Advertisement
14 June 2022

झारखंड: यहां चींटियां भी टेस्‍ट लेकर खाते हैं लोग, स्‍वाद के साथ सेहत के लिए भी माकूल

आदिवासियों की खाद्य परंपरा में एक से एक कंद मूल मिलेंगे। दरअसल उनकी परंपरा को करीब से जानने वाले कहते हैं कि आदिवासी सिर्फ पेट भरने के लिए खाना नहीं खाते। सेहत को ध्‍यान में रखकर कंद मूल, साग, पत्‍ते, पेय पदार्थ आदि को भोजन में शामिल करते हैं। यह जानकर लोगों को आश्‍चर्य हो सकता है कि चींटियां भी उनके भोजन का हिस्‍सा हैं। चींटियों को अमूमन लोग नफरत के भाव से देखते हैं। देखते ही बदन में सिहरन की दौड़ती है। वहीं ग्रह नक्षत्र पर भरोसा करने वाले चींटियों को चीनी भी खिलाते हैं।

झारखंड के विभिन्‍न सुदूर इलाकों में रहने वाले आदिवासी समाज के लिए यह उनका पसंदीदा खाद्य पदार्थ है। लाल-गहरे नारंगी रंग की इन चींटियों को स्‍थानीय भाषा में माटा और देमता कहा जाता है। देमता मुंडारी भाषा का शब्‍द है, यानी चींटी। संताली इन्‍हें 'हाव' नाम से पुकारते हैं। गुमला, सिमडेगा, रांची के ग्रामीण इलाकों, संताल परगना और सिंहभूम में ये ज्‍यादा पाये जाते हैं। गर्मी और बारिश के प्रारंभ में ये ज्‍यादा मिलते हैं। आम और करंज के पेड़ पर।

Advertisement

गुमला के विशुनपुर के सामाजिक कार्यकर्ता सिमोन बिरहोर ने कहा कि अभी जंगली इलाकों में ये प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। आदिवासियों का यह पसंदीदा और पारंपरिक व्‍यंजन है। देमता बहुत खट्टा होता है, इमली से भी कई गुना ज्‍यादा खट्टा। देमता और इसके अंडे का इस्‍तेमाल सब्‍जी, भुजिया, चटनी बनाने में होता है। अंडे को साफ करने के बाद लहसुन, कालीमिर्च धनिया आदि से करी तैयार कर उसमें अंडा डालकर पकाते हैं। लहसुन, धनिया, मिर्च आदि मिलाकर चटनी तैयार की जाती है। माटा इसमें खटाई का काम करता है।

पारंपरिक मान्‍यता के अनुसार इसमें अनेक औषधीय गुण हैं। यह शरीर में रोग निरोधक क्षमता विकसित करता है। इसके सेवन से आंख की रोशनी बढ़ती है। गर्मी के दिनों में यह लू लगने पर बड़ा उपयोगी है, लू से बचाव भी करता है। चेचक, पेचिस, खांसी, सर्दी, कफ के लिए भी मुफीद है। अभी के मौसम में आदिवासी समाज के लोगों को हाथ में लग्‍गी और झोला लिये जंगलों की ओर जाते देखेंगे तो आप को लग सकता है कि वे आम या किसी और फल की तलाश में निकले हैं। मगर वे देमता की तलाश में निकले होते हैं। एक कुशल कारीगर की तरह पत्‍तों को आपस में जोड़कर, अपना घोसला-छत्‍ता तैयार कर अपना ठिकाना बनाते हैं। ताकि लार्वा सुरक्षित रहे, उनकी संख्‍या बढ़ सके। इसमें अंडे के साथ चींटियां भी मिलेंगी। इन बंधे हुए पत्‍तों को आकार बहुधा फुटबॉल के आकार तक का हो जाता है। इन्‍हें तोड़कर झोले में डालते हैं। चींटियां गलती से बदन पर गिर जायें तो काटकर शरीर लाल कर देंगी। धूप में तपे गर्म बर्तन में रखते हैं ताकि चींटियां मर जायें। पत्‍तों के साथ बांबी भी इनका ठिकाना होते हैं। सामान्‍यत: लोग परिवार के खाने के लिए ही एकत्र करते हैं मगर बाजार में भी इसे बेचते हैं। ग्रामीण बाजार में दोनों में यह मिल जायेगा मगर कीमत दो से चार सौ रुपये किलो तक।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: Jharkhand, Ants, taste, good for health
OUTLOOK 14 June, 2022
Advertisement