विवाद के बाद एमपी सरकार ने वापस लिया नसबंदी कराने का आदेश, स्वास्थ्य कर्मचारियों को दिए थे टारगेट
मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार ने परिवार नियोजन के तहत अपने स्वास्थ्य कर्मियों और अधिकारियों को लेकर नसबंद कराने को लेकर कम-से-कम एक आदमी लाने के आदेश को राजनीतिक आलोचना और विवाद के बाद वापस ले लिया है। मध्यप्रदेश की स्वास्थ्य मंत्री तुलसी सिलावत ने गुरुवार को राज्य सरकार की तरफ से जारी इस अजीबोगरीब आदेश के बाद कहा कि इसे वापस ले लिया गया है।
बता दें, कमलनाथ सरकार ने इस आदेश में बहुउद्देश्यीय स्वास्थ्यकर्मियों (एमपीएचडब्ल्यूएस) को चेतावनी दी थी कि वे एक व्यक्ति की नसबंदी करें और अगर वो ऐसा करने में असफल रहते हैं तो उनका वेतन काट दिया जाए।
नो-वर्क, नो-पे की दी चेतावनी
मिशन को-ऑर्डिनेटर, छवी भारद्वाज ने बताया कि राज्य सरकार ने कर्मचारियों के लिए हर महीने 5 से 10 पुरुषों के नसंबदी ऑपरेशन करवाने का टारगेट दिया हुआ है। यदि वे 2019-20 की अवधि में नसबंदी के लिए एक पुरुष व्यक्ति पाने में विफल रहते हैं तो जरूरी कदम उठाए जाएंगे। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में सिर्फ 0.5 प्रतिशत पुरुष ने ही नसबंदी कराई है। मध्य प्रदेश के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) ने शीर्ष जिला अधिकारियों और मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारियों (सीएचएमओ) से ऐसे पुरुष कर्मचारियों की पहचान करने को कहा है। अधिकारियों ने कहा है कि 'जीरो वर्क आउटपुट' वाले कर्मचारी पर 'नो वर्क नो पे' का सिद्धांत को लागू किया जाए। यदि वे 2019-20 की अवधि में कम से कम एक मामले में एंट्री नहीं करते हैं जो अगले महीने समाप्त होता है। एनएचएम मिशन डायरेक्टर ने 11 फरवरी को यह फरमान जारी किया है।
इंदिरा गांधी ने आपातकाल के दौरान चलाया था अभियान
सरकार के आंकड़ों के अनुसार, केवल 0.5 प्रतिशत पुरुषों ने ही नसबंदी कराने का विकल्प चुना था। आपको बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के दौरान बड़े पैमाने पर नसबंदी अभियान 21 महीने तक चलाया गया था और इस दौरान हजारों लोगों की जबरन नसबंदी करा दी गई थी। इस अभियान की वजह से इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी की काफी आलोचना हुई थी।