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04 November 2020

झारखंड: नेता प्रतिपक्ष के साथ सूचना और मानवाधिकार आयोग पर भी संकट

हेमंत सरकार के शासन में झारखंड विधानसभा बिना विपक्ष के नेता के चल रहा है। झारखंड विकास मोर्चा ( झाविमो) सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी ने अपनी पार्टी का भाजपा में विलय कर दिया और भाजपा ने इन्‍हें विधायक दल का नेता बना दिया। मगर विधानसभा अध्‍यक्ष ने उन्‍हें अब तक नेता प्रतिपक्ष की मान्‍यता नहीं दी है। इसका असर सूचना आयोग एवं राज्‍य मानवाधिकार आयोग पर पड़ रहा है। सूचना आयुक्‍त के चयन वाली कमेटी में मुख्‍यमंत्री, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और मुख्‍यमंत्री द्वारा नामित एक कैबिनेट मंत्री होते हैं। इसी तरह राज्‍य मानवाधिकार आयोग के अध्‍यक्ष सदस्‍य के चयन वाली कमेटी में मुख्‍यमंत्री, विधानसभा अध्‍यक्ष और नेता प्रतिपक्ष रहते हैं। चयन में नेता प्रतिपक्ष की हामी जरूरी है। और हाल यह है कि राज्‍य सूचना आयोग बिना अध्‍यक्ष व सदस्‍य के चल रहा है। अध्‍यक्ष के अतिरिक्‍त सदस्‍यों के पांच  हैं। और करीब आठ हजार अपील के मामले ही लंबित हैं। वहीं मानवाधिकार आयोग का काम एक प्रशासनिक अधिकारी के बूते प्रभार में चल रहा है। यहां भी हजारों मामले लंबित हैं। बिना नेता प्रतिपक्ष के इन पदों को भरना मुश्किल है। सूचना, पारदर्शिता का मामला है तो डायन बिसाही के मामलों को लेकर झारखंड में बड़े पैमाने पर मानवाधिकार हनन की घटनाएं घटती रहती हैं। जाहिर है नेता प्रतिपक्ष के न होने का असर इन पर भी पड़ रहा है। जो हालात पैदा हुए हैं उससे लगता नहीं है कि नेता प्रतिपक्ष का मामला जल्‍द सुलझने वाला है।

बहरहाल बाबूलाल मरांडी भाजपा में आ गये तो झाविमो के दो अन्‍य विधायक प्रदीप यादव और बंधु तिर्की कांग्रेस में शामिल हो गये। दोनों कांग्रेस के कार्यक्रमों में शामिल होने के साथ कांग्रेस विधायक दल की बैठकों में भी विधिवत शामिल होते रहे हैं। वहीं चुनाव आयोग ने झाविमो के भाजपा में विलय को मान्‍यता दे दी और बीते राज्‍यसभा चुनाव के दौरान भाजपा विधायक की हैसियत से बाबूलाल मरांडी ने मतदान भी किया।

दल-बदल का मामला मान अध्‍यक्ष ने भेजा नोटिस

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झारखंड विधानसभा के अध्‍यक्ष ने पूरे मामले का स्‍वत: संज्ञान लेते हुए अपनी अदालत में सुनवाई का निर्णय किया। तीनों विधायकों को नोटिस जारी कर उनका पक्ष लिया। अब 10 वीं अनुसूचि के तहत इसे दल-बदल का मामला करा दिया और तीनों विधायकों को नोटिस जारी किया है। तीनों विधायकों को 23 नवंबर को विधानसभा अध्‍यक्ष के न्‍यायाधिकरण में हाजिर होकर या अधिवक्‍ता के माध्‍यम से अपना पक्ष रखना होगा।

अपनी-अपनी दलील

झाविमो से कांग्रेस में शामिल होने वाले प्रदीप यादव और बंधु तिर्की की दलील है कि वे दो तिहाई विधायक के साथ कांग्रेस में शामिल हुए। संख्‍या बल के आधार पर 10 वीं अनुसूची का मामला नहीं बनता है। वहीं बाबूलाल मरांडी का कहना है कि पूरी प्रक्रिया के तहत भाजपा में झाविमो का विलय हुआ है और चुनाव आयोग ने इसकी मान्‍यता दे दी है। आयोग ने राज्‍यसभा चुनाव के दौरान भाजपा का ही वोटर माना।

तब चली थी साढ़े चार साल सुनवाई

रघुवर सरकार जब सत्‍ता में आयी थी उस समय भी झाविमो के आठ में से छह विधायक भाजपा में शामिल हुए मंत्री भी बने। तब झाविमो अध्‍यक्ष ने इस विलय को चुनोती दी थी। मामला साढ़े चार साल तक विधानसभा अध्‍यक्ष के ट्रिब्‍यूनल में चला था। अंत में तत्‍कालीन विधानसभा अध्‍यक्ष दिनेश उरांव ने विलय को संवैधानिक करा दिया था। वर्तमान किस्‍सा दोहराया गया तो बाबूलाल मरांडी को प्रतिपक्ष के नेता के लिए लंबा इंतजार करना पड़ सकता है। हो रहे विलंब को लेकर पूर्व में भाजपा इसकी शिकायत राज्‍यपाल से कर चुकी है। बाबूलाल मरांडी का तर्क रहा है कि यह पुराने मामले की तरह नहीं है। इस बार पार्टी का विलय हुआ है और किसी ने शिकायत नहीं की है खुद विधानसभा अध्‍यक्ष ने संज्ञान लिया है। पक्ष-विपक्ष के तर्कों के बीच राजनीतिक रिश्‍तों का प्रभाव हुआ तो भाजपा को विपक्ष के नेता के लिए अभी तरसना पड़ेगा।



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TAGS: झारखंड, झारखंड नेता प्रतिपक्ष, झारखंड सूचना और मानवाधिकार आयोग, हेमंत सोरेन, Jharkhand, Information and Human Rights Commission, jharkhand Leader of Opposition
OUTLOOK 04 November, 2020
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