व्यापमं घोटाले में रामनरेश यादव के खिलाफ प्राथमिकी खारिज
पीठ ने कहा कि जहां तक किसी राज्यपाल को उसके कार्यकाल के दौरान प्राप्त छूट और विशेषाधिकार का सवाल है तो हम अकेले इसी आधार पर राज्यपाल के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी खारिज कर रहे हैं। न्यायालय ने पुलिस को यह छूट प्रदान की कि याचिकाकर्ता के राज्यपाल पद से हटने के बाद वह कानूनी प्रावधानों के अनुरूप कार्यवाही कर सकती है।
न्यायाधीशों ने कहा, छूट और रियायत केवल कार्यकाल के दौरान मिलती है। लेकिन राज्यपाल को मिली छूट एवं विशेषाधिकार का दूसरे आरोपियों जिन्हें इस तरह की छूट एवं विशेषाधिकार हासिल नहीं है उनके खिलाफ आपराधिक मामले की जांच करने के पुलिस के अधिकार को कम नहीं करेगा। उन्होंने कहा, हम एेसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि बहुत जरूरी होने पर किसी अपराध की जांच के सिलसिले में पुलिस द्वारा किसी राज्यपाल का बयान दर्ज करना अनुच्छेद 361 (2) या 361 (3) के तहत मिली छूट के दायरे में नहीं आता।
खंड पीठ ने कहा कि पुलिस को जांच के दौरान याचिकाकर्ता का बयान दर्ज करते समय सभी सावधानी और एहतियात बरतनी चाहिए ताकि राज्यपाल के पद की गरिमा किसी भी तरह से कम ना हो। उच्च न्यायालय ने गत 18 अप्रैल को एक अंतरिम आदेश में भर्ती घोटाले के सिलसिले में विशेष कार्य बल (एसईएफ) द्वारा 24 फरवरी को राज्यपाल के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी पर रोक लगा दी थी और जांच एजेंसी को राज्यपाल के खिलाफ कोई प्रतिरोधी कार्रवाई नहीं करने का निर्देश दिया था।
विशेष कार्य बल द्वारा यादव के खिलाफ दर्ज की गयी प्राथमिकी संभवत: मध्य प्रदेश के किसी राज्यपाल के खिलाफ एेसी पहली कार्रवाई थी। मामले में राज्यपाल पर व्यापम द्वारा आयोजित वन रक्षक भर्ती घोटाले में मिलीभगत का आरोप लगा है। इसके बाद यादव ने उच्च न्यायालय से अपने खिलाफ दर्ज प्राथमिकी खारिज करने की मांग की थी। राज्यपाल की ओर से राम जेठमलानी, आदर्श मुनी त्रिवेदी और महेन्द्र पटारिया मामले में पैरवी कर रहे थे।