राष्ट्रपति ने पंजाब के कृषि कानूनों को सहमति नहीं दी तो सुप्रीम कोर्ट जायेंगेः कैप्टन अमरिन्दर
चंडीगढ़, पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने गुरूवार को यह स्पष्ट करते हुए कि उनकी सरकार केंद्र के कृषि कानूनों के पूरी तरह खिलाफ है, भारत सरकार से अपील की कि वह हठपूर्ण रवैया अपनाने की बजाय इन कानूनों को तुरंत रद्द करे और इस मामले पर किसानों के साथ नये सिरे से बातचीत करके नये कानून लाए।
मुख्यमंत्री ने यह भी ऐलान करते हुए कहा, ‘‘अगर राष्ट्रपति ने राज्य के संशोधन बिलों को सहमति न दी तो हम सुप्रीम कोर्ट जायेंगे।’’ उन्होंने कहा कि दुख की बात है कि विधानसभा में सभी पार्टियों की वोटिंग के साथ सर्वसम्मति से पास किये बिलों को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए आगे भेजने की बजाय राज्यपाल ने अपने पास रोक कर रखे हुए हैं। उन्होंने कहा कि यह दुखद था कि इस मुद्दे पर अकालियों और आप की तरफ के बाद में राजनैतिक खेल खेलना शुरू कर दिया गया।
राज्य सरकार के चार वर्ष पूरे होने पर पत्रकारों को संबोधन करते हुए मुख्यमंत्री ने ऐलान किया कि किसानों और भारत सरकार के बीच बातचीत में आई रुकावट को खत्म करने के लिए उनको कोई भी बीच का रास्ता नहीं सूझ रहा। उन्होंने कहा कि केंद्र को कृषि कानून रद्द करने चाहिएं और किसानों के साथ बैठ कर इनकी जगह नये कानून बनाने चाहिएं।
उन्होंने केंद्र को पूछा, ‘‘इसको प्रतिष्ठा का सवाल बनाने की क्या जरूरत है?’’ किसान आंदोलन में औरतों और बुजुर्गों के साथ बैठे गरीब किसानों का हवाला देते हुए उन्होंने आगे कहा, ‘‘अपने अड़ियल रवैया के साथ आप और कितने किसानों की मौत होने देना चाहते हो?’’ उन्होंने कहा कि जब से आंदोलन शुरू हुआ है, तब से लेकर अब तक अकेले पंजाब के ही 112 किसान मारे जा चुके हैं। उन्होंने पूछा, ‘‘गत समय में संविधान में 100 से अधिक संशोधन हो चुके हैं तो इन कानूनों को रद्द करने के लिए फिर ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता?’’
मुख्यमंत्री ने कहा कि वह यह बात समझ नहीं पा रहे हैं कि केंद्र सरकार किसानों और आढ़तियों के बीच लंबे समय से अजमाए संबंधों को तोड़ने की कोशिश क्यों कर रही है। उन्होंने कहा कि ये नये कानून मौजूदा प्रणाली में कोई सुधार नहीं करेंगे बल्कि कृषि सैक्टर को तबाह कर देंगे। उन्होंने कहा कि आढ़तियों की जगह अनजान काॅर्पाेरेटों के आने से गरीब किसान (पंजाब के 75 प्रतिशत किसान) जरूरत पड़ने पर कहाँ जाएंगे? उन्होंने किसानों को सीधी अदायगी सम्बन्धी एफ.सी.आई. की नयी नीति बारे पूछे एक सवाल के जवाब में कहा कि दिल्ली कृषि को समझ नहीं रही। मुख्यमंत्री ने कहा कि वह इस नीति के हक में नहीं हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कृषि राज्य का विषय है और केंद्र को इस मामले सम्बन्धी कानून बनाने का कोई अधिकार नहीं था। उन्होंने राज्य के अधिकारों में रुकावट पैदा करके संविधान में दर्ज संघीय ढांचे को कमजोर करने की कोशिश करने के लिए केंद्र सरकार की निंदा की।
कृषि कानूनों सम्बन्धी फैसले के लिए केंद्र सरकार की उच्च स्तरीय समिति के मैंबर होने संबंधी उनके बारे गलत जानकारी फैलाने वालों पर बरसते हुए मुख्यमंत्री ने फिर से स्पष्ट किया कि जब पैनल की शुरुआत की गई थी तो पंजाब इसका मैंबर ही नहीं था और इसकी पहली मीटिंग में नीतिगत फैसले (पंजाब की अनुपस्थिति में) पहले ही ले लिए गए थे और पंजाब को बाद में शामिल किया गया था। दूसरी मीटिंग में वित्तीय एजंडे सम्बन्धी चर्चा हुई और तीसरी मीटिंग में कृषि सचिव मौजूद थे। उन्होंने इस सम्बन्धी विपक्ष के बेबुनियाद दोषों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा ‘‘मैं इस प्रक्रिया का हिस्सा कहाँ से बन गया?’
राज्यपाल की तरफ से राज्य के बिलों को अभी तक रोके रखने सम्बन्धी मुख्यमंत्री ने पूछा, ‘‘क्या हम लोकतंत्रीय देश का हिस्सा हैं या नहीं?’’ पंजाब ने सर्वसम्मति के साथ फैसला लिया और राज्यपाल द्वारा इनको रोके रखना शोभा नहीं देता। संविधान की धारा 254 (2) के अंतर्गत राज्यपाल का फर्ज बनता था कि वह इन बिलों को सहमति के लिए राष्ट्रपति के पास भेजते। उन्होंने याद दिलाया कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम के मामलेे में, भाजपा के नेतृत्व वाली गुजरात सरकार ने भी इसी तरह के संशोधन बिल पास किये थे जिस संबंधी तत्कालीन राष्ट्रपति ने सहमति दी थी।