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27 January 2021

झारखंड: जिसे समाज ने कभी पिलाया था मैला, उस महिला को मिला पद्मश्री

सरायकेला के बीरवांस की छुटनी महतो की दुनिया 25 सालों में इतनी बदल गई कि वह खुद को नहीं पहचान सकती। कोई 25 साल पहले इसी समाज के लोगों ने उस पर डायन होने का आरोप लगाया था, मल-मूत्र पिलाकर प्रताड़ति किया था। बांधकर पीटा था, अर्ध नग्‍न कर गलियों में घसीटा था .....उसे पद्मश्री मिल जाये तो इसे क्‍या कहेंगे। जब उसे पद्मश्री मिलने की सूचना दी गई तो उसे खुद पर भी भरोसा नहीं हुआ था।


बात 1995 की है शादी के कोई 16 साल बाद जब अंधविश्‍वास में एक तांत्रिक के कहने पर ससुराल के लोगों ने उसे मैला पिलाया, पेड़ से बांधकर पीटा। अर्ध नग्‍न कर गांव की गलियों में घसीटा। उसकी हत्‍या की योजना बन रही थी। सहमति गांव वालों की भी थी। तब वह आधी रात चार बच्‍चों के साथ जान बचाने के लिए निकल भागी थी। दरअसल परिवार में एक बच्‍चा बीमार हो गया तो उसका इल्‍जाम छुटनी पर ही लगा, कि डायन बिसाही कर दिया है। ससुराल से निकलने के बाद तीसरी कक्षा तक पढ़ी छुटनी के आगे बस अंधेरा था। ससुराल वालों ने उसे घर से निकाला था तब पति ने भी साथ नहीं दिया। पुलिस भी कुछ सुनने को तैयार नहीं थी। कई महीनों तक पेड़ के नीचे, जंगलों में किसी तरह जीवन गुजारा। उसके बाद उसने खुद को किसी तरह संभाला और ठाना कि खुद की तरह किसी दूसरी महिला को प्रताड़‍ित नहीं होने देगी। उसने धीरे धीरे तक कोई 90 महिलाओं की टीम खड़ी की। डायन प्रथा के खिलाफ अभियान छेड़ा, जागरूगता अभियान चलाया। जहां इस तरह की कोई खबर मिलती अपनी टीम के साथ धमक जाती। थाना, पुलिस से लेकर अदालत तक जा न्‍याय दिलवाती। इस तरह बीस सालों में उसने कोई सवा सौ महिलाओं को न्‍याय दिलवाया है। इसी वजह से भारत सरकार ने उसे पद्मश्री सम्‍मान से सम्‍मानिक करने का निर्णय लिया।

छुटनी के बुरे वक्‍त में डायन प्रथा के खिलाफ प्रारंभिक कारगर अभियान चलाने वाले प्रेमचंद उसकी मदद में खड़े हुए। छुटनी उनके फ्री लीगल एड कमेटी की सक्रिय सदस्‍य है। प्रेमचंद की पहल पर ही संयुक्‍त बिहार में डायन प्रथा उन्‍मूलन कानून ने आकार पाया। जिसे बाद में अलग हुए झारखंड ने भी अंगीकार किया। झारखंड में आज भी आये दिन डायन बिसाही के नाम पर महिलाओं की प्रताड़ना, हत्‍या की घटनाएं घटती रहती हैं। ऐसे में कोई बीस साल पहले किसी अनपढ़ जैसी महिला का इस मोर्चे पर जंग लड़ना वास्‍तव में दुरूह काम था। छुटनी को इस तरह की परेशानियों का सामना भी करना पड़ा। आज उसके काम की पहचान हुई, नतीजा है कि पद्मश्री का सम्‍मान उसकी झोली में है। अंतिम सांस तक इस कुप्रथा के खिलाफ जंग जारी रखने का छुटनी का संकल्‍प है।

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TAGS: छुटनी महतो, झारखंड, पद्म श्री, झारखंड, Jharakhand, Padma Shri, Chhutni Mahato
OUTLOOK 27 January, 2021
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