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20 June 2022

जम्मू-कश्मीर: बंद होते रास्ते

“यासीन मलिक को आजीवन कैद की सजा से क्या कश्मीर समस्या के समाधान में मदद मिलेगी, स्थानीय नेताओं के अनुसार सरकार बाहुबली रवैया छोड़े तभी बात बनेगी”

अलगाववादी नेता यासीन मलिक को एनआइए कोर्ट की तरफ से 25 मई को आजीवन कैद की सजा सुनाए जाने के बाद श्रीनगर के भारी सुरक्षा बंदोबस्त वाले मैसुमा इलाके में शांति बनी रही। इस इलाके को कभी कश्मीर की गाजा पट्टी कहा जाता था। यहां की दीवारों और दुकानों के शटर पर भारत विरोधी बातें अब भी देखी जा सकती हैं। घाटी में अन्य किसी जगह मलिक को सजा सुनाए जाने का बड़ा विरोध नहीं हुआ। श्रीनगर के बीचो-बीच स्थित मैसुमा में ही मलिक का जन्म हुआ और वे यहीं पले बढ़े। घर पर उनकी बहन ने बात करने से इंकार कर दिया तो इलाके के अधिकांश लोगों ने भी चुप रहना ही बेहतर समझा। हालांकि मुख्यधारा के कुछ नेताओं ने तल्ख टिप्पणी की। माकपा नेता मोहम्मद यूसुफ तारिगामी कहते हैं, “यासीन मलिक को आजीवन कैद की सजा दुर्भाग्यपूर्ण है। यह शांति के प्रयासों के लिए भी झटका है। हमें डर है कि इससे इलाके में अनिश्चितता के साथ लोगों में दूरी तथा अलगाववाद की भावना बढ़ेगी।” तारिगामी उपकार डिक्लेरेशन के लिए पीपुल्स एलायंस के चेयरमैन भी हैं। वे कहते हैं, “एनआइए कोर्ट ने अपना फैसला तो सुना दिया लेकिन उसने न्याय नहीं किया। भाजपा और कॉरपोरेट मीडिया इसे जिस तरह जीत के तौर पर दिखा रहा है, वह आखिरकार नुकसानदायक साबित होगा।”

जम्मू-कश्मीर में सुरक्षाकर्मियों की अभूतपूर्व तैनाती के बाद सरकार ने 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 को बेमानी किया, संचार व्यवस्था पूरी तरह ठप कर दी, तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों डॉ फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती समेत हजारों लोगों को गिरफ्तार किया, तब से सरकार ने इस बात का ध्यान रखा है कि विरोध की कोई आवाज न उठे। राजनीतिक कार्यकर्ताओं और यहां तक कि पत्रकारों को भी जन सुरक्षा कानून के तहत कश्मीर घाटी से बाहर जेल में डाल दिया गया। इस समय प्रदेश में 500 से अधिक लोग जम्मू-कश्मीर जन सुरक्षा कानून के तहत हिरासत में हैं। इनमें से करीब 150 को मार्च और अप्रैल के दौरान ही गिरफ्तार किया गया। हिरासत से हाल ही निकले एक शख्स ने बताया कि रोजाना अनेक युवाओं को जेलों में लाया जाता है, कुछ को दूसरी जेलों में भी भेजा जाता है। ऐसे माहौल में मलिक को सजा सुनाए जाने के बाद किसी प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं थी।

