सरकार नहीं सु्प्रीम कोर्ट ने निुयक्त कर दिया यूपी का लोकायुक्त
इससे पहले देश की सर्वोच्च अदालत ने उसके आदेशों का पालन करने में संवैधानिक पदाधिकारियों की विफलता को आश्चर्यजनक करार दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश के बावजूद लोकायुक्त नियुक्त नहीं करने पर उत्तर प्रदेश सरकार की ओलाचना की और कहा कि वह पद के लिए पांच चयनित नाम उपलब्ध कराए।
उत्तर प्रदेश के नए लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट की तरफ से दी गई समय सीमा की समाप्ति की उल्टी गिनती शुरू होने के बावजूद इस सिलसिले में चयन समिति की आज हुई बैठक बेनतीजा रही थी। इसके साथ ही लगभग निश्चित हो गया है कि सरकार तय समय सीमा में नया लोकायुक्त नियुक्त नहीं कर सकेगी।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा 16 दिसम्बर तक नए लोकायुक्त की नियुक्ति करने का अल्टीमेटम दिए जाने के बाद राज्य सरकार ने कल रात आपात स्थिति में चयन समिति की बैठक बुलाई थी जो पांच घंटे तक चले मैराथन विचार-मंथन के बाद भी बेनतीजा समाप्त हुई थी। लोकायुक्त के चयन की तीन सदस्यीय समिति में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य शामिल हैं।
क्या है मामला?
मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने गत 23 जुलाई को राज्य सरकार से कहा था कि वह लोकायुक्त पद पर नियुक्ति के लिए 22 अगस्त तक कोई नाम सुझाये। इसके बाद सरकार ने सेवानिवृत्त न्यायाधीश रवीन्द्र सिंह यादव का नाम तय कर सम्बन्धित फाइल पांच अगस्त को पहली बार राजभवन को भेजी थी। लेकिन तभी से यूपी सरकार और राजभवन के बीच इस मुद्दे को लेकर गतिरोध शुरू हो गया था।
सरकार और राजभवन के बीच फाइल की करीब छह बार की आमद-रफ्त के बाद राज्यपाल राम नाईक ने अन्तत: लोकायुक्त के पद पर नियुक्ति के लिये रवीन्द्र यादव का नाम नामंजूर करते हुए स्पष्ट कर दिया था कि मुख्यमंत्री इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एवं राज्य विधान सभा के नेता विपक्ष की चयन समिति की बैठक में कोई और नाम तय होने के बाद ही वह फाइल पर अपनी मंजूरी देंगे।
राज्यपाल ने न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ के एक और पत्र का जिक्र किया था, जिसमें उन्होंने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में सरकार के वरिष्ठ मंत्री शिवपाल सिंह यादव के साथ न्यायमूर्ति रवीन्द्र यादव के उपस्थित रहने का उल्लेख करते हुए कहा था कि जनता की निगाह में किसी दल विशेष के प्रति झुकाव रखने वाला कोई व्यक्ति लोकायुक्त के पद पर अपने दायित्व का निष्पक्ष तरीके से निष्पादन कर पायेगा, इसमें संदेह है। इसी गतिरोध के बीच राज्य सरकार ने अगस्त में विधानसभा तथा विधानपरिषद में उत्तर प्रदेश लोकायुक्त तथा उपलोकायुक्त (संशोधन) विधेयक पारित करवाकर राज्यपाल के पास भेजा। इसमें लोकायुक्त की चयन समिति से मुख्य न्यायाधीश को हटाने का प्रावधान किया गया था। हालांकि राज्यपाल ने अभी इस विधेयक को मंजूरी नहीं दी है।
प्रदेश में मार्च 2012 में अखिलेश यादव सरकार के गठन के बाद प्रदेश में लोकायुक्त के कार्यकाल को छह से बढ़ाकर आठ साल करने की बात कही गयी थी। मौजूदा लोकायुक्त एन. के. मेहरोत्रा नौ साल से इस पद पर हैं।