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10 November 2023

'मनसे' प्रमुख राज ठाकरे को राहत, बॉम्बे हाईकोर्ट ने रद्द की 2010 निकाय चुनावों से पहले दर्ज प्राथमिकी

वर्ष 2010 में निकाय चुनाव से पहले आचार संहिता के कथित उल्लंघन के लिए महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के प्रमुख राज ठाकरे के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को बॉम्बे हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया। उच्च न्यायालय ने उक्त प्राथमिकी के बाद शुरू हुई आपराधिक कार्यवाही को भी रद्द कर दिया है।

बता दें कि न्यायमूर्ति अजय गडकरी और न्यायमूर्ति शर्मिला देशमुख की खंडपीठ ने प्राथमिकी के खिलाफ मनसे प्रमुख की 2014 में दाखिल याचिका को मंजूरी दे दी थी, जिसमें राज्य चुनाव आयोग (एसईसी) के एक परिपत्र के हवाले से अवगत कराया गया था कि ठाकरे ने चुनाव प्रचार के लिए मुंबई के बाहरी इलाके कल्याण और डोंबिवली क्षेत्र का दौरा किया, जिसका कार्य 29 सितंबर, 2010 तक पूरा किया जाना था।

उक्त प्राथमिकी के मुताबिक, पुलिस उपायुक्त ने ठाकरे को एक नोटिस जारी किया, जिसमें उन्हें उस वर्ष 29 सितंबर को रात 10 बजे के बाद कल्याण-डोंबिवली नगर निगम (केडीएमसी) की सीमा के भीतर मौजूद नहीं रहने के लिए कहा गया था। साथ ही ठाकरे को किसी भी राजनीतिक दल के कार्यालय, आवास, होटल, लॉज या गेस्ट हाउस में जाने के लिए मनाही थी।

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उन्हें यह भी बताया गया कि इस व्यवस्था का उल्लंघन करने पर उन्हें जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 126 के तहत मुकदमे का सामना करना पड़ सकता है। प्राथमिकी के अनुसार, अभियोजन पक्ष का आरोप है कि ठाकरे तय समय के बाद भी केडीएमसी क्षेत्र के भीतर एक घर में रुके। ऐसे में जब पुलिस के एक वरिष्ठ निरीक्षक मनसे प्रमुख को नोटिस देने के लिए उनके पास गए तो उन्होंने उसे स्वीकार करने से मना कर दिया।

इसके बाद संबंधित स्थान पर नोटिस चस्पा कर दिया गया। प्राथमिकी के मुताबिक, नोटिस के उल्लंघन के लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 188 (लोक सेवक द्वारा दिए गए आदेश की अवज्ञा) के तहत ठाकरे के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

अदालत के दस्तावेजों के अनुसार, जांच पूरी होने के बाद कल्याण में न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष मामले में आरोपपत्र दाखिल किया गया। मजिस्ट्रेट ने संज्ञान लेते हुए 10 जनवरी को ठाकरे को समन जारी किया था। ठाकरे अदालत में पेश हुए और जमानत मांगी और इसे उसी दिन मंजूर कर लिया गया।

गौरतलब है कि ठाकरे ने 2014 में प्राथमिकी रद्द कराने के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। बाद में, उच्च न्यायालय ने 27 अप्रैल, 2015 को उनकी याचिका लंबित रहने तक कार्यवाही पर रोक लगा दी। ठाकरे के वकील सयाजी नांगरे ने बताया कि आईपीसी की धारा 188 एक संज्ञेय अपराध है इसलिए कार्यवाही प्राथमिकी के माध्यम से नहीं, बल्कि मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत के माध्यम से शुरू होती है।

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TAGS: Maharashtra navnirman sena, MNS, Raj Thackeray, Bombay High court, 2010 municipal elections
OUTLOOK 10 November, 2023
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