नक्सलियों ने बिछा रखे हैं लैंड माइंस, संकट में दर्जनों गांव के लोग
छत्तीसगढ़ के जशपुर जिला की सीमा से लगे झारखण्ड के गुमला जिला के ग्रामीण परेशानी के दौर से गुजर रहे हैं। नक्सलियों ने यहां अपने पड़ाव वाले जंगली इलाकों में अपनी सुरक्षा में लैंड माइंस बिछा रखे हैं। जरा सी असावधानी मौत का सामना हो सकता है। खुद नक्सलियों ने भी ग्रामीणों से अपील कर रखी है कि गांव से सटे इन जंगली इलाकों में जलावन के लिए लकड़ी लेने या पशु चराने न आयें, लैंड माइंस विस्फोट से नुकसान हो सकता है। गुमला पुलिस भी नक्सलियों के लैंड माइंस के खतरे को देखते हुए ग्रामीणों से इसी तरह की अपील करती रहती है। गुमला नक्सल प्रभावित लातेहार जिला की सीमा से भी मिलता है और यह जोन बड़े नक्ली नेताओं का ठिकाना रहा है। अभी 15 लाख का इनामी माओवादी बुद्धेश्वर गंझू यहां का आतंक है। इसके दस्ते यहां सक्रिय हैं। वैसे छिटपुट रूप से पीएलएफआइ और टीपीसी के उग्रवादियों की भी सक्रियता रहती है।
हनुमानजी की जन्मस्थली के रूप में ख्यात आंजन धाम से लेकर कुकरंगा, ओडामार, मनातू, उरू, बारडीह, कोचागानी, कुटमा छापरटोली, चांदगो, कोटाम, सकरा, सरगांव, रोघडीह, सकसरी, ऊपर डुमरी, तबेला, मड़वा, कुयोग जैसे कोई चालीस-पचास गांव हैं जिनके बारे में नक्सलियों ने ग्रामीणों को सतर्क किया है। नहीं आने की अपील की है। सटे इलकों के जंगल में प्रवेश पर रोक लगा दी है। ग्रामीणों की जंगलों पर बड़ी निर्भरता रहती है, जलावन के लिए लकड़ी लाना हो, पशुओं को चराना हो या चारा लाना हो या जंगल में बहती नदी, चुआंडी से पानी लाना हो सब उन्हीं इलाकों में पड़ते हैं। ऐसे में नक्सलियों और पुलिस की अपील के बाद बड़ी संख्या में ग्रामीणों ने जंगल का रुख करना बीते कोई एक माह से छोड़ दिया है। मगर बढ़ती गरमी के बीच पानी और पशु चारा को लेकर ग्रामीणों की परेशानी भी बढ़ती जा रही है।
बीते 27 फरवरी को ही कुरूमगढ़ थाना के मारवा गांव के जंगल में माओवादियों द्वारा लगाये गये आइईडी ( इंप्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस) के विस्फोट से ग्रामीण महेंद्र महतो का पांव उड़ गया था। हेलीकॉप्टर से इलाज के लिए रांची लाया गया। इसी तरह सुरक्षा बल का एक जवान भी विस्फोट में घायल हुआ था। दो दिन पहले ही गुमला पुलिस और सीआरपीफ की कार्रवाई में सदर थाना के करौंदी के पास से एक हजार किलो जिलेटिन और 34 डेटोनेटर एक ट्रैक्टर से बरामद किया गया था। जाहिर है नक्सलियों की यहां के ग्रामीण इलाकों में मजबूत दखल है। वैसे बारूदी सुरंग के खतरे सिर्फ गुमला में नहीं बल्कि झारखण्ड के दूसरे नक्सल प्रभावित इलाकों में भी हैं और वहां के ग्रामीणों को भी जलावन की लकड़ी और पशु चारा को लेकर संकट का सामना करना पड़ रहा है।