यहां असेंबली चुनाव करवाने में जिस तरह की देर हुई है, इसे लेकर क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ओर उनके नेताओं के मन में शंकाएं हैं। प्रधानमंत्री के बयान के बाद शुरुआती प्रतिक्रिया नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला के राजनीतिक सलाहकार तनवीर सादिक की आई, ‘‘आपको पता होना चाहिए कि चुनाव आयोग का काम सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार चुनाव करवाना है और सरकार का काम चुनावी माहौल को शांतिपूर्ण बनाए रखना है। जहां तक राज्य के दर्जे की बहाली वाली बात है, बीते चार साल में बीस बार हम सुन चुके हैं कि ऐसा ‘जल्द’ किया जाएगा। यह ‘जल्द’ आसपास तो कहीं नहीं दिखता।’’
पीडीपी के नेता वहीदुर्रहमान पर्रा ने याद दिलाया कि 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 समाप्त करने के बाद भी प्रधानमंत्री ने विधानसभा चुनाव ‘जल्द’ करवाने का भरोसा दिया था। इसके समर्थन में उन्होंने 8 अगस्त, 2019 की रायटर्स की एक खबर एक्स पर शेयर की जिसका शीर्षक नरेंद्र मोदी का बयान था कि ‘‘भारत जल्द ही जम्मू और कश्मीर में असेंबली चुनाव करवाएगा।’’
मोदी ने अपने भाषण में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की चर्चित पंक्ति ‘इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत’ का हवाला देते हुए कहा कि आज के कश्मीर में वे वाजपेयी का सपना पूरा होते देख पा रहे हैं क्योंकि आम चुनाव के मतदान में यहां पिछले 30 से 40 साल का रिकॉर्ड टूट गया है और लोकतंत्र की जीत हुई है। उन्होंने इस बदलाव का श्रेय बीते दस साल के दौरान अपनी सरकार के प्रयासों को देते हुए कहा कि अनुच्छेद 370 की दीवार गिरने के बाद पहली बार यहां संविधान को पूरी तरह लागू किया गया है।
प्रधानमंत्री मोदी के इस बयान को अपनी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी ने बहुत अहम बताया। उनके मुताबिक मोदी के भाषण से लोगों में उत्साह और उम्मीद जागी है।
अपनी पार्टी के अध्यक्ष अल्ताफ बुखारी ने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री की यह घोषणा कि असेंबली चुनाव की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं और जम्मू और कश्मीर को दोबारा राज्य का दर्जा मिलेगा, बहुत अहम है। लोग बेसब्री से राज्य बहाली और चुनाव का इंतजार कर रहे हैं। प्रधानमंत्री के ऐलान ने उत्साह और आशा की लहर पैदा कर दी है।’’
अनुच्छेद 370 समाप्त किए जाने के बाद अपनी पार्टी का गठन हुआ था। नेशनल कॉन्फ्रेंस इसके ऊपर भाजपा की बी टाम होने का आरोप लगाती रही है। अपनी पार्टी ने हमेशा इसका खंडन किया है।
प्रधानमंत्री का ऐलान ऐसे वक्त आया है, जब कई जानकार हाल ही में जम्मू में हुए आतंकी हमलों के कारण चुनाव टालने की बात कर माहौल बना रहे हैं। इस बार चुनाव टाले जाने की बात सेना के पूर्व प्रमुख जनरल वीपी मलिक के एक बयान के बाद से उठी है। हाल ही में दिए गए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, ‘‘हमें सितंबर में चुनाव करवाने की जल्दी नहीं करनी चाहिए।’’ मलिक ने अगले साल तक चुनावों को टालने की पैरवी की थी।
इस बयान के बाद से ही लोगों में असंतोष पैदा हो गया, जो 19 जून, 2018 में पीडीपी और भाजपा की संयुक्त सरकार गिरने बाद से ही बेसब्री से चुनाव का इंतजार कर रहे हैं। सरकार गिरने के तेरह माह बाद ही भाजपा सरकार ने अनुच्छेद 370 समाप्त कर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों- जेएंडके और लद्दाख में बांट दिया था। 370 समाप्त करने से पहले संचार व्यवस्था पूरी तरह बंद कर दी गई थी। राज्य के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों डॉ. फारुख अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती सहित हजारों लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था।
