बिहार में न मिलेगी शराब न चलेंगे मयखाने
इसकी घोषणा करते हुए नीतीश कुमार ने कहा कि देशी शराब पर लगे प्रतिबंध के पहले चार दिन में ही यह सामाजिक आंदोलन बन गया है। गांव में शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगा तो शहरों में महिलाओं ने सरकारी अंग्रेजी शराब की दुकानों का विरोध करना शुरू कर दिया। नीतीश ने कहा कि बिहार में सामाजिक परिवर्तन के लिए यह सही समय है।
गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव के दौरान महिला मतदाताओं से नीतीश कुमार ने यह वादा भी प्रमुखता से किया था कि अगर उनकी सरकार बनी तो शराब पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया जाएगा। जिसे देखते हुए बड़ी संख्या में महिला मतदाताओं ने नीतीश को वोट किया था। नीतीश ने माना भी था कि उन्हें तीसरी बार मुख्यमंत्री के पद तक पहुंचाने में महिला मतदाताओं का बहुत बड़ा योगदान रहा है।
अब सवाल यह उठ रहा है कि सरकार शराब की बिक्री बंद होने से राजस्व के नुकसान की भरपाई कैसे करेगी। इस सवाल पर नीतीश कहते हैं कि उन्हें शराब से किसी राजस्व की जरूरत नहीं है। सरकार के शराबबंदी के फैसले को सत्ता ही नहीं, विपक्ष के लोगों ने भी स्वागत किया और एक साथ राज्य के दोनों सदनों के विधायकों ने एक साथ शपथ लिया कि वह शराब का सेवन नहीं करेंगे और दूसरे लोगों को ऐसा करने से रोकेंगे। बिहार विधानसभा के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि जब सत्ता और विपक्ष ने एकजुट होकर संकल्प लिया। इतना ही नहीं राज्य सरकार के सरकारी कार्यालयों में भी शराब न पीने की शपथ दिलाई जाने लगी। पहले चरण में देशी दारू के ठेकों को बंद किया गया जबकि भारत में निर्मित अंग्रेजी शराब की बिक्री पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया था। उसी समय नीतीश कुमार ने कहा कि कोई भ्रम नहीं रहे कि पूर्ण शराबबंदी नहीं होगी। पूरी योजना के साथ पहले चरण में 90 फीसदी दुकानें बंद की गईं बाकी बची दुकानों को भी धीरे-धीरे बंद कर दिया गया।
बिहार उत्पाद संशोधन विधेयक 2016 के मुताबिक एक अप्रैल के बाद राज्य में अवैध और जहरीली शराब के उत्पादन और बिक्री करते पकड़े जाने पर फांसी की सजा दिए जाने का प्रावधान है। साथ ही यदि कोई व्यक्ति अवैध शराब पीकर अपंग हुआ तो दोषी व्यक्ति को उम्र कैद की सजा सुनाई जाएगी। इसके अलावा अगर सार्वजनिक जगहों पर शराब पीने पर भी न्यूनतम पांच साल की सजा का प्रावधान किया गया है। नीतीश कुमार कहते हैं कि इस विधेयक को लाने से पहले इसका पूरा अध्ययन किया गया है। जिसके तहत शराब की अवैध तरीके से बिक्री के लिए सीसीटीवी, जीपीएस सिस्टम, राज्य के सीमा पर इलेक्ट्रॉनिक लॉक और अत्याधुनिक सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएगी। लेकिन जानकारों को इस बात की आशंका है कि सरकार के कड़े प्रावधान के बावजूद अवैध तरीके से शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाना मुश्किल है।
गुजरात में लंबे समय से शराब पर प्रतिबंध लगा हुआ लेकिन इसके बावजूद राज्य में अवैध तरीके से शराब की तस्करी हो रही है। बड़ी संख्या में जहरीली शराब पीने से मौतें भी हो रही हैं। वहीं बिहार के सीमावर्ती राज्यों उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल के कुछ इलाकों से शराब की तस्करी बढऩे की आशंका प्रबल हो गई है। लेकिन राज्य सरकार शराबबंदी को लेकर पूर्णत: प्रतिबद्ध है इसलिए एक करोड़ छात्रों के अभिभावकों से शराब नहीं पीने को लेकर शपथ पत्र भरवाया गया है। सात लाख से अधिक दीवारों पर जागरूकता वाले नारे लिखे गए हैं। आठ हजार से ज्यादा नुक्कड़ नाटक का आयोजन किया गया है। इसके साथ ही विज्ञापनों के जरिये शराब नहीं पीने की अपील की जा रही है। शराब से लोगों को दूर करने के लिए चिकित्सकों के शिविर भी लगाए जा रहे हैं ताकि लोग इन केंद्रों पर जाकर शराब न पीने के उपाय जान सकें। मनोचिकित्सकों से भी सलाह ली जा रही है।
लेकिन ताड़ी पर प्रतिबंध लगने से राज्य में नई तरह की बहस छिड़ गई है। दरअसल, सरकार को अंदेशा था कि लोग ताड़ी में नशीली दवाएं या अवैध शराब मिलाकर सेवन कर रहे हैं इसको लेकर सरकार ने ताड़ी पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया। इसके बाद राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने कहा कि यह एक खास समुदाय को निशाने पर रखकर फैसला लिया गया है। लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव सरकार के फैसले का स्वागत करते हैं। लालू कहते हैं कि शराबबंदी को एक आंदोलन के तौर पर स्वीकार किया गया है और सभी लोगों का समर्थन मिल रहा है।