मुख्यमंत्री उम्मीदवारी पर गहलोत की दावेदारी!
गुजरात में कांग्रेस को उम्मीद से बढ़कर सीटें मिलने में राहुल गांधी के मुख्य रणनीतिकार रहे अशोक गहलोत का महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है। गहलोत राजस्थान के मुख्यमंत्री रह चुके हैं, जहां इस साल के अंत में चुनाव होने हैं। गुजरात में मिली सफलता से उत्साहित गहलोत ने हाल में दो ऐसे बयान दिए हैं जिससे राजस्थान कांग्रेस में उथल-पुथल मची हुई है।
माना जा रहा है कि चुनाव में मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाए जाने को लेकर गहलोत ने ये बयान दिए हैं। ये बयान ऐसे वक्त में दिए गए हैं जब राज्य में दो लोकसभा और एक विधानसभा सीट पर उपचुनाव होने जा रहे हैं। जानकारों का कहना है कि गहलोत ने ये बयान बहुत सोच-समझकर समय चुनकर दिया है।
पहला बयान
उपचुनाव में प्रचार से दूरी बनाकर चल रहे गहलोत ने शुक्रवार को सीकर में अप्रत्यक्ष रूप से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट को बेचारा बता दिया। उन्होंने कहा कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनते ही चार-पांच मीडिया वाले मित्र बन जाते हैं। अध्यक्ष बेचारा पत्रकारों की बातों में आकर हवा में रहता है और स्वयं को मुख्यमंत्री समझने लगता है। हालांकि बाद में उन्होंने कहा कि वे वर्तमान अध्यक्ष पायलट के लिए विशेष रूप से यह बात नहीं कह रहे हैं। उनसे पहले भी जितने अध्यक्ष हुए सबके साथ यही हुआ। खुद को भाग्यशाली बताते हुए गहलोत ने कहा कि वे पत्रकारों के झांसे में कभी नहीं आए।
दूसरा बयान
जोधपुर में भी इसी तरह का बयान दिया। उस समय उनके साथ नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी भी थे। डूडी भी खुद को सीएम पद का दावेदार मानते हैं। बयानों पर विवाद पैदा होने के बाद गहलोत ने इसका दोष मीडिया के मत्थे मढ़ दिया। कहा कि उनके बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया।
29 को मतदान
अजमेर और अलवर लोकसभा सीट पर उपचुनाव के लिए 29 जनवरी को मतदान होना है। सांवरलाल जाट के निधन के कारण अजमेर और महंत चांदनाथ के निधन के कारण अलवर में चुनाव हो रहा है। 2014 में दोनों सीटें भाजपा ने कांग्रेस से छीनी थी। 2009 में अजमेर से सचिन पायलट और अलवर से भंवर जितेंद्र सिंह जीते थे। दोनों ने इस बार उपचुनाव लड़ने से इनकार कर दिया। इसके बाद अलवर से पूर्व सांसद डॉ. करण सिंह यादव को टिकट दिया गया है। वहीं, अजमेर से पूर्व विधायक रघु शर्मा को कांग्रेस ने मैदान में उतारा है।
कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री पद पर अपनी दावेदारी मजबूत करने के लिए पायलट अब विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं। इसलिए उन्होंने उपचुनाव में मैदान में उतरने से इनकार कर दिया। पर गहलोत की कोशिश उन्हें कमजोर नेता के तौर पर पर पेश करने की है। यही कारण है कि वो अभी से पायलट के खिलाफ बयानबाजी करने में लग गए हैं।
गहलोत के इन बयानों से प्रदेश कांग्रेस में बीते चार साल से जारी गुटबाजी ने फिर से जोर पकड़ लिया है। सचिन पायलट, अशोक गहलोत और रामेश्वर डूडी के रूप में कांग्रेस तीन धड़ों में बंटी नजर आ रही है। हालांकि पायलट और गहलोत दोनों के साथ डूडी मंच साझा कर गुटबाजी से खुद को दूर दिखाने की कोशिश करते रहे हैं।