चीन छोड़ो तो आओ म्हारे देस, विदेशी कंपनियों को निवेश के लिए आकर्षित करने की खट्टर सरकार की ख्वाहिश
महत्वाकांक्षा तो लाजवाब है। हरियाणा सरकार की उम्मीदें चीन से बहुराष्ट्रीय कंपनियों के तथाकथित मोहभंग को देखते हुए परवान पर हैं। दावा है कि 60 बहुराष्ट्रीय कंपनियों समेत 600 से अधिक कंपनियों ने निवेश की संभावनाएं तलाशने के लिए राज्य सरकार के साथ संपर्क किया है। इनमें दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी एप्पल से लेकर भारत की सबसे बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनी मारुति सुजुकी भी शामिल हैं। मौके का फायदा उठाने के लिए राज्य की मनोहरलाल खट्टर सरकार नई औद्योगिक नीति लेकर आ रही है। लेकिन सवाल है कि क्या बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आकर्षित करने के लिए भारत अभी पूरी तरह तैयार है? विशेषज्ञ इससे इत्तेफाक नहीं रखते। उनका कहना है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर, लॉजिस्टक और ऑटोमेशन जैसे मामलों में भारत अभी चीन से बहुत पीछे है। विपक्ष का आरोप है कि यह सब सरकार के लिए बस एक इवेंट है।
मुख्यमंत्री खट्टर कहते हैं, “सरकार ने कोविड-19 को अवसर के रूप में लेते हुए औद्योगिक और आर्थिक सुधारों पर जोर दिया है, जिसके चलते 60 बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने राज्य में निवेश की इच्छा जताई है।” उन्होंने बताया कि अनेक कंपनियां चीन से बाहर निकलना चाहती हैं और वे हरियाणा को निवेश के लिए आदर्श गंतव्य के रूप में देख रही हैं। नई इकाइयां स्थापित करने से पहले एक हजार दिनों के लिए श्रम कानूनों में राहत प्रदान की जाएगी। सरकार ने निवेश करने के इच्छुक उद्यमियों को लीजहोल्ड पर जमीन देने की पहल की है।
कहा जा रहा है कि राज्य के 22 में से 10 जिले दिल्ली-एनसीआर की 60 किलोमीटर की परिधि में होने का लाभ हरियाणा को मिल सकता है। राज्य में निवेश की संभावनाओं को सिरे चढ़ाने के लिए 15 अगस्त तक नई औद्योगिक नीति भी लाई जा रही है। हरियाणा में औद्योगिक और सेवा क्षेत्र में स्थानीय युवाओं को रोजगार में वरीयता के लिए 75 फीसदी आरक्षण देने और फैक्टरीज एंड इंडस्ट्रियल एक्ट में संशोधन के लिए बिल बनाया है, जो राज्यपाल के पास विचाराधीन है। राज्य में 90 फीसदी सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यम (एमएसएमई) हैं, इसलिए नई औद्योगिक नीति एमएसएमई पर केंद्रित होगी। इसके लिए अलग से एमएसएमई निदेशालय भी स्थापित किया जा रहा है।
लेकिन कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला का कहना है, “विदेशी निवेश और निजी क्षेत्र में स्थानीय युवाओं को 75 फीसदी आरक्षण केवल झांसा है। बेरोजगारी कम करने की दिशा में सार्थक कदम उठाने के बजाय मनोहर लाल खट्टर सरकार निवेश और रोजगार को भी इवेंट की तरह ले रही है।” सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआइई) के आंकड़ों का हवाला देते हुए सुरजेवाला ने कहा कि कोरोना काल के पहले तीन महीने में हरियाणा में बेरोजगारी की दर देश में सर्वाधिक हो गई है। जून में आंध्र प्रदेश में बेरोजगारी की दर 2.1, असम में 0.6, बिहार में 19.5, गुजरात में 2.8, झारखंड में 21, मध्य प्रदेश में 8.20, महाराष्ट्र में 9.70, ओडिशा 4.2, राजस्थान 13.7, उत्तर प्रदेश 9.6, पश्चिम बंगाल 6.5 फीसदी रही जबकि हरियाणा में यह दर 33.60 फीसदी रही।
उपमुख्यमंत्री और उद्योग मंत्री दुष्यंत चौटाला के मुताबिक नई औद्योगिक नीति में राज्य के सभी 22 जिलों में औद्योगिक कलस्टर विकसित किए जाने की योजना है। एमएसएमई को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सरकार ने सभी जिलों में कृषि आधारित क्लस्टर स्थापित करने की योजना तैयार की है। अभी तक राज्य में गुड़गांव, मानेसर, फरीदाबाद, सोनीपत, पानीपत, करनाल और यमुनानगर जिलों तक सिमटे औद्योगिक विकास को अब ‘सी’ और ‘डी’ श्रेणी के शहरों में भी उनकी विशेषता के मुताबिक विस्तारित किया जाएगा। औद्यागिक विकास के लिए एचएसआइआइडीसी के पास करीब 17,000 एकड़ लैंड बैंक है। जिन पंचायतों के पास 500 एकड़ या इससे अधिक भूमि अनुपयोगी है, वहां भी औद्योगिक इकाइयां विकसित करने की अनुमति होगी।
