बिहार में वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, इस बात पर जताया संदेह
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को भारतीय चुनाव आयोग को बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को जारी रखने की अनुमति देते हुए इसे "संवैधानिक जनादेश" कहा।
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने हालांकि इस प्रक्रिया के समय पर सवाल उठाया और प्रथम दृष्टया यह राय दी कि बिहार में एसआईआर के दौरान आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड पर विचार किया जा सकता है।
इसमें कहा गया है, "हमारा प्रथम दृष्टया यह मत है कि मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण में आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड को शामिल करने की अनुमति दी जानी चाहिए।"
पीठ ने इस बात पर गौर किया कि 10 विपक्षी दलों के नेताओं सहित किसी भी याचिकाकर्ता ने चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर अंतरिम रोक लगाने की मांग नहीं की है। पीठ ने याचिकाओं पर जवाब मांगा और सुनवाई 28 जुलाई के लिए स्थगित कर दी।
पीठ ने कहा कि भारत निर्वाचन आयोग को 21 जुलाई तक याचिकाओं पर जवाबी हलफनामा दाखिल करना चाहिए और 28 जुलाई तक प्रत्युत्तर दाखिल करना चाहिए।
पीठ ने कहा कि वह इस प्रक्रिया को करने में चुनाव आयोग की विश्वसनीयता और ईमानदारी पर संदेह नहीं कर रही है, जो एक संवैधानिक दायित्व है, लेकिन प्रक्रिया का समय संदेह पैदा कर रहा है।
पीठ ने चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी से कहा, "हमें आपकी ईमानदारी पर संदेह नहीं है, लेकिन धारणाएं हैं। हम आपको रोकने के बारे में नहीं सोच रहे हैं, क्योंकि यह संवैधानिक जनादेश है।"
द्विवेदी ने कहा कि 60 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने पहचान-पत्र सत्यापित कर लिए हैं और उन्होंने अदालत को आश्वासन दिया कि किसी भी मतदाता का नाम उनकी सुनवाई किए बिना मतदाता सूची से नहीं हटाया जाएगा।
पीठ ने कहा, "हम किसी संवैधानिक संस्था को वह करने से नहीं रोक सकते जो उसे करना चाहिए। साथ ही, हम उन्हें वह भी नहीं करने देंगे जो उन्हें नहीं करना चाहिए।"
इससे पहले, दिन में पीठ ने चुनाव आयोग से चुनावी राज्य बिहार में एसआईआर अभियान के समय पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह लोकतंत्र और वोट देने की शक्ति की जड़ तक जाता है। साथ ही पीठ ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि चुनाव आयोग के पास इसे लागू करने का कोई अधिकार नहीं है।
भारत निर्वाचन आयोग ने भी इस प्रक्रिया को उचित ठहराया और कहा कि आधार "नागरिकता का प्रमाण" नहीं है।
पीठ ने बिहार में एसआईआर अभियान में आधार कार्ड को शामिल न करने पर द्विवेदी से सवाल किया और कहा कि चुनाव आयोग का किसी व्यक्ति की नागरिकता से कोई लेना-देना नहीं है और यह गृह मंत्रालय का अधिकार क्षेत्र है।
द्विवेदी ने संविधान के अनुच्छेद 326 का हवाला देते हुए कहा कि प्रत्येक मतदाता को भारतीय नागरिक होना चाहिए और "आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है"।
न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा, "यदि आपको बिहार में मतदाता सूची के एसआईआर के तहत नागरिकता की जांच करनी है, तो आपको पहले ही कार्रवाई करनी चाहिए थी; अब थोड़ी देर हो चुकी है।" इस बीच, पीठ ने याचिकाकर्ताओं के वकील की इस दलील को खारिज कर दिया कि चुनाव आयोग को बिहार में ऐसी कोई भी जांच करने का अधिकार नहीं है क्योंकि यह संविधान के तहत अनिवार्य है और पिछली बार ऐसी जांच 2003 में हुई थी।
याचिकाकर्ताओं की दलीलों का उल्लेख करते हुए पीठ ने कहा कि चुनाव आयोग को तीन प्रश्नों का उत्तर देना होगा, क्योंकि बिहार में एसआईआर की प्रक्रिया "लोकतंत्र और वोट देने की शक्ति की जड़" तक जाती है।
राजनीतिक दलों और उनके नेताओं के अलावा नागरिक समाज के सदस्यों और संगठनों सहित याचिकाकर्ताओं के प्रश्न, इस तरह की कार्रवाई करने के लिए भारत के निर्वाचन आयोग की शक्ति और इसके समय से संबंधित हैं।
द्विवेदी ने कहा कि समय के साथ मतदाता सूची में मतदाताओं के नाम शामिल करने या हटाने के लिए संशोधन की आवश्यकता है, जिसमें एसआईआर एक ऐसा कार्य है।
उन्होंने पूछा कि अगर चुनाव आयोग के पास मतदाता सूची में संशोधन करने का अधिकार नहीं है, तो फिर किसके पास है। हालांकि, चुनाव आयोग ने शीर्ष अदालत को आश्वासन दिया कि वह किसी भी व्यक्ति को सुनवाई का अवसर दिए बिना मतदाता सूची से बाहर नहीं करेगा।
शुरुआत में गैर सरकारी संगठन ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि मतदाता सूची में संशोधन की अनुमति जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत दी जा सकती है।
उन्होंने कहा कि संपूर्ण एसआईआर लगभग 7.9 करोड़ नागरिकों को कवर करेगा, और यहाँ तक कि मतदाता पहचान पत्र और आधार कार्ड पर भी विचार नहीं किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट में 10 से ज़्यादा याचिकाएँ दायर की गई हैं, जिनमें प्रमुख याचिकाकर्ता एनजीओ 'एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स' की एक याचिका भी शामिल है।
राजद सांसद मनोज झा और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा, कांग्रेस के के सी वेणुगोपाल, राकांपा (सपा) नेता सुप्रिया सुले, भाकपा नेता डी राजा, समाजवादी पार्टी के हरिंदर सिंह मलिक, शिवसेना (यूबीटी) नेता अरविंद सावंत, झामुमो के सरफराज अहमद और भाकपा (माले) के दीपांकर भट्टाचार्य ने भी चुनाव आयोग के आदेश को रद्द करने के लिए निर्देश देने की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया है।