झारखंड के अनेक खदानों और औद्योगिक इकाइयों पर लटक सकते हैं ताले, हाई कोर्ट का यह है निर्देश
झारखंड हाईकोर्ट के आदेश पर कार्रवाई हुई तो प्रदेश के कोई एक सौ खदानों और औद्योगिक इकाइयों पर ताले लटक सकते हैं। झारखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायााीश न्यायमूर्ति संज कुमार मिश्र और आनंद सेन की पीठ ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान इको सेंसेटिव जोन के दस किलोमीटर के दायरे में एनबीडबल्यूएल (नेशनल बोर्ड ऑफ वाइल्ड लाइफ) की अनुमति के चल रहे खदानों और औद्योगिक इकाइयों पर रोक लगाने का निर्देश दिया है।
अदालत ने केंद्र और राज्य सरकार से इस मामले में जवाब दखिल करने को कहा है। अदालत ने इस मामले में अगली सुनवाई के लिए 15 अप्रैल की तिथि मुकर्रर की है। उमाशंकर सिंह ने झारखंड के इंको सेंसेटिव जोन में चल रही औद्योगिक इकाइयों और खदानों को रोकने और 9 क्षेत्रों को इको सेंसेटिव जोन घोषित करने को लेकर जनहित याचिका दायर की थी।
उमा शंकर सिंह के अधिवक्ता सोनल तिवारी ने सुनवाई के दौरान अदालत को बताया कि हजारीबाग के वन प्रमंडल पदाधिकारी ने 15 अक्टूबर 2018 को मुख्य वन संरक्षक को लिखे पत्र में कहा है कि कोडरमा वन्य प्राणी क्षेत्र में 37, हजारीबाग में 31,गौतम बुद्ध वन्य प्राणी क्षेत्र में एक, पारसनाथ और तोपचांची वन्य प्राणी क्षेत्र में 15 औद्योगिक इकाइयां बिना अनुमति के चल रही हैं। राज्य सरकार से प्रदेश के नौ क्षेत्रों को इको सेंसेटिव जोन घोषित किया है मगर इसका दायरा 10 किलोमीटर से कम है। इसे 10 किलोमीटर किया जाना चाहिए।
तिवारी ने अदालत से यह भी कहा कि गोवा फाउंडेशन बनाम केंद्र सरकार मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने किसी भी वाइल्ड लाइफ सेंचुरी, फॉरेस्ट या नेशनल पार्क के दस किलोमीटर के दायरे को इको सेंसेटिव जोन बनाने का निर्देश दिया है। इस इको सेंसेटिव जोन में एनबीडब्ल्यूएल की अनुमति के बिना माइनिंग और औद्योगिक गतिविधि नहीं हो सकती। मगर बिना अनुमति प्रदेश में वैध अवैध तरीके से अनेक माइनिंग और औद्योगिक इकाइयां चल रही हैं। पक्ष सुनने के बाद अदालत ने सरकार से कहा कि इको सेंसेटिव जोन में माइनिंग और औद्योगिक गतिविधियां चल रही हैं तो उस पर रोक लगाई जाये।