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एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के मुताबिक, मलिक को सजा सुनाए जाने के बाद घाटी में शांति का मतलब यह नहीं कि लोगों ने फैसले को स्वीकार कर लिया है या वे इसका मतलब नहीं समझते। अपने नरम रुख और खुद को गांधीवादी दिखाने के कारण मलिक का कट्टरपंथी अलगाववादी दल विरोध करते रहे हैं। वे कहते हैं, “घाटी से बाहर अनेक लोग खुद को गांधीवादी दिखाने के लिए मलिक का मजाक उड़ा सकते हैं। कट्टरपंथी अलगाववादी खुश होंगे कि सरकार के साथ बातचीत में गांधीवादी रास्ता अख्तियार करने के बजाय कट्टरपंथी रवैया अपनाना बेहतर है।” उक्त अधिकारी के अनुसार मलिक को सजा कश्मीर में उन राजनीतिक अलगाववादियों के लिए रास्ता बंद करने के समान है जो सुलह-समाधान चाहते हैं। वे कहते हैं, “अतीत में मलिक तथा अन्य कई अलगाववादी नेता आम नागरिक या अल्पसंख्यक की आतंकी हत्या का विरोध करने में आगे रहे हैं। अब लगता है वह सब खत्म हो जाएगा।”

पिछले दशकों में मलिक ने कई बार यह बात कही कि कश्मीर मुद्दे के समाधान के लिए उन्होंने महात्मा गांधी की विचारधारा को अपनाया है। अमेरिकी सरकार को 2017 में लिखे खुले पत्र में मलिक ने कहा, “जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट ने 1994 में सीजफायर की घोषणा की, जब अमेरिका, यूरोप और इंग्लैंड के प्रतिनिधियों ने उन्हें शांति की खातिर हथियार छोड़ने पर राजी किया। उन्होंने हमें गारंटी दी थी कि कश्मीर मुद्दे का समाधान उनकी पहली प्राथमिकता होगी। लेकिन जो कुछ हुआ वह उनकी पूरी विफलता है।”

मलिक ने पत्र में लिखा, “मैंने और मेरे साथियों ने ऐतिहासिक हस्ताक्षर अभियान ‘सफर-ए-आजादी’ के जरिए शांतिपूर्ण संघर्ष शुरू किया। इसी का नतीजा है कि 2008 में जम्मू-कश्मीर के लोगों ने हिंसा को छोड़कर अहिंसा का रास्ता अपनाया।”

अब जब अधिकांश अलगाववादी नेता या तो जेलों में हैं या उनकी मौत हो चुकी है, अनुच्छेद 370 बेमानी किए जाने और जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बदलने के बाद मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियां हाशिए पर चली गई हैं, अनेक लोगों को लगता है यहां सरकार की बाहुबली वाली नीति का कोई अंत नहीं है और मलिक को आजीवन कारावास इसी का उदाहरण है।

कश्मीर में जब आतंकवाद चरम पर था तब भी अलगाववादी नेताओं का घाटी में गहरा असर था। वे लोगों की आकांक्षाओं और इच्छाओं का प्रतिनिधित्व करने का दावा करते थे। सरकार से बातचीत में भी उन्हें कोई गुरेज नहीं था। बीते वर्षों में मलिक ने भारत और पाकिस्तान के शीर्ष नेताओं के साथ वार्ता की है। अप्रैल 2005 में मलिक पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ से नई दिल्ली में मिले और कश्मीर पर चर्चा की। जाहिर है दिल्ली की सहमति के बिना यह नहीं हो सकता था। बाद में वे तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से फरवरी 2006 में मिले। उसी साल उन्हें अमेरिका जाने और वहां शीर्ष अधिकारियों से मिलने की इजाजत दी गई।

मलिक को आजीवन कैद कश्मीर समस्या के अलग पहलू को दर्शाता है जो ज्यादा चिंताजनक है। वैचारिक रूप से उन्हें पाकिस्तान की इस्लामी व्यवस्था के विपरीत और भारत के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों का करीबी समझा जाता था। अनेक लोगों का मानना है कि जेकेएलएफ को पाकिस्तान से और कश्मीर में ऑपरेट करने वाले पाक समर्थित दलों से आघात मिला है। नाम प्रकाशित न करने की शर्त पर एक राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं, “मलिक को हमेशा के लिए कालकोठरी में बंद कर देने से पाकिस्तान या इस्लामी संगठनों को कोई फर्क नहीं पड़ेगा।”

