जम्मू-कश्मीर में एडवाइजरी जारी, मुठभेड़ वाली जगह से रहें दूर : सेना प्रमुख
जम्मू-कश्मीर सरकार का फैसला सेना प्रमुख बिपिन रावत की चेतावनी के ठीक अगले दिन आया है जिसमें उन्होंने आतंकियों से होने वाली मुठभेड़ के दौरान सुरक्षा बलों के रास्ते में आने वाले लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की चेतावनी दी थी।
सरकार की योजना मुठभेड़ वाले इलाके में तीन किलोमीटर के दायरे में निषेधाज्ञा लागू करने की है ताकि सुरक्षा बलों और आतंकियों के बीच होने वाली मुठभेड़ के दौरान स्थानीय लोगों के विरोध प्रदर्शन को रोका जा सके।
जानकारी के मुताबिक, 12 फरवरी को नागबल में चार आतंकी मारे गए, दो जवान शहीद हुए और तीन आतंकी भाग गए। ऐसे ही पिछले साल 17 मई को कुपवाड़ा में एक आतंकी मारा गया था और सेना के दो जवानों को गोली लगी थी। चार आतंकी भाग गए थे। इन दोनों जगहों पर 500 से ज्यादा लोग सेना के खिलाफ आतंकी कार्रवाई के दौरान प्रदर्शन करते नजर आए। किसी के हाथ में पत्थर था तो किसी के हाथ में लकड़ी। ऐसे सैकड़ों उदारहण हैं जब स्थानीय लोगों ने आतंकियों के खिलाफ सुरक्षा बलों की कार्रवाई में बाधा पैदा की। यही वजह है कि एक बार फिर से जम्मू-कश्मीर के आम लोगों को सलाह दी गई है कि उन जगहों पर न जाएं जहां सुरक्षाबलों की आतंकियों के साथ मुठभेड़ हो रही हो।
गौरतलब है कि रावत ने चेतावनी भरे लहजे में कहा था कि कश्मीर में आतंकवादियों के खिलाफ सेना के ऑपरेशन्स में बाधा डालने वालों को आतंकवादियों का सहयोगी समझा जाएगा और उनके खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी। रावत का इशारा सेना पर पथराव करने वालों की तरफ था।
वहीं, दूसरी तरफ कश्मीर में आतंकियों के मददगारों को लेकर दिए गए आर्मी चीफ बिपिन रावत के बयान पर अब सियासत शरू हो गई है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि अगर सेना कश्मीर के बच्चों को पकड़ती है तो यह बहुत ज्यादती होगी।
कश्मीर की समस्या के लिए आजाद ने केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा, 'मौजूदा हालात केंद्र सरकार की नाकामी की वजह से है। इन्हें समझ नहीं आया कि जम्मू-कश्मीर क्या है। हम भी सरकार चलाते थे, तब क्यों नहीं हुआ।'
आजाद के बयान के बाद बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कांग्रेस को इस मामले में राजनीति नहीं करने की सलाह दी है। वहीं जम्मू-कश्मीर के विपक्षी दल नैशनल कॉन्फ्रेंस ने भी सेना प्रमुख की भाषा को लेकर सवाल उठाए हैं।