जुबां पर किसान, निगाहें केंद्र पर
देश में भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को हर कीमत पर लागू करने के प्रधानमंत्री के रवैये की वजह से उन्हें किसान विरोधी माना जा रहा है। खुद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उससे जुड़े किसान संगठन इस अध्यादेश के खिलाफ बोल रहे हैं, ऐसे में शिवराज सिंह खुद को किसान हितैषी नेता के तौर पर पेश करने के लिए पूरा जोर लगाए हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बरक्स अपनी किसान हितैषी छवि को मजबूत करके वह व्यापम जैसे घोटालों की कालिख से खुद को उबार लेंगे। यही वजह है कि वह लगातार किसान-किसान का जाप कर रहे हैं। हालांकि साथ ही यह भी बताने से गुरेज नहीं करते कि उद्योगों के लिए उन्होंने अलग से 25 हजार हेक्टेयर जमीन चिह्नित कर रखी है। चंबल के बीहड़ का भी हवाला देते हैं, जिसे समतल कर इंडस्ट्री को देने की योजना उनके दिमाग में है लेकिन अभी फोकस कृषि संकट-किसानों की आत्महत्या, खेती के विकास और फसल बीमा पर है।
इसके लिए लंबी-चौड़ी रणनीति है। जहां बाकी राज्य सरकारें और उनके मुख्यमंत्री किसानों की आत्महत्या से इनकार करते हैं या मामले को रफा-दफा करने की कोशिश करते हैं वहीं शिवराज सिंह मानते हैं कि अगर एक भी किसान आत्महत्या कर रहा है, तो यह कृषि संकट के बढऩे का द्योतक है। इन दावों से समझ लेना निश्चित तौर पर नासमझी होगी कि मध्य प्रदेश में किसान बेहद खुशहाल है और कहीं कोई दिक्कत नहीं। इस राज्य में किसानों की आत्महत्याएं हो रही हैं, मुआवजे के नाम पर मजाक किया जा रहा है। यह सब बाकी राज्यों की तरह मध्य प्रदेश में भी हो रहा है। लेकिन जैसे कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह कहते हैं, 'किसान हितैषी छवि बनाने की कवायद, वह निश्चित तौर पर बहुत तेज हो रही है।’
इसकी झलक भोपाल में फसल बीमा पर बुलाई गई राष्ट्रीय संगोष्ठी के दौरान देखने को मिली। इस संगोष्ठी में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने केंद्र की फसल बीमा योजना में बहुत-सी खामियां गिनाईं और कहा कि इसे किसान का पक्षधर बनाए जाने की सख्त जरूरत है। उन्होंने केंद्र पर दबाव बनाते हुए यह कहा कि इस बात की गारंटी होनी चाहिए कि किसान को न्यूनतम आय मिले। शिवराज की किसान पक्षधर छवि से केंद्र सरकार क्या परेशान है इसका जवाब इस सम्मेलन में आए केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह के वकतव्य में ढूंढ़ा जा सकता है। उन्होंने किसानों के हित की तमाम योजनाओं का श्रेय केंद्र को देते हुए संकेत दिया कि जो कुछ भी राज्य में हो रहा है, वह केंद्र के इशारे पर ही हो रहा है। फसल बीमा योजना पर उन्होंने कोई भी घोषणा करने से परहेज करते हुए कहा कि जल्द ही केंद्र इस पर विचार करेगा।
वहीं, शिवराज सिंह चौहान ने सीधे-सीधे केंद्र सरकार की योजना के बरक्स मध्य प्रदेश सरकार द्वारा उठाए कदमों को रखा और यह बताने की कोशिश की कि उनकी सरकार ज्यादा किसानों की समस्याओं से वाकिफ है। शिवराज की इच्छा है कि फसल बीमा पर जो मसौदा दस्तावेज राज्य सरकार ने तैयार किया है, उसे केंद्र अपना लें। इस तरह वह राष्ट्रीय स्तर पर अपनी दावेदारी को मजबूत कर पाएंगे। वैसे भी राष्ट्रीय स्तर पर किसान हितैषी छवि वाले नेता का भाजपा में अभाव है। इस खाली जगह को भरने के लिए मध्यप्रदेश से कोशिश हो रही है। जिसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का पूर्ण समर्थन है। दरअसल, भूमि अधिग्रहण अध्यादेश से पनप रहे जमीनी विरोध का चैंपियन बनने की दीर्घकालीन रणनीति का ही यह हिस्सा है। राष्ट्रीय किसान संघ के नेताओं का भी यही मानना है और वे भी इस सम्मेलन को सफल बनाने में जुटे हुए थे।
मध्य प्रदेश में बैठ कर उन्होंने केंद्र पर किसानों के पक्ष में नीति बनाने के लिए पहले बॉल फेंकी है।