'माड़-भात' खाकर खेतों में काम करने वाली चंचला बनी पहलवान, दुनिया के दिग्गजों को देंगी पटखनी
झारखण्ड में खेल प्रतिभाओं और उनकी बदहाली की कमी नहीं। राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों के जूते पॉलिश करती, सिर पर ईंट ढोते, बाजार में सब्जी बेचते, कुली-रेजा का काम करते तस्वीरें और उनकी कहानियां आए दिन मीडिया में आती रहती हैं। मगर रांची के ओरमांझी की रहने वाली 12 साल की चंचला का किस्सा कुछ अलग है। वह गरीब परिवार में पलकर, असुविधाओं के बीच तैयार होकर अपना स्थान बनाई है। भारतीय कुश्ती टीम में शामिल हुई है।
पहलवानी शारीरिक शौष्ठव वालों के लिए होता है। बड़ी प्रतिष्पर्धा में शामिल होने वालों के लिए अतिरिक्त डायट की जरूरत होती है। ओरमांझी ब्लॉक के हतवार गांव की चंचला सूर्खियों में है। हंगरी के बूडापेस्ट में 19 से 25 जुलाई तक होने वाली विश्व जूनियर चैंपियनशिप 2021 के 40 किलोग्राम वर्ग के लिए पहलवान चंचला का भारतीय महिला कुश्ती टीम में हुआ है। वह झारखण्ड की पहली बालिका-महिला है जिसका भारतीय कुश्ती टीम में चयन हुआ है। माड़ ( चावल पसाकर निकला पानी)- भात, कभी कभी दाल और सब्जी खाकर उसने यह मजबूती पाई है। सरकारी योजना के तहत जब घर बन रहा था तो बाहर से मजदूर बुलाने के बदले पूरा परिवार मजदूर के रूप में काम कर रहा था। चंचला भी। पिता नरेंद्र नाथ पाहन कहते हैं कि वह मजबूत थी, खेत में काम करते हुए पीठ पर बोरा भी उठा लेती थी। चंचला के मां-बाप खेत में सब्जी उगाकर किसी तरह जीवन यापन करते हैं चार बच्चों वाला घर चलाते हैं। चंचला भी खेतों में मां-बाप की मदद में खेतों में काम करती थी। मां मैनो देवी कहती है कि गरीबी में पले हैं बाबू, अतिरिक्त पौष्टिक भोजन कहां से देते। जो घर में सामान्य खाना माड़-भात, भात, पानी में भिगोया हुआ बोथल भात, आलू खिलाते थे। कोच अच्छा खाना खिलाने को कहता था मगर गरीबी में कहां से खिलाते। किसी तरह सिर्फ उसके लिए आधा किलो दूध का इंतजाम किया था। मगर चंचला की उपलब्धि से मां बहुत खुश है। खुद निरक्षर है। इसके बावजूद खेलगांव जाकर उसका फॉर्म दूसरे की मदद से भरवाया था। कहती है खेत में काम कर रहे थे तभी फोन से बच्चे को जानकारी मिली तो उसने बताया। पिछले सोमवार को दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में भारतीय कुश्ती महासंघ द्वारा आयोजित ट्रायल में चचला ने अपने सभी प्रतिद्वंद्वियों को पराजित कर जूनियर विश्व चैपियनशिप के लिए क्वालीफाई किया। । बुधवार को वापस रांची लौटी तो मां ने आरती उतारकर उसका स्वागत किया। उसे देखने के लिए बड़ी संख्या में ग्रामीण जुटे थे। वर्ष 2016 में झारखण्ड सकार व सीसीएल के सौजन्य से गांव की खेल प्रतिभा का चयन हुआ था। उसी ट्रायल में चंचला का चयन हुआ। जेसएसपीएस से कुश्ती का रास्ता खुला तो राज्य कुश्ती संघ के अध्यक्ष भोलानाथ, कुश्ती कोच बबलू आदि ने उसे तराशा।
कोरोना और बारिश की मार
चंचला के मां-पिता उसकी उपलब्धि पर खुश हैं कि शायद उनके दिन भी फिरें। बताते हैं कि खेती, किसानी का काम करते हैं। खुद खेतों में बिना किसी मजदूर की मदद से खुद सब्जी उपजाते हैं और बाजार में बेचते हैं। तब घर चलता है। तीन साल पहले मकान बना है तो 70 हजार रुपये कर्ज हो गया है। गोबर से जमीन लीपा गया है, कमरे की दीवारों पर प्लास्टर नहीं हुआ है। बारिश और कोरोना के कारण उनकी आर्थिक स्थिति और डगमगाई है। सब्जी का दाम नहीं मिला। पांच-सात हजार रुपये की पूंजी खेत में लगाई थी मगर 15-20 हजार के फसल का नुकसान हुआ। जो पूंजी लगाा था वह भी डूब गया। टमाटर दो रुपये किलो बेचना पड़ा, तरबूत खेत में ही सड़ गया, झिंगी भी नहीं फला।
चंचला कहती है कि नियमित कोच के निर्देश के अनुसार कठिन परिश्रम करती हूं। पहलीबार वर्ल्ड चैंपियनशिप में खेलने जा रही हूं मगर निशाना ओलंपिक का है। जो कुछ मिला है उसका बड़ा श्रेय हमारे कोच को जाता है। बता दें कि चंचला ने 2017-18 में स्कूल गेम्स फेडरेशन ऑफ इंडिया राष्ट्रीय कुश्ती में सिल्वर मेडल और उसके बाद लगातार दो बार गोल्ड मेडल हासिल किया। 2019-20 में अंडर 15 नेशनल कुश्ती में ब्रांज और इस साल सब जूनियर नेशनल में ब्रांज मेडल हासिल किया है। वैसे झारखण्ड की तीन बेटियां 23 जुलाई से तोक्यो में होने वाले ओलंपिक में अपना जल्वा बिखेरेंगी। इनमें तीरंदाजी में रांची की दीपिका और हॉकी में खूंटी की निक्की प्रधान और सिमडेगा सलीमा टेटे महिला भारतीय हॉकी टीम में शामिल हैं।