राजे सरकार की आधी-अधूरी राहत से बंटे किसान
रामगोपाल जाट
राजस्थान में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। जनवरी में हुए उपचुनावों के नतीजे बताते हैं कि भाजपा के सामने सत्ता बरकरार रखने की मुश्किल चुनौती है। सो, फरवरी में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने जब बजट पेश किया तो सभी वर्गों को लुभाने की कोशिश की। इतना ही नहीं संपूर्ण कर्ज माफी की मांग पूरी किए बिना उन्होंने आधी-अधूरी राहत से किसानों को बांट दिया। इससे किसान नेता आंदोलन स्थगित करने को मजबूर हुए। हालांकि चुनावी बरस में यह संकट टालने जैसा ही है, क्योंकि किसान नेताओं के तेवर से साफ है कि किसी भी वक्त यह मुद्दा फिर से सरकार के लिए परेशानी का सबब बन सकता है।
राजस्थान में बीते साल एक से 13 सितंबर तक किसानों का जबरदस्त आंदोलन हुआ था। इसके बाद सरकार और किसानों के बीच 11 सूत्री समझौता हुआ। किसान नेता सरकार पर इस समझौते से पीछे हटने का आरोप लगा रहे हैं। इसके विरोध में किसान नेताओं ने विधानसभा सत्र के दौरान जयपुर कूच करने और राजधानी में महापड़ाव का ऐलान किया था। 12 फरवरी को जब मुख्यमंत्री राजे विधानसभा में बजट पेश कर रही थीं उसी वक्त कोटा और झुंझुनू से किसानों के जत्थे जयपुर के लिए रवाना हुए थे। 15 फरवरी को पेमाराम और मंगल सिंह के नेतृत्व में नागौर से किसानों का जत्था रवाना हुआ। 17 फरवरी को अखिल भारतीय किसान सभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पूर्व विधायक अमराराम के नेतृत्व में सीकर से जत्था जयपुर के लिए रवाना हुआ।
सरकार पर दबाव बनाने की यह रणनीति किसान संगठनों को उलटी पड़ गई। सरकार ने किसानों को लुभाने के लिए बजट में 50 हजार रुपये तक का कर्ज माफ करने की घोषणा की। लेकिन बड़ी चालाकी से उसने इसमें दो शर्तें जोड़ दी। पहला, कर्ज सहकारी बैंकों से लिया गया हो और दूसरा, लेने वाला किसान लघु और सीमांत हो। साथ ही बीते साल तक सभी किसानों के ऋण पर लिया जाने वाला ब्याज भी माफ करने की घोषणा की। इससे पहले राजस्थान में कभी भी किसानों का इतना ऋण माफ नहीं किया गया था। इससे राज्य सरकार पर करीब आठ से नौ हजार करोड़ रुपये का भार पड़ेगा।
सरकार के इस ऐलान के कारण राज्य के किसान दो खेमों में बंट गए। आंदोलन को वैसा समर्थन नहीं मिला जैसा सितंबर में मिला था। राज्य के शेखावाटी अंचल और कोटा के किसानों पर सबसे अधिक कर्ज है। इस घोषणा से इन दो संभागों में किसानों को बड़ी राहत मिली और वे भी सड़क पर पहले की तरह नहीं उतरे। यही वह तबका था जिसे साथ लेकर सितंबर में अमराराम ने सरकार को झुकने के लिए मजबूर किया था। लेकिन, छोटे किसानों की उदासीनता को देख इस बार वे आंदोलन स्थगित करने को मजबूर हो गए।
अमराराम का कहना है कि सरकार ने 11 सूत्री वादे को पूरा किए बिना छोटे किसानों को राहत देकर किसान वर्ग को बांट दिया है। उनका दावा है कि राज्य सरकार ने केवल आठ हजार करोड़ रुपये का कर्ज माफ करने की बात कही है। व्यवसायिक बैंक से लिए गए लोन को माफ नहीं किया है। एक भी किसान को वादे के मुताबिक दो हजार रुपये की पेंशन का ऐलान नहीं किया है। आवारा पशुओं से फसलों को होने वाले नुकसान के भरपाई को लेकर भी कोई बात नहीं की गई है। अमराराम का कहना है कि संपूर्ण कर्ज माफी तक किसानों का आंदोलन जारी रहेगा। इसके आगे की रूपरेखा के लिए अलग से रणनीति बनाई जाएगी। वे कहते हैं, “ किसी भी सूरत में राज्य सरकार से 11 सूत्री मांगों को मनवा कर रहेंगे।”
महापड़ाव के ऐलान के बाद से ही इस बार सरकार सतर्क थी। 22 फरवरी को महापड़ाव से एक दिन पहले ही जयपुर की सीमाएं सील कर दी गई। एक भी किसान जयपुर की सीमा में प्रवेश नहीं कर पाया। सीकर, झुंझुनू, नागौर, श्रीगंगानगर, बीकानेर और कोटा में 197 किसान नेता गिरफ्तार किए गए। अमराराम, पेमाराम और मंगल सिंह जैसे नेताओं को दो दिनों तक जेल में रखा गया। सदन के बाहर और भीतर विपक्ष के हमले के बाद इन नेताओं को तब छोड़ा गया जब उसके अगले दो दिन तक विधानसभा की कार्यवाही होनी ही नहीं थी।
इससे किसान नेताओं का मनोबल टूट गया। उन्हें लगने लगा कि तीन दिनों तक किसानों को एकजुट रखना और महापड़ाव के कार्यक्रम को सफल बनाना बेहद मुश्किल हो चुका है। असल में अमराराम को अच्छे से पता था कि सितंबर में हुए आंदोलन के मुकाबले इस बार उनके साथ उतने किसान नहीं आ रहे हैं, जितने की उम्मीद की जा रही थी। बताया जाता है कि सीकर जहां किसान आंदोलन सबसे प्रभावशाली रहा है वहां भी अमराराम को उतना समर्थन नहीं मिला, जितने का उन्होंने दावा किया था।
स्थिति को भांपते हुए अमराराम ने आंदोलन को वापस लेने की घोषणा कर दी। पेमाराम कहते हैं कि किसानों के आंदोलन के बाद राज्य सरकार अंदर से टूट गई है, लेकिन चुनाव नजदीक देख चतुराई से लघु एवं सीमांत किसानों के 50 हजार रुपये तक के कर्ज माफ की घोषणा कर उसने होशियारी दिखाने का प्रयास किया है। जो किसान समझते हैं, जानते हैं, वह राज्य सरकार के इस झांसे में नहीं आने वाले हैं और संपूर्ण कर्जा माफ होने तक राज्य में किसान आंदोलन बंद नहीं होगा। मंगल सिंह कहते हैं, “राजस्थान में बीते चार साल से ऐसी सरकार राज कर रही है, जो सामंतशाही तरीका अपनाते हुए किसानों पर के हितों पर कुठाराघात करती है।”
एक सच यह भी है कि एक बार आंदोलन टूटने पर दोबारा उसी तरह का आंदोलन खड़ा करना मुश्किल होता है। ऐसे में राज्य में किसानों का आंदोलन अब कौन सा मोड़ लेगा यह तो वक्त ही बता पाएगा।