कर्नाटक के कलबुर्गी में लिंगायत और वीरशैव समुदाय में भिड़ंत
कर्नाटक सरकार द्वारा लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा दिए जाने के बाद राज्य में दो समुदायों के बीच सोमवार को विवाद हो गया। कलबुर्गी में लिंगायत और वीरशैव समुदाय के लोग आपस में भिड़ गए। पुलिस ने मौके पर पहुंच कर स्थिति को संभाला। इस मामले में कुछ लोगों को मामूल चोटें आई हैं। कहा जा रहा है कि अप्रैल-मई में होने जा रहे कर्नाटक विधानसभा चुनावों को देखते हुए सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार ने लिंगायत समुदाय के पक्ष में खड़ा होकर बीजेपी के वोट बैंक में सैंध लगाने की कोशिश की है।
Karnataka: Clashes broke out b/w #Lingayat followers & Veerashaiva followers in Kalaburagi. Lingayat followers had come to celebrate state cabinet's approval for recommendation of separate religion for Lingayat community, Veerashaiva followers had come to protest against the same pic.twitter.com/Ds5rneqQxU
— ANI (@ANI) March 19, 2018
राज्य सरकार ने दिया अलग धर्म का दर्जा
बता दें कि रविवार को लिंगायत समुदाय के लोग अपने समुदाय को अलग धर्म का दर्जा दिए जाने की मांग को लेकर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया से मिले। मुलाकात के एक दिन बाद सिद्धारमैया ने इस मुद्दे को राज्य कैबिनेट के समक्ष रखा। कैबिनेट ने लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा दिए जाने की मांग पर अपनी मंजूरी दे दी। कैबिनेट ने इस मुद्दे पर बनी नागमोहन दास कमेटी की सिफारिशों को भी मंजूर कर लिया। राज्य सरकार अब इस प्रस्ताव को केंद्र सरकार के पास भेज रही है।
राज्य सरकार के इस कदम से कर्नाटक की राजनीति में भूचाल आ गया है। एक अन्य समुदाय वीरशैव के लोग भी सड़कों पर उतर आए। कलबुर्गी में दोनों समुदाय के लोग आपस में भिड़ गए।
नागमोहन कमेटी का विरोध
वीरशैव समिति के अध्यक्ष चंद्रशेखर हिरमेठ ने बताया कि वीरेशैव समुदाय शुरू से ही नागमोहन दास की अध्यक्षता में बनी संविधान समिति का विरोध करता आया है। उन्होंने बताया कि वे (नागमोहन) हमारे धर्म का कोई विशेषज्ञ नहीं है और न ही उन्हें कर्नाटक के विभिन्न धर्म और रिवाजों की ज्ञान है। हम इस कमेटी और कमेटी की सिफारिशों का विरोध करते हैं और उनका यह विरोध आगे भी जारी रहेगा। उन्होंने कहा कि लिंगायत समुदाय को अलग धर्म की मान्यता देने का राज्य सरकार का फैसला विशुद्ध रूप से राजनीति से प्रेरित फैसला है। वीरशैव समुदाय इसका कड़ा विरोध करता है।
लिंगायत और सियासत
राजनीतिक विश्लेषक लिंगायत को एक जातीय पंथ मानते हैं, न कि एक धार्मिक। राज्य में लिंगायत अन्य पिछड़े वर्ग में आते हैं। 21 फीसदी आबादी और आर्थिक रूप से ठीकठाक होने की वजह से कर्नाटक की राजनीति पर इनका प्रभावी असर है। 80 के दशक की शुरुआत में रामकृष्ण हेगड़े ने लिंगायत समाज का भरोसा जीता। हेगड़े की मृत्यु के बाद बीएस येदियुरप्पा लिंगायतों के नेता बने। 2013 में बीजेपी ने येदियुरप्पा को सीएम पद से हटाया तो लिंगायत समाज ने भाजपा को वोट नहीं दिया। नतीजतन कांग्रेस फिर से सत्ता में लौट आई। अब बीजेपी फिर से लिंगायत समाज में गहरी पैठ रखने वाले येदियुरप्पा को सीएम कैंडिडेट के रूप में आगे रख रही है। अगर कांग्रेस लिंगायत समुदाय के वोट को तोड़ने में सफल होती है तो यह कहीं न कहीं बीजेपी के लिए नुकसानदेह साबित होगी।
लंबे समय से हो रही है मांग
लिंगायत समुदाय के भीतर उन्हें हिंदू धर्म से अलग मान्यता दिलाने की मांग समय-समय पर होती रही है लेकिन पिछले दशक से यह मांग जोरदार तरीके से की जा रही है। 2011 की जनगणना के वक्त लिंगायत समुदाय के संगठनों ने अपने लोगों के बीच यह अभियान चलाया कि वे जनगणना फर्म में अपना जेंडर न लिखें।
लिंगायत समुदाय का कर्नाटक की राजनीति में प्रभाव
बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा को लिंगायत समुदाय का तो पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की जनता दल (सेक्युलर) के एचडी कुमारस्वामी को वोक्कालिगा समुदाय का नेता माना जाता है। राज्य में इन दोनों जातियों की आबादी क्रमश 17 और 12 फीसदी मानी जाती है। राज्य में करीब 17 फीसदी अल्पसंख्यक भी हैं जिसमें 13 फीसदी मुसलमान और 4 फीसदी ईसाई हैं। अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े वर्ग की तादाद काफी अधिक है। ये पूरी आबादी का 32 प्रतिशत हैं।
राज्य की राजनीति में लिंगायत और वोक्कालिगा दोनों जातियों का दबदबा है। सामाजिक रूप से लिंगायत उत्तरी कर्नाटक की प्रभावशाली जातियों में गिनी जाती है। राज्य के दक्षिणी हिस्से में भी लिंगायत लोग रहते हैं।
70 के दशक तक लिंगायत दूसरी खेतिहर जाति वोक्कालिगा लोगों के साथ सत्ता में बंटवारा करते रहे थे। वोक्कालिगा, दक्षिणी कर्नाटक की एक प्रभावशाली जाति है। कांग्रेस के देवराज उर्स ने लिंगायत और वोक्कालिगा लोगों के राजनीतिक वर्चस्व को तोड़ दिया। अन्य पिछड़ी जातियों, अल्पसंख्यकों और दलितों को एक प्लेटफॉर्म पर लाकर देवराज उर्स 1972 में कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने।