नीतीश को अयोग्य करार देने की याचिका पर SC ने चुनाव आयोग से मांगा जवाब
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अयोग्य करार दिए जाने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी करते हुए दो हफ्ते में जवाब तलब किया है। कोर्ट ने मामले की सुनवाई की तारीख्ा चार हफ्ते बाद की तय की है।
एनडीटीवी के मुताबिक, इस मुद्दे पर नीतीश कुमार ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ये मामला कोर्ट में है। इसमें मैं क्या बोलूं। इसमें तो चुनाव आयोग से पूछा गया है।
दरअसल, दिल्ली के वकील एमएल शर्मा ने नीतीश के खिलाफ आपराधिक मामले की याचिका दायर की थी। उन्होंने मांग की थी कि बिहार के मुख्यमंत्री को विधायक पद से अयोग्य घोषित कर देना चाहिए क्योंकि उन्होंने 2004 और 2012 में चुनावी दस्तावेज जमा कराते समय आपराधिक जानकारी छुपाई।
याचिका में आगे दावा किया गया था कि नीतीश ने अपने कार्यकाल की संवैधानिक ताकत के चलते 1991 के बाद से ही गैर जमानती अपराध में जमानत तक नहीं कराई। साथ ही 17 साल बाद मामले में पुलिस से क्लोजर रिपोर्ट भी फाइल करवा ली। सीएम नीतीश कुमार के खिलाफ जांच का आदेश देने की मांग भी याचिका में की गई है।
वकील ने याचिका के जरिए सुप्रीम कोर्ट से अपील की थी कि वह इस तरह का आदेश जारी करे कि अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर या आपराधिक मामला दर्ज है तो वह किसी भी संवैधानिक पद पर नहीं बैठ पाए।
क्या है मामला?
बता दें कि बिहार में जेडीयू से गठबंधन टूटने पर आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने नीतीश कुमार पर हत्या के मामले में नामजद होने का खुलासा किया था।
दरअसल हत्या का यह मामला 26 साल पुराना है, जिसमें पंडारख थानाक्षेत्र में पड़ने वाले ढीबर गांव के रहने वाले अशोक सिंह ने नीतीश कुमार सहित कुछ अन्य लोगों पर हत्या का मुकदमा दर्ज कराया था। अशोक सिंह ने इस मामले में दर्ज एफआईआर में आरोप लगाया था कि बाढ़ सीट पर मध्यावधि चुनाव में वह अपने भाई सीताराम सिंह के साथ वोट देने मतदान केंद्र गए थे, तभी इस सीट से जनता दल उम्मीदवार नीतीश कुमार वहां आ गए। उनके साथ मोकामा से विधायक दिलीप कुमार सिंह, दुलारचंद यादव, योगेंद्र प्रसाद और बौधू यादव भी थे। सभी लोग बंदूक, रायफल और पिस्तौल से लैस होकर आए थे। यहां पर सीताराम सिंह की कथित तौर पर हत्या की गई थी।
नीतीश के खिलाफ दर्ज इस एफआईआर को लेकर अब यह बात सामने आ रही है कि 1991 का यह मामला वर्ष 2009 में दोबारा उछला था। तब 1 सितंबर 2009 को बाढ़ कोर्ट के तत्कालीन अपर मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी (एसीजेएम) रंजन कुमार ने इस मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ ट्रायल शुरू करने का आदेश दिया था।
नीतीश कुमार ने पटना हाईकोर्ट में याचिका दर्ज कर मामले को रद्द करने की मांग की थी। हाईकोर्ट ने इस मामले में निचली अदालत के आदेश पर स्टे लगा दिया और इस हत्याकांड में नीतीश के खिलाफ चल रहे सभी मामलों को उसके पास स्थानांतरित करने को कहा था। हालांकि हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद इन 8 वर्षों के दौरान इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई।
मालूम हो कि जुलाई में नीतीश कुमार ने महागठबंधन से नाता तोडकर बीजेपी के साथ गठबंधन कर लिया था। इसके बाद लालू ने भी इस हत्या के एक मामले को लेकर नीतीश पर हमला बोला था। साथ ही सृजन घोटाले को भी निशाना साधा था। तभी से लालू और नीतीश के बीच उठापटक चल रही है।