कुलपति का विवादित बयान- पिट कर मत आना, बस चले तो मर्डर कर देना
छात्रों के उज्ज्वल भविष्य के लिए कॉलेज और विश्वविद्यालयों में जहां उन्हें तमाम नैतिकताओं के साथ सत्कर्मों के बारे में सिखाया और पढ़ाया जाता है। वहीं, पूर्वांचल विश्वविद्यालय के कुलपति छात्रों को अपराध करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। उन्होंने एक कार्यक्रम में ऐसा ही एक विवादित बयान दिया है।
गाजीपुर जिले में सत्यदेव सिंह डिग्री कॉलेज में बाबू सत्यदेव सिंह की पुण्य तिथि पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। इसमें कई विश्वविद्यालयों के कुलपति सहित अन्य लोग भी शामिल हुए थे। इसी कार्यक्रम में वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के कुलपति राजाराम यादव ने विवादित बयान दिया है। अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा, 'छात्र वही होता है, जो पर्वत की चट्टानों में पैर मारता है तो पानी की धारा निकलती है। छात्र अपने जीवन में जो संकल्प लेता है, उसे पूरा करता है। उसी को पूर्वांचल विश्वविद्यालय का छात्र कहते हैं। अगर आप पूर्वांचल विश्वविद्यालय के छात्र हो, तो रोते हुए मेरे पास कभी मत आना। एक बात बता देता हूं, अगर किसी से झगड़ा हो जाए तो उसकी पिटाई कर के आना और तुम्हारा बस चले तो उसका मर्डर कर के आना। इसके बाद हम देख लेंगे।'
इस बारे में राज्यपाल के प्रमुख सचिव हेमंत राव से बात करने का प्रयास किया गया, लेकिन बात नहीं हो पाई। हालांकि राज्यपाल के जनसंपर्क अधिकारी अंजुम नकवी ने किसी भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। पूरे मामले की जानकारी के लिए पूर्वांचल विश्वविद्यालय के कुलपति राजाराम यादव को बातचीत के लिए फोन किया गया तो उन्होंने भी फोन नहीं रीसिव किया।
भाजपा प्रवक्ता नवीन श्रीवास्तव का कहना है कि कुलपति इस तरह की भाषा का प्रयोग अगर करते हैं तो इससे ज्यादा निंदनीय कुछ हो ही नहीं सकता है। इस मामले को संबंधित लोगों को संज्ञान में लेकर आवश्यक करनी चाहिए।
वहीं, कांग्रेस प्रवक्ता अंशू अवस्थी का कहना है कि भाजपा सभी संस्थानों की गुणवत्ता बर्बाद करने पर तुली है। जिसकी योग्यता आरएसएस या भाजपा से संबंधित हों, शिक्षण योग्यता से मतलब नहीं है, ऐसे ही लोगों को आज मुखिया और कुलपति आदि बनाया जा रहा है। आज उसी के दुष्परिणाम आ रहे हैं। ये भाजपा के एजेंट हैं, जो ऐसे शैक्षणिक संस्थानों को बर्बाद करने पर तुले हैं, जिन्हें कांग्रेस ने पिछले 70 सालों में स्थापित किया था। राज्यपाल हर चीज का संज्ञान लेते हैं, वह विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति हैं, लेकिन उन्हें विश्वविद्यालयों की चिंता क्यों नहीं है। सवाल उन पर भी हैं।