स्कूल ने बच्चे को दाखिला देने से किया मना, हाईकोर्ट जज ने की फीस देने की पेशकश
बंबई हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति वीएम कनाडे ने एक स्थानीय स्कूल द्वारा फीस नहीं जमा करने पर बच्चे को दाखिला देने से इनकार करने के मामले की सुनवाई करते हुए स्कूल से कहा कि वह 10,500 रूपये की फीस का किस्त में भुगतान लेकर बच्चे को जूनियर केजी में दाखिला देने पर विचार करें। साथ ही न्यायाधीश ने कहा कि अगर ऐसा संभव नहीं है तो वह खुद अपनी जेब से रकम अदा करने के लिए तैयार हैं। न्यायमूर्ति एमएस सोनक के साथ शुक्रवार को सुनवाई में बैठे न्यायमूर्ति वीएम कनाडे ने चेंबूर के लोकमान्य तिलक हाई स्कूल से कहा कि वह चार साल के बच्चे की मां को किस्त में फीस देने की इजाजत दे क्योंकि वह तुरंत पूरी रकम देने में असमर्थ हैं। मुख्य न्यायाधीश के बाद सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति कनाडे ने कहा, कृपया इसपर विचार करें या फिर मैं अदा करूंगा, बच्चे को शिक्षा पाने से वंचित नहीं करें।
न्यायमूर्ति कनाडे बच्चे की मां की याचिका पर सुनवाईं कर रहे थे जो स्कूल में अपने बच्चे का दाखिला कराना चाहती है। महिला रीता कनौजिया विधवा है और घरेलू सेविका के रूप में काम करती है। वह स्कूल के ही पास एक झुग्गी में रहती है। उसके पति की मौत जुलाई 2014 में कैंसर से हो गई थी। अदालत को बताया गया कि रीता की दो बेटियां उसी स्कूल में तीसरी और पांचवी कक्षा में पढ़ती हैं। अब वह अपने बेटे कार्तिक को जूनियर केजी में दाखिला दिलवाना चाहती है। पिछली सुनवाई में अदालत ने स्कूल को कहा था कि वह भवन विकास कोष के लिए 19,500 रूपये की अदायगी पर जोर दिए बगैर बच्चे को दाखिला दे। बाद में स्कूल ने रीता से फीस के तौर पर 10,500 रूपये मांगे। चूंकि रीता यह रकम एकमुश्त देने में सक्षम नहीं थी, उसने स्कूल से आग्रह किया कि वह उसे किस्त में अदा करने की इजाजत दे। रीता के वकील ने अदालत को बताया कि स्कूल प्रशासन ने उसका आग्रह स्वीकार करने से इनकार कर दिया और सुरक्षा गार्ड को रीता को स्कूल परिसर में प्रवेश करने से रोकने का निर्देश दिया।