उमर अब्दुल्ला ने आतंकी हमले का बहाना बनाकर चुनाव टालने के सुझाव को पूरी तरह खारिज किया है। उनका कहना है कि ऐसा करना ‘‘चरमपंथी तत्वों के सामने घुटने टेक देने के बराबर होगा। यह कदम उन्हें अपनी उपलब्धि जैसा लगेगा।’’
उमर ने कहा, ‘‘सुप्रीम कोर्ट की दी हुई डेडलाइन 30 सितंबर से पहले की है। प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और चुनाव आयोग ने चुनाव करवाने का जो वादा किया है, उसे यदि आतंकी संगठन नाकाम कर पाने में सक्षम हैं, तो समझिए कश्मीर में कुछ भी बेहतर नहीं हुआ है।’’
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 11 दिसंबर को चुनाव आयोग को निर्देश दिया था कि वह 30 सितंबर, 2024 तक जम्मू और कश्मीर में चुनाव करवा दे। पांच जजों की खंडपीठ की अध्यक्षता करते हुए प्रधान न्यायाधीश डीवाइ चंद्रचूड़ ने कहा था कि प्रत्यक्ष चुनाव किसी भी लोकतंत्र का सबसे बड़ा प्रतीक होते हैं। इसे रोका नहीं जा सकता। अब राजनीतिक दल भाजपा पर आरोप लगा रहे हैं कि वह असेंबली चुनाव के खिलाफ माहौल बना रही है।
उमर ने कहा, ‘‘ज्यादा अचरज इस बात का है कि इस बार ऐसा माहौल सेना के एक पूर्व अफसर के बयान के सहारे पैदा किया जा रहा है। करगिल युद्ध के ठीक बाद और 1999 में आतंकवाद के चरम दौर तक में जम्मू और कश्मीर लोकसभा चुनाव का गवाह रह चुका है। यह सब बहुत शर्मनाक है।’’
पीडीपी के प्रवक्ता मोहित भान का कहना है कि हाल के आम चुनाव में मतदाताओं का भारी संख्या में मतदान करना दिखाता है कि लोग लोकतांत्रिक प्रक्रिया के प्रति वचनबद्ध हैं। वे कहते हैं, ‘‘चुनाव को और टालने से लोग अलगाव महसूस करेंगे और संस्थाओं में उनकी आस्था कमजोर होगी। जब लोग अपने नुमाइंदों को चुनने को तैयार हैं, तो असेंबली चुनावों में देरी करने का कोई जायज कारण नहीं बनता। क्षेत्र की शिकायतों को संबोधित करने और सुशासन लाने के लिए समयबद्ध चुनाव करवाना बहुत जरूरी है।’’ उनके मुताबिक इसमें देरी करना लोकतांत्रिक अधिकारों की उपेक्षा होगी और यह भारत सरकार के शांति बहाली और स्थिरता के दावों पर ही सवाल खड़ा कर देगा।
हाल में संपन्न हुए आम चुनावों में जम्मू और कश्मीर में हुआ मतदान बीते 35 वर्षों के मुकाबले सबसे ज्यादा रहा। सभी पांच संसदीय सीटों को मिलाकर कुल मतदान 58.46 प्रतिशत था। चुनाव आयोग की मानें, तो 2019 के आम चुनाव के मुकाबले यह 30 प्रतिशत का उछाल दिखाता है। घाटी की तीन सीटों श्रीनगर, बारामूला और अनंतनाग-रजौरी में मतदान प्रतिशत क्रमश: 38.49, 59.1 और 54.84 प्रतिशत रहा। तीनों बीते तीन दशक की सबसे ज्यादा दर है। बाकी दो उधमपुर और जम्मू की सीटों पर यह 68.27 और 72.22 प्रतिशत रहा।
चुनाव आयोग ने 8 जुलाई को घोषणा की थी कि 1968 के चुनाव चिह्न आदेश के पैरा 10बी के अनुसार उसने जम्मू और कश्मीर के असेंबली चुनाव के लिए साझा चुनाव चिह्न आवंटित करने के आवेदन स्वीकार करने का निर्णय लिया है, हालांकि आयोग ने इसके लिए कोई तारीख घोषित नहीं की थी।
मोदी के बयान से राज्य में चुनाव को लेकर हलचल भी है और थोड़ी आशा भी बंधी है। लेकिन जब तक असेंबली चुनाव और राज्य बहाली की तारीख की घोषणा नहीं हो जाती, तब तक ये सब ‘जल्द’ करवाए जाने की बातें दूर की कौड़ी रहेंगी।