कश्मीर की राजनीति में कई धुरी रही हैं और मलिक उनमें एक हैं। लेकिन मुख्यधारा के पोलिंग एजेंट से सुपर हीरो बनने वाले मलिक की छाया कश्मीर पर लंबे समय तक रहेगी। राज्य में लोगों का मानना है कि मलिक ही भविष्य में कश्मीर और शेष भारत के बीच एक सम्मानजनक समझौता करा सकते थे, क्योंकि कश्मीर मुद्दा भाजपा सरकार के बाद भी बना रहेगा। विश्लेषकों का मानना है कि सीमा रेखा में किसी बदलाव के बिना समाधान की क्षमता मलिक को छोड़कर आज यहां के किसी भी नेता में नहीं है। लेकिन लगता है भाजपा नेतृत्व यह मानकर चल रहा है कि मौजूदा नीतियां ही अपने आप में समाधान हैं, इसलिए बाकी सब तुच्छ है।

भाजपा 2019 में दोबारा सत्ता में आई तो जेकेएलएफ भी उन संगठनों में था जिन पर सरकार ने अलगाववादी विचारधारा का आरोप लगाते हुए प्रतिबंध लगाया। इन संगठनों पर प्रतिबंध के बाद उनके नेताओं और कार्यकर्ताओं पर बड़े पैमाने पर कार्रवाई की गई जिनमें अधिकांश अभी जेल में हैं। मलिक पर भी अनेक आरोप हैं। कुछ 1990 के दशक के हैं, जब उन पर हत्या और अपहरण जैसे आरोप लगाए गए थे। उनके खिलाफ पूर्व गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबिया सईद के अपहरण का मामला भी चल रहा है। मलिक की पार्टी जेकेएलएफ के पांच उग्रपंथी नेताओं के बदले रूबिया सईद को छोड़ा गया था।

मलिक को सजा सुनाए जाने के तत्काल बाद पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कहा कि कश्मीर समस्या का समाधान भारत की बाहुबली वाली नीति से नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि कश्मीर में अनेक लोगों को मौत की सजा दी गई और अनेक को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई, लेकिन इससे समस्या के समाधान में मदद नहीं मिली। मुफ्ती कहा कि अगर भारत इस तरह की नीतियों को नहीं छोड़ेगा तो इसके गंभीर नतीजे हो सकते हैं।

सरकार को लगता है कि कश्मीर घाटी के हालात पूरी तरह उसके नियंत्रण में हैं और जम्मू-कश्मीर के प्रति उसका कोई दायित्व नहीं है। लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा कहते हैं कि सरकार यहां शांति स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन “अतीत की तरह हम शर्तों पर शांति नहीं चाहते।” सिन्हा के अनुसार आतंकवादी हताशा में आम लोगों को निशाना बना रहे हैं।

लेकिन विश्लेषक मानते हैं कि कश्मीर में सुरक्षाबलों की तैनाती से बढ़कर और कुछ भी चाहिए। एक विश्लेषक के अनुसार, “केंद्र सरकार ने विभिन्न विचारधारा वाले दलों को तवज्जो दी है। कभी मलिक, कभी नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी और यहां तक कि हुर्रियत भी। उसी माहौल ने जम्मू-कश्मीर को हर अहम मौके पर समस्या से बाहर निकालने में मदद की। उस माहौल को खत्म करना उतना ही चिंताजनक है जितना राज्य का दर्जा खत्म करना और उसे विभाजित करना। इस टूट-फूट का जो मलबा है मलिक उसका अहम हिस्सा हैं। भारत कश्मीर में राजनीतिक रूप से अनाथ और सुरक्षाबलों पर इतना आश्रित पहले कभी नहीं रहा।”

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TAGS: Jammu-Kashmir, Yasin Malik, Life Sentence, Kashmir Problem, Naseer Ganai
OUTLOOK 20 June, 2022
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