Advertisement
02 August 2018

मध्यप्रदेश के झाबुआ के कड़कनाथ मुर्गा को मिला जीआइ टैग

File Photo

मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के अनूठी खासियत वाले कड़कनाथ मुर्गा को भौगोलिक पहचान (जीआइ) टैग मिल गया है। देश की जियोग्राफिकल इंडिकेशंसंस रजिस्ट्री ने इस पर मुहर लगा दी है। छत्तीसगढ़ के एक संगठन ने दंतेवाड़ा के मुर्गे की इस प्रजाति के लिए इस टैग की मांग की थी पर झाबुआ के दावे को मंजूरी दी गई। इसके लिए करीब साढ़े छह साल की लंबी जद्दोजहद चली।

इसके लिए सहकारी सोसायटी कृषक भारती कोऑपरेटिव लिमिटेड (कृभको) के संगठन ग्रामीण विकास ट्रस्ट के झाबुआ स्थित केंद्र ने आवेदन किया था। जियोग्राफिकल इंडिकेशंस रजिस्ट्री की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक मांस उत्पाद तथा पोल्ट्री एवं पोल्ट्री मीट की श्रेणी में किये गए इस आवेदन को 30 जुलाई को मंजूर कर लिया गया है। यानी झाबुआ के कड़कनाथ मुर्गे के काले मांस के नाम जीआई टैग पंजीकृत हो गया है। यह जीआई पंजीयन सात फरवरी 2022 तक वैध रहेगा। 

ग्रामीण विकास ट्रस्ट के क्षेत्रीय कार्यक्रम प्रबंधक महेंद्र सिंह राठौर ने समचार एजेंसी पीटीआइ से इसकी पुष्टि की।उन्होंने बताया कि हमारी अर्जी पर झाबुआ के कड़कनाथ मुर्गे के काले मांस के नाम जीआइ टैग का पंजीयन हो गया है। हमें इसकी औपचारिक सूचना मिल चुकी है।
जानकारों ने बताया कि जीआइ पंजीयन का चिन्ह विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों में उत्पन्न होने वाले ऐसे उत्पादों को प्रदान किया जाता है जो अनूठी खासियत रखते हैं। जीआइ टैग के कारण कड़कनाथ चिकन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कारोबारी पहचान भी हासिल होगी जिससे इसके निर्यात के रास्ते खुल सकते हैं। इस टैग के कारण झाबुआ के कड़कनाथ चिकन के ग्राहकों को इस मांस की गुणवत्ता का भरोसा मिलेगा, जबकि इस मांस के उत्पादकों को नक्कालों के खिलाफ पुख्ता कानूनी संरक्षण हासिल होगा। 

झाबुआ मूल के कड़कनाथ मुर्गे को स्थानीय जुबान में कालामासी कहा जाता है। इसकी त्वचा और पंखों से लेकर मांस तक का रंग काला होता है। कड़कनाथ के मांस में दूसरी प्रजातियों के चिकन के मुकाबले चर्बी और कोलेस्ट्रॉल काफी कम होता है। झाबुआवंशी मुर्गे के मांस में प्रोटीन की मात्रा अपेक्षाकृत ज्यादा होती है। कड़कनाथ चिकन की मांग इसलिए भी बढ़ती जा रही है, क्योंकि इसमें अलग स्वाद के साथ औषधीय गुण भी होते हैं। कड़कनाथ प्रजाति के जीवित पक्षी, इसके अंडे और इसका मांस दूसरी कुक्कुट प्रजातियों के मुकाबले काफी महंगी दरों पर बिकता है।

झाबुआ की गैर सरकारी संस्था ने आठ फरवरी 2012 को कड़कनाथ मुर्गे के काले मांस को लेकर जीआइ प्रमाणपत्र की अर्जी दी थी। लंबी जद्दोजहद के बाद इस अर्जी पर अंतिम फैसला हो पाता, इससे पहले ही एक निजी कंपनी यह दावा करते करते हुए जीआइ टैग की जंग में कूद गयी थी कि छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में मुर्गे की इस प्रजाति को अनोखे ढंग से पालकर संरक्षित किया जा रहा है। हालांकि, जियोग्राफिकल इंडिकेशंस रजिस्ट्री ने झाबुआ के कड़कनाथ मुर्गे के काले मांस को लेकर मध्यप्रदेश का दावा मार्च में शुरुआती तौर पर मंजूर कर लिया था और अपनी भौगोलिक उपदर्शन पत्रिका में इस बारे में विज्ञापन भी प्रकाशित किया था। इसके बाद पड़ोसी छत्तीसगढ़ ने इस प्रजाति के लजीज मांस को लेकर जीआइ प्रमाणपत्र हासिल करने की जंग में कदम पीछे खींच लिए थे। 

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: Kadaknath, chicken, meat, Jhabua, GI tag
OUTLOOK 02 August, 2018
Advertisement