पत्र : बिजली बकाया मद में काटी गई राशि वापस करें
कोरोना काल में आर्थिक तंगी के बीच दामोदर घाटी निगम ( डीवीसी) के बकाया बिजली बिल के एवज में राज्य सरकार के खजाने से ऊर्जा मंत्रालय द्वारा 1417 करोड़ रुपये काट लिये जाने से आहत झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने प्रधानमंत्री को गुरुवार 22 अक्टूबर को पत्र लिखकर काटी गई राशि वापस करने की मांग की है। उन्होंने माना है कि त्रिपक्षीय समझौते के तहत यह कटौती जायज है मगर 70 फीसद बिजली कोयले से तैयार होती है और कोयला मंत्रालय पर झारखंड की बड़ी राशि बकाया है ऐसे में कोयला मंत्रालय को चौथा पक्ष बनाया जाये। ताकि सम्यक रूप से राशि की कटौती हो। हेमंत अपने कैबिनेट के कुछ सहयोगियों के साथ प्रधानमंत्री से मुलाकात करना चाहते हैं ताकि वस्तुस्थिति से उन्हें ठीक से अवगत कराया जा सके। इसके लिए प्रधानमंत्री से वक्त मांगा है।
प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में अपनी पीड़ा जाहिर करते हुए कहा है कि महामारी के दौर में झारखंड, केंद्र के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहा है। इसी क्रम में ऊर्जा मंत्रालय ने राज्य के आरबीआइ के खाते से 1417 करोड़ रुपये की कटौती कर ली। यह कटौती केंद्र, राज्य और आरबीआइ के बीच हुए त्रिपक्षीय समझौते के प्रावधानों के तहत की गई। किंतु मैं इस निर्णय से व्यथित और आहत हूं। वर्तमान परिस्थिति में भारत सरकार को यह कार्रवाई नहीं करनी चाहिए थी। यह समझौता ऊर्जा क्रय करने के क्रम में इन कंपनियों के वित्तीय हितों की रक्षा के लिए किया गया है। यह समझौता सामान्य काल को ध्यान में रखकर किया गया था और इसके प्रावधानों को महामारी काल में लागू करना पहली नजर में असंवैधानिक, अनैतिक एवं संघीय ढांचे पर प्रहार करता हुआ दिख रहा है। आजाद भारत के इतिहास में इस तरह की कटौती दूसरी बार हुई है। हमसे ज्यादा बकाया कई अन्य राज्यों का है, हमारा बकाया तो मात्र 5500 करोड़ का था। इसके बावजूद कटौती झारखंड जैसे आदिवासी, दलित, अल्पसंख्यक बहुल गरीब राज्य से की गई।
हेमंत सोरेन ने लिखा है कि कोरोना काल में आर्थिक गतिविधियां ठप हैं इसका सीधा प्रभाव राज्य सरकार के राजस्व पर पड़ा है। हमने कोरोना काल में राजस्व वसूली की दिशा में कठोरता न बरतने का निर्णय लिया है ताकि आम लोगों को कठिनाई न हो। इसका सीधा असर बिजली कंपनियों के भुगतान पर भी पड़ा है। मुख्यमंत्री ने बताया है कि उनकी सरकार ने जनवरी 2020 से काम करना शुरू किया है। इस दौरान डीवीसी की देयता 1313 करोड़ बनती है जिसमें 741 करोड़ का भुगतान किया गया है। लगभग 5514 करोड़ की देनदारी पिछले पांच वर्षों की भाजपा सरकार के कार्यकाल में सृजित हुई है। जो हमें विरासत में मिली है। पक्षपात का आइना दिखाते हुए हेमंत सोरेन ने बताया है कि 90 दिनों से अधिक का समय बीत जाने पर भुगतान नहीं होने की स्थिति में ऐसी कटौती का प्रावधान है मगर प्रावधान का उपयोग पूर्व की राज्य सरकार के समय कभी नहीं किया गया। प्रारंभ से कटौती होती रहती तो महामारी के काल में राज्य को इतनी राशि से वंचित नहीं होना पड़ता। ऊर्जा कंपनियों की ओर इशारा करते हुए कहा कि 70 फीसद बिजली का उत्पादन कोयले से होता है। अत: बकाया राशि का 70 प्रतिशत कोयला मंत्रालय के उपक्रमों को जाता। और कोयला उपक्रमों के पास झारखंड सरकार की बड़ी राशि बकाया है। ऐसे में इस समस्या का तभी समाधान संभव होगा जब कोयला मंत्रालय को त्रिपक्षीय समझौते के चौथे पक्ष के रूप में जोड़ा जायेगा। ऐसा होने पर कोयला मंत्रालय के उपक्रमों से राज्य सरकार के बकायों को ध्यान में रखते हुए किसी प्रकार की देनदारी का निष्पादन किया जा सकेगा। कटौती को लेकर झारखंड के अधिकारियों की केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के सचिव के साथ कुछ दिन पूर्व वार्ता हुई थी।
आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत दिये जाने वाले कर्ज की सुविधा पर भी बात हुई। कर्ज लेने का प्रस्ताव राज्य सरकार के विचाराधीन है। मगर ऊर्जा मंत्रालय के पत्र से यह जाहिर होता है कि राशि कटौती का यह कदम राज्य सरकार को इस कर्ज सुविधा का उपभोग करने के लिए बाध्य करने का प्रयास है जो सर्वथा अनुचित है। कोरोना महामारी की पृष्ठभूमि में जनता के कल्याण को ध्यान में रख ऊर्जा मंत्रालय द्वारा कटौती के आदेश को रद कर राशि शीघ्र राज्य सरकार को वापस लौटाई जाये। महामारी के दौर में भविष्य में भी ऊर्जा मंत्रालय कटौती न करे इसका निर्देश दिया जाये।