चौटाला ने आउटलुक को बताया, “2025 तक लागू रहने वाली इस नई औद्योगिक नीति के तहत राज्य में नई औद्योगिक इकाई लगाने और मौजूद औद्योगिक इकाइयों के विस्तार की प्रक्रिया सुगम करने के साथ कारोबार की प्रक्रिया को भी आसान किया जा रहा है।” उन्होंने बताया कि हरियाणा में उत्पादन बढ़ाने के लिए मारुति सुजुकी ने राज्य सरकार से 325 एकड़ भूमि मांगी है।
आउटलुक से बातचीत में केंद्रीय एमएसएमई राज्य मंत्री प्रताप चंद्र सारंगी ने कहा, “बड़े पैमाने पर विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए राज्यों का मागदर्शन किया जा रहा है। राज्यों से कहा गया है कि वे निवेश के लिए कारोबारियों से संबद्ध केंद्र और राज्य की तमाम स्वीकृतियों के लिए सिंगल विंडो सिस्टम को प्रभावी ढंग से लागू करें।” केंद्र सरकार ने एफडीआई नियमों में भी बड़ा बदलाव किया है। इस बदलाव के बाद कोई भी विदेशी कंपनी किसी भारतीय कंपनी का अधिग्रहण या विलय नहीं कर सकेगी। दुनिया भर में जारी कोरोना संकट के चलते गिरी अर्थव्यवस्था के बीच भारतीय कंपनियों का वैल्युएशन भी काफी गिर गया है, इसलिए सरकार को लगा कि कोई विदेशी कंपनी इस मौके का फायदा उठाते हुए कहीं किसी भारतीय कंपनी का औने-पौने दाम पर अधिग्रहण न कर ले।
हालांकि चीन में उत्पादन कर रही बहुराष्ट्रीय कंपनियों की तरफ से भारत में निवेश फिलहाल आसान नहीं लगता। इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस (आइएसबी) मोहाली के पूर्व डीन डॉ. अजित रानगेंकर का कहना है, “मैं ऐसी कोई संभावना नहीं देख रहा हूं कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां चीन से अपने प्लांट हटाकर भारत में स्थापित करेंगी। ऐसी अटकलें चीन-अमेरिका के बीच चले ट्रेड वॉर के वक्त भी लगाई जा रही थीं, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ था।” रानगेंकर के मुताबिक इंडिस्ट्रयल इन्फ्रास्ट्रक्चर, लॉजिस्टक और ऑटोमेशन के मामले में भारत अभी चीन से बहुत पीछे है। लेकिन सरकार समर्थकों के अपने तर्क हैं। स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय संयोजक तरुण ओझा का कहना है कि कोरोना संकट के दौरान बहुराष्ट्रीय कंपनियों का चीन के प्रति नजरिया तेजी से बदला है। दो दशक से विश्व अर्थव्यवस्था चीन पर निर्भर थी, पर अब बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर उनके देशों की सरकारें चीन से कारोबार हटाने का दबाव बना रही हैं। ऐसे में चीन के बाद दूसरी सबसे बड़ी 135 करोड़ की जनसंख्या वाले भारत में दूसरे देशों की तुलना में निवेश के अधिक मौके हैं।
लघु उद्योग भारती हरियाणा के महासचिव शुभादेश मित्तल मानते हैं कि कोरोना महामारी की चपेट में आने के बाद दुनिया के तमाम बड़े देश ‘आत्मनिर्भर भारत’ की तर्ज पर घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देंगे और विदेशी कंपनियों की जगह अपने देश की कंपनियों को संरक्षण देंगे। ऐसे में विदेशी निवेश के पीछे भागना तर्क संगत नहीं है। उनका कहना है कि विदेशी कंपनियों के प्रति आकर्षण की बजाय देश के एमएसएमई को वरीयता दी जानी चाहिए।
सेंटर फॉर रिसर्च इन रुरल एंड इंडस्ट्रियल डवलपमेंट (क्रिड) के नेहरु रिसर्च सेल के प्रमुख डॉ. आरएस घुम्मण का कहना है कि विदेशी निवेश के लिए उदारवाद का जो दौर भारत में 1991 में शुरू हुआ, वह चीन ने 1978 में शुरू किया था। इन चार दशकों में चीन ने खुद को एक वैश्विक उत्पादन धुरी के रूप में स्थापित कर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आकर्षित किया। गरीबी में रह रहे वहां के करोड़ों लोगों को रोजगार के अवसर मिले, जिससे अमेरिका के बाद चीन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना। दूसरी ओर, उदारवाद के तीन दशक बाद भी भारत में अपेक्षित विदेशी निवेश नहीं हो पाया। इन तीन दशकों में आईटी के क्षेत्र में भारत ने जरूर पहचान कायम की पर यहां के आईटी विशेषज्ञों ने भी बड़ी संख्या में अमेरिका और यूरोप का रुख किया है।
अनेक कंपनियां चीन से बाहर निकलना चाहती हैं और वे हरियाणा को आदर्श गंतव्य के रूप में देख रही हैं। नई इकाइयां स्थापित करने से पहले एक हजार दिनों के लिए श्रम कानूनों में राहत प्रदान की जाएगी
मनोहरलाल खट्टर, मुख्यमंत्री, हरियाणा