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06 June 2017

उत्तराखंड में खाली होते जा रहे सीमावर्ती गांव, सुरक्षा को लेकर चिंता

Maksun village of Uttarakhand

उत्तराखंड में चंपावत जिला मुख्यालय से तकरीबन 60  किलोमीटर दूर सीमांत गांव मकसून है। कुछ साल पहले तक आबाद रहे मकसून गांव में सन्नाटा पसरा रहता है। बंजर पड़े खेत और खंडहर में तब्दील होते मकान ही यहां दिखाई पड़ते हैं। घरों में बंद दरवाजों में लगे ताले पलायन की पीड़ा को बयां करते हैं। केवल मकसून ही नहीं बल्कि इंडो नेपाल सीमा के बाकी गांवों से भी तेजी से पलायन हो रहा है। यह हाल तब है, जब सीमांत गांवों का पलायन रोकने के लिए सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। 

न रोजगार न बुनियादी सुविधाएं
प्रदेश के दूसरे गांवों की तरह ही इंडो नेपाल सीमा पर सटे मकसून गांव के खाली होने की बड़ी वजह रोजगार और सुविधाओं का अभाव है। आजादी के 70 साल बाद भी गांव सड़क, बिजली, पानी से महरूम हैं। बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने को 5 से 7 किलोमीटर पैदल जाना पड़ता था। अगर कोई गंभीर बीमार पड़ जाता तो अस्पताल में पहुंचने से पहले ही उसकी सांसे उखड़ जाती थी। हालांकि कुछ सालों तक मकसून गांव में तकरीबन 40 परिवार रहते हैं, लेकिन आज गांव में सन्नाटा पसरा है। जिला मुख्यालय के अलावा चल्थी से 30 किलोमीटर और टनकपुर से 32 किलोमीटर पैदल चलकर लोग अपने गांव पहुंचते थे। हालांकि पंचेश्वर बांध की वजह से गांव तक सड़क पहुंचेगी।  

सीमांत गांवों का खाली होना चिंताजनक
भारत-नेपाल की सीमा खुली हुई है। पिलर के अलावा सीमा पर बहने वाली शारदा नदी ही दोनों देशों का सीमांकन करती है। कई जगहों से पिलर गायब हो गए हैं। जिस वजह से नो मैंस लैंड पर नेपाल की ओर से अतिक्रमण हो रहा है। खुली सीमा का फायदा कई बार आपराधिक तत्व भी उठाते हैं और नदी पार कर भारत में पहुंच जाते हैं। लेकिन सीमा पर स्थित गांवों के वाशिंदे सुरक्षा प्रहरी की भूमिका निभाते हुए तस्करों और गलत तत्वों की जानकारी पुलिस प्रशासन के पास पहुंचाने का काम भी बखूबी करते हैं। लेकिन अब जब सीमा पर बसे गांव पलायन की वजह से खाली हो रहे हैं तो घुसपैठ जैसी अहम जानकारियां पुलिस प्रशासन तक पहुंचना कठिन होगा।

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मकसून गांव के समीप स्थित खेतगांव के रहने वाले भोपाल सिंह उदासी भरे लहजे में कहते हैं कि सीमा पर स्थित गांवों से बड़े पैमाने पर पलायन हो रहा है। आजादी के 70 साल बाद भी इन गांवों में सड़क, बिजली, पानी, चिकित्सा, शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं तक नहीं पहुंच सकी हैं। सुविधाओं के अभाव में गांव खाली हो रहे हैं। मकसून ही नहीं यहां सीमांत गांव चूका, सीम, खेत गांवों में भी करीब 150 परिवारों में से अब 26-28 परिवार ही रह गए हैं। 

उत्तराखंड सरकार में मंत्री रेखा आर्य कहती हैं कि गांवों से पलायन बेहद चिंता का विषय है। सरकार इस विषय पर गंभीर है और पलायन रोकने के लिए एक कमेटी का भी गठन किया गया है। 

 

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TAGS: uttarakhand news, indo nepal boarder
OUTLOOK 06 June, 2017
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